कल्याण सिंह जिन्होंने अटल वाजपेयी पर सवाल उठाया था..

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Sushma Tomar

बीते शनिवार (21 अगस्त) भाजपा नेता कल्याण सिंह का लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया। सक्रंमण और कमजोरी के चलते 4 जुलाई को उन्हें राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया था।

सेहत में सुधार न होने के कारण लखनऊ के SGPGI (राजीव गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान) में शिफ्ट किया गया।यहां शनिवार को सिंह ने अपनी अंतिम सांस ली।बता दें कि कल्याण सिंह सेप्सिस और बहु अंग विफलताओं से पीड़ित थे।

रविवार को उनके पार्थिव शरीर को पहले विधानसभा में और फिर भाजपा (bjp) मुख्यालय में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया।इसके बाद एयर एम्बुलेंस के ज़रिए पार्थिव शरीर पैतृक स्थान अलीगढ़ ले जाया गया। वहीं के नरौरा गंगा तट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया।

बता दें कि कल्याण सिंह 90 के दशक में यूपी के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं।वहीं 2014 के बाद राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल का कार्यभार भी संभाला है।

कई राज्यों में घोषित हुआ राजकीय शोक।

अमर उजाला के हवाले से,मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कल्याण सिंह के निधन पर यूपी में तीन दिन का राजकीय शोक की घोषणा की है,वहीं सोमवार को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया।

इसी तरह राजस्थान सरकार ने राजस्थान के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह के लिए निधन पर सरकारी अवकाश की घोषणा की है। 22 और 23 अगस्त को प्रदेश में शोक की घोषणा भी की गई, इस दौरान राज्य में राष्ट्रीय ध्वज भी आधा झुका रहेगा। उत्तराखंड सरकार ने भी इसी प्रकार की घोषणा की है।

दो बार रहे है यूपी के मुख्यमंत्री

कल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी 1932 को यूपी के अतरौली में एक किसान परिवार में हुआ था।स्कूल के दिनों में ही वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ RSS में शामिल हो गए। राजनीति में पहला मौका उन्हें 1967 में मिला,जब अतरौली से बतौर उम्मीदवार चुनकर विधानसभा पहुंचे।

कल्याण सिंह 80 के दशक में भाजपा के राज्य स्तरीय महासचिव बने,फिर राज्य पार्टी के अध्यक्ष चुने गए। यूपी विधानमंडल में भाजपा के नेता भी बने। यूपी के मुख्यमंत्री बनने का मौका उन्हें उन्हें दो बार मिला एक बार 1991 मे जब बाबरी विध्वंस के कारण उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा।दूसरी बार 1997 में लेकिन इस बार भी दो साल का कार्यकाल ही पूरा कर सके।

जब कल्याण सिंह ने बीजेपी छोड़ दी थी

1999 में आपसी कलह के चलते भाजपा से कल्याण सिंह को निकाल दिया गया।जिसके बाद कल्याण सिंह ने अपनी अलग राजनीतिक पार्टी “राष्ट्रीय क्रांति पार्टी” बनाई। हालांकि हुआ ये की 2004 के चुनावों से पहले वो फिर भाजपा में शामिल हो गए।

2009 में उन्होंने दूसरी बार भाजपा छोड़ दी और एटा से निर्दलीय चुनाव लड़ा।इस समय वो 2014 तक लोकसभा सांसद रहे और 2014 में भाजपा में वापसी की।

वापसी के बाद उन्हें राजस्थान का राज्यपाल बना दिया गया । 2015 से 2019 तक पांच साल का सफल कार्यालय पूरा कर उन्होंने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया । राजस्थान के अलावा सिंह हिमाचल के राज्यपाल के रूप में भी नियुक्त हुए हैं।

वाजपेयी से तकरार पड़ी थी महंगी

इंडिया टुडे के मुताबिक कल्याण सिंह का 1999 में भाजपा से रुख़सत होने का एक अहम कारण उनकी अटल बिहारी वाजपेयी से हुई तकरार थी।

दरअसल,हुआ कुछ यूं था कि 1997 में यूपी में बसपा के साथ भाजपा की सांझा सरकार बनी। छह-छह महीने तक मुख्यमंत्री बनने का एग्रीमेंट हुआ लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती ने एग्रीमेंट के मुताबिक सत्ता का हस्तांतरण नहीं किया।

ऐसे में कल्याण सिंह किसी और ही विचार में थे। वो सोच रहे थे कि वाजपेयी उन्हें केंद्र सरकार में विस्तार देना चाहते हैं।लेकिन ऐसा हुआ नहीं। 1999 के लोकसभा चुनावों में मनमुटाव के चलते कल्याण सिंह ने वाजपेयी के लिए कहा कि “उन्हें प्रधानमंत्री बनने से पहले एक सांसद बनने की ज़रूरत है।”

इस कथन से जहां वाजपेयी नाराज़ थे वहीं पार्टी का बहुमत भी वाजपेयी की तरफ़ था। कल्याण का यही कहना उनके लिए घातक साबित हो गया और आख़िर में उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया।

बाबरी विध्वंस के बाद दे दिया था इस्तीफ़ा

कल्याण सिंह “हिन्दू राष्ट्रवादी” और राम जन्म भूमी आंदोलन के प्रतीक माने जाते थे।उन्होंने भाजपा में रहते हुए लोगो के अंदर राम मंदिर के लिए भावनाए जागृत की थी । वहीं उन्हें “हिन्दू ह्रदय सम्राट” भी कहा जाता था।

1991 में वो यूपी में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री बने थे।वहीं 90 के दशक में भाजपा और आरएसएस ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद पर एक हिन्दू मंदिर बनाने के लिए अपनी योजनाओं को तेज कर दिया।

जिसके समर्थन में एक राम रथ यात्रा का आयोजन किया गया। धार्मिक भावना को मजबूत बनाया गया। इस यात्रा में भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी,मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती जैसे नेताओं के भाषण होने थे।

कल्याण सिंह ने इस यात्रा के लिए भारतीय सर्वोच्च न्यायालय को एक हलफनामा दिया था जिसमे न्यायालय को किसी भी प्रकार की हिंसा न होने का आश्वासन दिया था।

बजरंग दल और शिवसेना के कारसेवकों ने पुलिस बेरिकेड्स तोड़ कर बाबरी मस्जिद पर हमला कर उसका ढांचा गिरा दिया।पुलिस भी हाथ बंधे देखती रही।

विध्वंस के कुछ घंटो बाद मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। जिसके बाद केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को बर्खास्त कर दिया।