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कश्मीर: कन्फ़ेशंस ऑफ़ ए कॉप (पार्ट-4) – मिलिटेन्ट और सोशल मीडिया

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‘बुरहान वानी को इतना बड़ा हीरो बनाने में सोशल मीडिया की बहुत बड़ी भूमिका है. वो पहला ऐसा मिलिटेंट था जो अपना चेहरा छिपाए बिना वीडियो बनाता था. ये वीडियो बहुत तेज़ी से वायरल होते थे और उसका समर्थन दिनों-दिन बढ़ता जाता था. उसके नाम से कई फ़ेसबुक पेज चलने लगे थे और लोग खुलकर उनके समर्थन में लिखते थे. लोगों को मोबलायज़ करने में सोशल मीडिया बेहद कारगर साबित हो रहा था और अलगावादी इसका जमकर फ़ायदा उठा रहे थे.
ऐसे में हमारे एक डीआईजी साहब ने प्लान किया कि हम पुलिस वालों को भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना चाहिए. जब ये मिलिटेंट सोशल मीडिया के ज़रिए अपनी ब्रांडिंग कर सकते हैं तो पुलिस क्यों नहीं? उनका कहना था कि कश्मीर के युवाओं के लिए बुरहान जैसे मिलिटेंट ही आदर्श क्यों हों, पुलिस के जाँबाज़ अधिकारी क्यों नहीं. लिहाज़ा उन्होंने निर्देश दिए कि ज़िला पुलिस के फ़ेसबुक पेज से हमारे अधिकारियों की ब्रांडिंग शुरू की जाए.
एक-एक कर अधिकारियों की तस्वीर उनकी उपलब्धियों और अवार्ड्स के साथ पब्लिश की जाने लगी. बल्कि उनके फ़ोन नम्बर भी सार्वजनिक किए जाने लगे और कश्मीर के युवाओं से अपील की गई कि किसी भी तरह की समस्या के लिए आप इन जाँबाज़ अफ़सरों से सीधा सम्पर्क कर सकते हैं.
ख़ालिद सर की तस्वीर और उनकी उपलब्धियों के साथ भी ऐसी ही पोस्ट हमने डाली. वो पोस्ट ख़ूब वायरल हुई. कई कश्मीरी युवाओं के उस पर बहुत पॉज़िटिव कमेंट भी आने लगे. इनमें लड़कियों के कमेंट भी थे जिनमें लिखा था कि वो ख़ालिद सर की फ़ैन हैं. ख़ालिद सर पहले से भी पूरे जिले में मशहूर थे. उनके पास जब थाने का चार्ज था तो यहां के पत्थरबाज़ उनके नाम से ही ख़ौफ़ खाते थे. इसीलिए उनसे बेहद चिढ़ते भी थे. ऊपर से उनकी तस्वीर पर जब कश्मीरी लड़के-लड़कियों के पॉज़िटिव कमेंट आने लगे तो उनकी चिढ़न और बढ़ गई.
ये वो दौर था जब बुरहान की मौत के बाद हालात काफ़ी हद तक ठीक हो गए थे लेकिन पत्थरबाज़ी अब भी काफ़ी ज़्यादा होती थी. बल्कि इस दौर में स्कूल और कॉलेज के बच्चे भी ख़ूब पत्थरबाज़ी करने लगे थे. ऐसे ही एक दिन हम लोग अपना बंकर लगाकर नाके पर खड़े थे. ख़ालिद सर भी हमारे साथ थे. सामने से पत्थरबाज़ी हो रही थी और हम उसका जवाब दे रहे थे. लेकिन अचानक ही हमारी पिछली तरफ़ से भी पत्थर चलने लगे. ये एक कॉलेज था. हमें अंदाज़ा नहीं था कि कॉलेज के अंदर से ही पत्थरबाज़ी शुरू हो जाएगी.
कॉलेज से आया एक पत्थर सीधा ख़ालिद सर के माथे पर लगा और वो ख़ून से तरबतर होकर नीचे गिर गए. उनकी पूरी वर्दी ख़ून से सन गई थी. हमने उन्हें उठाया, गाड़ी में डाला और सीधा अस्पताल भेज दिया.
जिस अधिकारी के नाम से ही पत्थरबाज़ घरों में दुबक जाते थे, वो ख़ुद ख़ून से लथपथ पड़ा था. हमने हमेशा ख़ालिद सर को सिर्फ़ डटे हुए ही देखा था. ये पहला मौक़ा था जब मैं उन्हें ऐसे देख रहा था. (क़रीब दो साल पुरानी इस घटना को बताते हुए भी इस अफ़सर की आँखें डबडबाई हुई थी और गला रुँधा हुआ था.)
ख़ालिद सर को अस्पताल के लिए रवाना करते ही मैं अपनी रक्षक (गाड़ी) की तरफ़ दौड़ा. वेपन मेरे कंधे पर था. मैंने गाड़ी से पाइप (लाठी) निकाला और मैं सीधा कॉलेज के अंदर घुस गया. मेरे सर पर ख़ून सवार हो गया था.
कॉलेज का जो भी छात्र फिर मेरे सामने आया मैंने उस पर पाइप भाँजना शुरू कर दिया. वहाँ अफ़रा-तफ़री मच गई. तब तक हमारी बाक़ी टीम भी आ चुकी थी और कॉलेज को हमने घेर लिया था. मैंने नजाने कॉलेज के कितने लड़कों को मारा और बुरी तरह मारा.
अब लगता है कि उस दिन शायद कई ऐसे लड़कों को भी मैंने मारा होगा जो पत्थरबाज़ी में नहीं थे. लेकिन अपने अफ़सर का ख़ून देख मैं पागल हो गया था. ऊपर से ख़ालिद सर के गिरते ही कॉलेज में नारे लगने लगे थे, जश्न मनने लगा था. बल्कि उस दिन तो पूरे शहर में अफ़हाव फैल गई थी कि ‘ख़ालिद मारा गया.’ सोशल मीडिया पर भी ये बात फैलने लगी थी.
ख़ालिद सर के माथे पर 12 टाँके आए. आज भी उनके माथे पर उस चोट से बना डिप्रेशन पहली नज़र में दिखता है. लेकिन वो भी कमाल इंसान हैं. उस घटना के दो दिन बाद ही, जब माथे पर पट्टी लगी हुई थी, उसी नाके पर आकर खड़े हो गए. हम सबका हौसला बढ़ाने के लिए और ये बताने के लिए कि ऐसी घटनाओं से घबराने या पीछे हटने की ज़रूरत नहीं है.
उधर सोशल मीडिया पर ये घूम रहा था कि ‘ख़ालिद मारा गया.’ ख़ालिद सर की जो पोस्ट वायरल हुई थी, जिस पर ख़ूब कमेंट भी आए थे, अब उसी पोस्ट को यहां के लड़के ‘RIP’ लिख कर शेयर कर रहे थे और मज़ाक़ बना रहे थे. लेकिन ख़ालिद सर भी उस्ताद आदमी हैं. उन्होंने उसी दिन अपनी पट्टी के ऊपर कैप लगाई, फ़ोटो खिंचवाई और सोशल मीडिया पर अपलोड करते हुए लिख दिया, ‘टाइगर इस बैक.’
(ये घटना का सिर्फ़ एक पहलू है. इसी घटना को अगर उस कॉलेज के किसी ऐसे निर्दोष छात्र की नज़र से देखें जो उस दिन पत्थरबाज़ी में शामिल न रहते हुए भी पुलिस की लाठियों का शिकार हुआ हो तो इस घटना का पूरा विवरण ही बदल जाएगा. और ऐसा कश्मीर में अक्सर होता रहा है जब आम नागरिक पुलिसिया दमन का बेवजह शिकार बनते हैं. लिहाज़ा पोस्ट को isolation में न देखें.)
(कश्मीर में तैनात सुरक्षा बलों की कुछ ऐसी ही ‘ऑफ़ द रिकॉर्ड’ स्वीकारोक्तियाँ आगे भी साझा करूँगा. कश्मीर में विकराल हो चुकी समस्या के बीच ऐसी कई छोटी-छोटी परतें हैं. ये क़िस्से शायद उन परतों के बीच झाँकने की जगह बना सकें.)

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