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कही रह ना जाना खामोश तुम

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जैसे नदिया शांत होकर भी अपना जोहर दिखा जाती है,जैसे हवाओं की शांत लहरें हमे त्रीपत कर देती हैं ,क्या हम वैसे समाज मे जी रहे हैं ? लगता तो नहीं है फिर भी हम ज़िये जा रहे हैं पर क्यों ? दिल्ली विश्वविधालय की एक छात्रा जब अपनी आवाज उठाने के लिए एक मंच ढूंढती है तो क्यों उसको ज़लील किया जा रहा है,हम समझ सकते हैं की उसकी बात कु्छ लोगों के सीने मे चुभ गयी हैं पर क्या उसको अपशब्द बोल के हम यह देश और यहां रह रही आधी आबादी को अपमानित नहीं किया जा रहा है. अभीव्यक्ती की आजादी इस देश का स्तंभ है और उसको अपनाने का हक हमारे संविधान ने सबको दे रखा है फिर क्यों अगर कोई अमन की बात करे कोई प्यार की भाषा बोले कोई अपनी आजादी का नाम ले तो देशद्रोही हो जाता है ?
माफ कारियेगा,ऐसी आजादी का क्या मतलब जब आप आपने विचारो को प्रकट ना कर पाओ,कुछ विद्यार्थी अपना जीवन अपने विचारो पर जीना पसंद करते हैं और हमे उनके विचारो की कद्र करना चाहिये. किसी महिला को गाली देना ,उसको बलात्कार की धमकी देंना कितना भयावह है, शायद हम निरभया कांड से सोच सकते हैं. पर एक 20 साल की बच्ची पर सोशल मीडीया पर हम कमेँट कर रहे हैं क्या उससे हम हमारी भारत मां की असमिता पर चोट नहीं पहूँचा रहे हैं ? आज अनुपम खेर जी आप होंगे सेलिब्रेटी, पर एक बेटी की इज्जत पर आँच आने वाली खबर पर एक शब्द नहीं कहा गया, निरभया की मौत पर मातम मनाने वाले आज चाटूकारिता मे व्यस्त हैं, शायद उनका काम निकल गया, पर भारत की जनता खामोश क्यू ???? जनता देख भी रही है,सुन भी रही है पर कहे कौन? किसे देश द्रोही बनना पसंद होगा,आज तो हर जगह एक खास किस्म की देशभक्ती का प्रमाण पत्र दिया जा रहा है, लेना हो तो लो वरना पकिस्तान भेज दिये जाओगे, ऐसे परिवार से भी चींखे निकलने लगी हैं, भईया हम भी आधे हिन्दुस्तानी हैं. फिर भी हम खामोश हैं ठीक उसी हवा और उसी नदी की तरह.पर क्यों? ये सवाल मेरा पीछा नहीं छोड रहा है ,शायद आपके अन्दर इसका जवाब है..खोजिये,देर से ही सही पर मिलेगा जरूर .
फैसला आपका है,कही ऐसा ना हो की फर्जी देशभक्ती के चक्कर में हम अपने भारत की आत्मा को खत्म कर दे.

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