ईश्वरचन्द्र विद्यासागर – नारी शिक्षा के लिये जनांदोलन करने वाले महापुरुष

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आज समाज में अक्सर नारी शिक्षा, महिला सुरक्षा, बाल विवाह, विधवा पुनर्विवाह, जैसे मुद्दों पर चर्चा, बहस, आंदोलन या मुहिम चलाए जाते है। जिस महिला जाति को कल तक कोई इज्जत – सम्मान नहीं मिलता था, आज वहीं महिलाएं हर जगह सबसे आगे रहती है।

महिलाओं को 1800 के दौर के संकीर्ण सोच वाले समाज से, आज के खुले विचारों वाले समाज तक ला पहुंचाने में कई लोगों ने अहम भूमिका निभाई है। इन्हीं में से एक थे ईश्वर चंद्र विद्यासागर।

नारी सशक्तिकरण और समाज में उनके वर्चस्व को बनाने के लिए ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने कई बड़े आंदोलनों की शुरुआत की थी। उन्हें एक महान समाज सुधारक, शिक्षाविद्, स्वतंत्रता सेनानी, लेखक, आदि कई रूपों में याद किया जाता है।

विद्यासागर जी का जीवन परिचय

बंगाल के मेदिनीपुर जिले के वीरसिंह गांव के अत्यंत गरीब ब्राह्मण ठाकुरदास बंधोपाध्याय के घर ईश्वर चंद्र जी का जन्म 1820 में हुआ था। शिक्षा के प्रति खासी रुचि उन्हें अपने पिता से विरासत में मिली थी। इसी कारण वह हर कक्षा में टॉप करते थे।

1841 में अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्हें फोर्ट विलियम कॉलेज में मुख्य पंडित के पद पर नियुक्ति मिली। यहां पर ₹50 महीना उन्हें प्राप्त हुआ करते थे। यहीं पर ईश्वर चंद्र को ‘विद्यासागर’ की उपाधि दी गई थी।

अपनी पूरी जिंदगी उन्होंने शिक्षा के प्रति कई योगदान दिए। 1858 में अपनी आखरी नौकरी छोड़ने के बाद वह साहित्य के सुधार तथा समाज सेवा में जुट गए। उसमें भी उन्होंने हमेशा शिक्षा को ही महत्व दिया।

29 जुलाई 1891 को वह वीरगति को प्राप्त हो गए। जिस पर मशहूर साहित्यकार और स्वतंत्रता सेनानी रविंद्रनाथ टैगोर ने कहा था, “लोग आश्चर्य करते हैं कि भगवान ने 40 लाख बंगालियों में एक मनुष्य को कैसे पैदा किया।” उनकी मृत्यु के बाद उनके घर “नंदन कानन” को उनके बेटे ने कोलकाता के मालिक परिवार को बेच दिया था। मगर उसके बाद बिहार के बंगाली संघ ने घर-घर चंदा जमा करके 29 मार्च 1974 को उस घर को खरीद लिया। जिसके बाद उसे एक बालिका विद्यालय के रूप में पुनर्जीवित किया गया।

बंगाल में की थी कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना

विद्यासागर ने बंगाल में श्री बेथ्यून की मदद से गर्ल्स स्कूल का गठन किया और खुद उसके संचालक बने। इसके बाद उन्होंने अपने खुद के खर्चे से मेट्रोपोलिस कॉलेज की स्थापना की थी। उन्होंने 1872 में कोलकाता में विद्यासागर कॉलेज की भी स्थापना की थी। इस कॉलेज के जरिए उन्होंने सिर्फ भारतीय शिक्षकों को मौका दिया था।

नारी शिक्षा के प्रति खासा ध्यान देते हुए उन्होंने बैठुने स्कूल की स्थापना की तथा इसके अंतर्गत कुल 35 स्कूल खुलवाए। इन सभी स्कूलों की आर्थिक जिम्मेदारी उन्होंने खुद पर ही ली थी।

नारी शक्ति को बढ़ावा देने के लिए किए थे कई अहम कार्य

नारी शिक्षा और उनका समाज में खास स्थान बनाने के लिए विद्यासागर जी ने कई कार्य किए थे। वह नारी शिक्षा के प्रबल समर्थक और प्रचारक थे। उन्होंने भारत की शिक्षा व्यवस्था में नारियों की शिक्षा में अहम योगदान देते हुए बंगाल में कई गर्ल्स कॉलेज और गर्ल्स स्कूल की स्थापना की थी। नारी शिक्षा के लिए उन्होंने बड़ा जन आंदोलन भी शुरू किया था।

विधवा पुनर्विवाह के भी वह समर्थक थे। विधवाओं को समाज में सम्मान से जीने का अधिकार दिलाने के लिए भी उन्होंने कार्य किए थे। उन्होंने 1856 में ब्रिटिश सरकार को विवश करके विधवा पुनर्विवाह कानून स्थापित करवाया था। कानून आने के महज दो-तीन महीने में ही उन्होंने बंगाल का पहला विधवा पुनर्विवाह करवाया था। 1860 तक, 4 साल में ही उन्होंने 25 विधवाओं का पुनर्विवाह खुद ही करवाया था। बल्कि उन्होंने अपने इकलौते बेटे की भी शादी एक विधवा से ही करवाई थी।

आज का सबसे प्रसिद्ध व सबसे ज्यादा उपयोग में लिया गया वाक्य “अपना काम स्वयं करो” ईश्वर चंद्र विद्यासागर का ही सिद्धांत था। उन्हें राजा राममोहन राय का उत्तराधिकारी माना जाता था।