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झांसी की रानी का यह पहलू नहीं जानते होंगे आप ?

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आज, 19 नवम्बर 2017 को भारत की महान स्वतन्त्रा सेनानी रानी लक्ष्मी बाई की 189वी जयन्ती है। रानी लक्ष्मी बाई 1857-58 के भारत के अन्ग्रेज़ विरोधी, साम्राज्यवाद विरोधी क्रान्ति की महा नायिका हैं…और अन्ग्रेज़ों से लड़ते हुए युध-छेत्र में शहीद हुईं.

यह उनका एक दुर्लभ चित्र है

आज भी रानी लक्ष्मीबाई, अपने शौर्य, शत्रु को अस्थिर करने वाली राजनिती, और खूबसूरती के लिये जानी जाती हैं. रानी के मुख्य दुश्मन, अन्ग्रेज़ जनरल ‘सर’ हुयू रोज़ ने खुद उनके बारे में लिखा है: “रानी में व्यक्तिगत क्षमता, सूझबूझ, चालाकी कूट-कूट के भरी हुई है। वो खूबसूरत भी हैं। हिन्दुस्तान के सारे नेताओं में वो शायद सबसे खतरनाक हैं”.

मई 1858 में जारी एक घोषणा पत्र में रानी ने भगवत गीता का उदहारण देते हुए, अन्ग्रेज़ों के खिलाफ एक साथ ‘धर्मयुध्द’ और ‘जेहाद’ का एलान किया था.

घोषणापत्र में लिखा है:- “हम आज़ादी के लिये लड़ रहे हैं…भगवान कृष्ण के शब्दों में अगर हम जीते तो हमे जीत का फल मिलेगा…और अगर हारे या लड़ते हुए मारे गये तो हम शाश्वत सम्मान और मोक्ष के हक़दार होंगें…हिन्दू और मुसलमान एक हैं…काफिर फिरंगियों के खिलाफ जंग हिन्दुओं के लिये धर्मयुद्ध और मुसलमानो के लिये जेहाद है…काफिर अन्ग्रेज़ों को उसी समन्दर तक खदेड़ देना है…जिसके सहारे वे यहां दाखिल हुए.” घोषणा पत्र में भगवत गीता की यह लाईन लिखी है:
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् ।

भगवत गीता की यह पंक्ति विशेष है। इसलिये की यही बात–मारे गये तो स्वर्ग मिलेगा, जीते तो धरती का भोग मिलेगा–हू-ब-हू क़ुरान में जेहाद के सन्दर्भ में कही गयी है. गीता में धर्मयुद्ध की परिभाषा और क़ुरान में जेहाद की परिकल्पना का हू-ब-हू एक होने अदभुत है. उससे भी ज़्यादा अदभुत है, 1857 के हिन्दू एवं मुसलमान नेताओं का धर्मयुध्द और जेहाद को आपस में मिला देना या एक कर देना…और हिन्दू-मुसलमानो की धार्मिक-सांस्कृतिक समानता पर ज़ोर देना. आज की परिस्तिथियों में इस बात का विशेष महत्व है- रानी लक्ष्मीबाई नाना साहब की तरह चितपावन ब्राम्हण थी। तात्या टोपे कराढ़े ब्राहमण थे. 17 जून 1858, ग्वालियर की अपनी अन्तिम लड़ाई में, रानी के साथ उनके खास चुने हुए, 250 पठान घुड़सवार थे…दोस्त खान के नेतृत्व में, 250 के 250 पठान, सभी के सभी, रानी के साथ, उसी दिन, शहीद हो गये.