भारतीय सांसद कश्मीर में नहीं घुस सकते। ग़ुलाम नबी आजाद जिनका घर है वे वहां नही जा सकते। सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी अपने बीमार जम्मूकश्मीर के विधायक से मिलने सुप्रीम कोर्ट के आदेश से ही जा पाये। पर यूरोपीय यूनियन के 11 देशों के 27 सांसद, अनधिकृत यात्रा पर वहां के हालात जानने के लिये जा सकते हैं। यही इस बात का प्रमाण है कि वहां सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। यूरोपीय यूनियन के जो सांसद अनधिकृत रूप से लोग वहां जा रहे हैं, वे धुर दक्षिणपंथी प्रो हिटलर की मानसिकता के हैं। यह सभी निजी यात्रा पर जा रहे हैं और यूरोपीय यूनियन ने किसी भी प्रकार की अधिकृत कूटनीतिक उद्देश्य का खंडन किया है।
शायद यह भी भारतीय विदेशनीति के इतिहास में पहलीं घटना होगी कि देश के एक आंतरिक मामले में मुआयना करने हेतु कोई विदेशी शिष्ट मंडल भारत सरकार द्वारा आमंत्रित किया गया हो। यूरोपीय संघ के 27 सांसद कश्मीर का दौरा करने आ रहे हैं। हालांकि यह यूरोपीय यूनियन का अधिकृत शिष्टमंडल नहीं है बल्कि वहा के दक्षिणपंथी दल के सांसद हैं और निजी हैसियत से वहां आ रहे हैं।
अगर कश्मीर की स्थिति नागरिक आज़ादी के प्रतिबन्धों रहित 5 अगस्त के पूर्व की स्थिति होती और वे पर्यटन या किसी भी काम के लिये आते तो कोई विशेष बात नहीं थी, पर जिस राज्य में देश के विरोधी दल के नेताओ को केवल इसलिए नहीं जाने दिया गया कि वहां की स्थिति ठीक नहीं है, और अब विदेशी सांसदों को निमंत्रित कर के वहां भेज देना, अनेक आशंकाओं को जन्म देता है। मज़े की बात यह भी है कि यूरोपीय यूनियन के कुछ देशों से आने वाले सांसदों की इस यात्रा की जानकारी, उनके दूतावासों को भी नहीं है।
यूरोपीय यूनियन के प्रतिनिधि मंडल को कश्मीर जाने देना और भारतीय सांसदों को वहां जाने से रोकना यह सांसदों के विशेषाधिकार का हनन भी है। यह संप्रभुता के विपरीत भी है। जब भारतीय सांसद कश्मीर गये तो श्रीनगर एयरपोर्ट पर ही उन्हें रोक दिया गया था और उन्हें न तो राज्यपाल से मिलने दिया गया और न ही जनता से।
यह शिष्टमंडल अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को रद्द करने के बाद वहां की स्थिति का आकलन करेगा। इन 27 सांसदों में से कम से कम 22 सदस्य दक्षिणपंथी या कट्टर दक्षिणपंथी विचारधारा वाले यूके, फ्रांस, जर्मनी, इटली, पोलैंड, चेक रिपब्लिक और स्लोवाकिया जैसे देशों की पार्टियों से ताल्लुक रखते हैं।
इन सदस्यों में वे शामिल हैं जो इटली में परदेसियों के बसने के विरोधी हैं, यूके में ब्रेक्जिट का समर्थन करते हैं और देशांतरण के खिलाफ विचार रखते हैं।
इनमें पोलैंड के जनप्रतिनिधि रिशर्ड सरनेस्की भी हैं जिन्हें यूरोपियन यूनियन के वाइस प्रेसिडेंट पद से बर्खास्त कर दिया गया था। फरवरी 2018 में एक राजनेता पर नाज़ीवादी अभद्र टिप्पणी करने के आरोप में यह कार्रवाई की गई थी। ऐसा पहली बार हुआ था जब ईयू के प्रतिनिधियों ने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल एक वरिष्ठ पदाधिकारी को बर्खास्त करने में किया था।
फ्रांस की सांसद थियरी मरियानी ने जुलाई 2015 में रूसी अधिकारियों के साथ क्रीमिया का दौरा किया था। क्रीमिया पर रूस ने 2014 में कब्जा किया था। यह सांसद सार्वजनिक तौर पर क्रीमिया में रूस की कार्रवाई का समर्थन कर चुकी हैं। उन पर अजरबैजान देश में मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों की तरफ आंखें मूंदने का भी आरोप लग चुका है।
पोलैंड के राजनेता कोस्मा ज्लोटोवोस्की ने नवंबर 2018 में एक ट्वीट से विवाद खड़ा कर दिया था। उन्होंने अपने ट्वीट में हैशटैग #WhyNotSvastika का इस्तेमाल किया था। यह नाज़ी प्रतीक स्वास्तिक के निशान से जुड़ा हुआ था। शॉपिंग वेबसाइट एमेजॉन पर सोवियत थीम की सामग्री बेचे जाने के विरोध में चलाए जा रहे ऑनलाइन कैंपेन के समर्थन में उन्होंने यह ट्वीट किया था।
ोलैंड के ही सांसद बोगडॉन रोजोंका ने यहूदियों पर एक टिप्पणी करके इस समुदाय को आहत कर दिया था। उन्होंने ट्वीट कर हैरानी जताई थी कि ”नरसंहार के बावजूद इतने बड़ी संख्या में यहूदी बच कैसे गए?”
यूरोपियन यूनियन ने अधिकृत रूप से कहा है कि
शिष्टमंडल की यह यात्रा भारत की कोई आधिकारिक यात्रा नहीं है। यह एक एनजीओ द्वारा आमंत्रित और निवेदित यात्रा है। हमने इस तरह की कोई यात्रा प्रायोजित नहीं की है। “ईयू के विदेश मंत्री, फेडरेका ने भारतीय विदेश मंत्री के सामने, कश्मीर में नागरिक आज़ादी के पाबंदी पर भी सवाल उठाया था। यह शिष्टमंडल 27 नेताओ का जो यूनियन के 11 देशों से हैं, और कश्मीर के नेताओं और जनता से मिलेंगे। इस पर महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि, इस शिष्टमंडल को जनता और नेताओं से खुल कर मिलने दिवा जाएगा।
एक रोचक तथ्य है कि, ययूरोपीय यूनियन के 27 सांसदों में से, 22 सांसद धुर दक्षिणपंथी दलों जैसे ल पेन और ब्रेकसिट पार्टी से हैं। इस यात्रा की भूमिका अमेरिकी कांग्रेस में यह मुद्दा उठने पर कि कश्मीर में विदेशी राजनयिक और विदेशी प्रेस तथा मीडिया को अपने नियमित काम से भी नहीं जाने दिया जा रहा है, तब बनी। विदेशी मीडिया के कश्मीर में प्रतिबंधित किये जाने पर संयुक्त राष्ट्रसंघ के मानवाधिकार संगठन ने भी आपत्ति जताई थी। 28 अक्टूबर को यूरोपीय यूनियन के इन सांसदों ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की और प्रधानमंत्री जी ने कहा कि क्षेत्र का विकास उनका प्रमुख उद्देश्य है यह यूरोपीय यूनियन के सांसद स्वयं देख कर समझ सकते हैं।
प्रधानमंत्री जी के अनुसार, “जम्मूकश्मीर की यात्रा से शिष्टमंडल को जम्मू, कश्मीर और लदाख की सांस्कृतिक, धार्मिक, विविधता को देखने और समझने की मदद मिलेगी। ”
यूरोपीय यूनियन में फ्रांस के धुर दक्षिणपंथी सांसद थेरी मैरियानी ने कहा है कि हम कश्मीर के उन हालात को देखने जा रहे हैं,जो वह हमें दिखाना चाहिते हैं।
यह भी एक विडंबना है कि इसी कश्मीर का दौरा करने के लिए विदेशी पत्रकारों को अनुमति नहीं दी गई, दिल्ली स्थित राजनयिकों ने कश्मीर जाने की अनुमति मांगने पर सरकार ने नहीं दी, अमरीकी कांग्रेस के क्रिस वॉन होलेन को श्रीनगर जाने का अनुरोध भारत ने ठुकरा दिया और अब ऐसा क्या हुआ कि भारत ने यूरोपीयन संघ के 27 सांसदों को कश्मीर जाने की अनुमति दे दी है ? अगर यह दौरा आधिकारिक नहीं है, निजी है तो क्या इन सांसदों की राय का कोई महत्व नहीं होगा, क्या यह उचित नहीं होता कि ये सांसद भारत के प्रेस से मिलते, सवाल जवाब का सामना करते जिससे पता चलता कि वे किसके कहने पर आए हैं और कश्मीर किन सवालों को लेकर जा रहे हैं. यही नहीं 27 सांसद किस दल के हैं, उनके दलों का अपने अपने देश में कश्मीर पर क्या रुख रहा है, यह सब स्पष्ट नहीं है।
सितंबर महीने में कश्मीर पर यूरोपियन संघ की संसद में और विदेश मामलों की कमेटी के भीतर कश्मीर पर चर्चा हो चुकी है. यूरोपीयन संघ की वाइस प्रेसिडेंट ने अपने भाषण में कश्मीर को लेकर चिन्ता तो जताई थी मगर भारत के खिलाफ कोई प्रस्ताव पास नहीं किया था. अमरीकी संसद में भी मानवाधिकार की सब कमेटी में कश्मीर के सवालों को लेकर चर्चा हुई थी और भारत की आलोचना की गई थी।
पहले इन यूरोपीय यूनियन के नेताओ को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, कश्मीर का इतिहास भूगोल बताएंगे और वे परिस्थियां बताएंगे कि क्यों यह परिवर्तन 5 अगस्त 2019 को किया गया है। जब यह अधिकृत प्रतिनिधि मंडल ही नहीं है तो उसके समक्ष नतमस्तक हो कर यह सफाई पेश करने की ज़रूरत ही क्या है। यही सब इतिहास भूगोल, कारण, परिणाम, किंतु, परन्तु तो भारतीय सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल जिसमे सभी दलों के लोग हों को भी तो समझाया जा सकता है ?
यूरोपीय यूनियन के सांसदों के कश्मीर के दौरे पर भाजपा सांसद डॉ सुब्रमण्यम स्वामी की यह प्रतिक्रिया, उचित और महत्वपूर्ण है
“मैं अचंभित हूं कि विदेश मंत्रालय ने यूरोपीय संघ के सांसदों को जम्मू और कश्मीर के घाटी वाले इलाके में जाने के लिए व्यवस्था की है। वह भी तब, जब वह अकेले जाएंगे और यह कोई European Union का आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल नहीं होगा। यह हमारी राष्ट्रीय नीति से समझौता है। मेरी सरकार से अपील है कि वह इस दौरे को रद्द करे, क्योंकि यह अनैतिक है।”
ईयू कार्यालय ने भारत सरकार को मेल भेज कर यह जानकारी दी है कि, जो 27 सांसद यूरोपीय यूनियन के भारत गये हैं वे अपनी निजी यात्रा पर हैं यूनियन का उनकी इस यात्रा से कुछ भी लेना देना नहीं है। यूरोपीय यूनियन की संसद के संचार महानिदेशक, जेम डच गुलियट ने कहा है कि,
“ एमईपी (मेम्बर ऑफ द यूरोपीय पार्लियामेंट) के जो सदस्य भारत गये हैं , यह उनकी निजी यात्रा है और वे यूरोपीय संसद के किसी अधिकृत शिष्टमंडल के सदस्य नहीं हैं। वे यूरोपीय यूनियन के संसद का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे हैं। “
कभी कहा गया था कि कश्मीर को कभी भी अंतरराष्ट्रीय मुद्दा नहीं बनने नहीं दिया जाएगा। अब यूरोपीय यूनियन के सांसदों के इस अनधिकृत दौरे से क्या यह संदेश दुनियाभर में नहीं जाएगा या सरकार की कश्मीर नीति बदल गयी है ? आतंकवाद एक बड़ी और जटिल समस्या है। यह आतंकवाद पाक प्रायोजित है, यह दुनियाभर को पता है। पर क्या कश्मीर की जनता को लंबे समय तक नागरिक और संविधान प्रदत्त आज़ादी से वंचित कर के आतंकवाद पर केवल सुरक्षा बलों के जरिये ही काबू पाया जा सकता है?
एक बंद और घुटता हुआ शहर, घरों की बंद खिड़कियां, उसकी दरारों से झांकते सहमे और उत्सुक चेहरे, डल गेट के आगे का ठंडा और धुंध भरा सन्नाटा, खाली शिकारे और बोट हाउस, कदम कदम पर लोहे के बड़े बड़े कोलैप्सेबल बैरियर, जिरह बख्तर पहने सुरक्षा कर्मियों की सतर्क और अनवरत खोजी निगाहें, अगर इनकी भाषा पढ़ने की आप को समझ है तो आप कश्मीर की वर्तमान दशा का अनुमान लगा सकते हैं।