भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है जहाँ अनेक धर्म, रंग, जाति के लोग साथ रहते है ऐसे में सभी लोगों के अधिकरो की पूर्ति, समानता -स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए ,मतभेदों को सुलझाने और न्याय दिलाने के लिए स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायालय की आवश्यकता महसूस हुई ,100 करोड़ से अधिक लोगो का विश्वास प्राप्त किए हुए ऐसी संस्था का निर्माण करना जो राज्य के न्याय के सिद्धांत को भली प्रकार पूरा करे ,आज़ादी के समय संविधान निर्माताओं के समक्ष ऐसा सर्वोच्च न्यायालय स्थापित करने की बड़ी चुनोती खड़ी थी।
तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय को जल्द से जल्द अस्तित्व में लाना बेहद ज़रूरी था। इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारत के गणतंत्र होने के दो दिन बाद ही 28 जनवरी 1950 को सर्वोच्च न्यायालय का गठन किया गया।
इसके उद्धघाटन समारोह का आयोजन संसद भवन के नरेंद्रमण्डंल (चेंबर ऑफ प्रिंसेज) भवन में किया गया, इससे पहले 12 साल तक उसी को संघीय अदालत के भवन के रूप में उपयोग किया गया था।
जनवरी 1950 से 1958 तक सुप्रीम कोर्ट का काम चलता रहा, इसी बीच सरकार सुप्रीम कोर्ट की नई इमारत के निर्माण का फैसला ले चुकी थी। राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट की नई आधारशिला तिलक मार्ग पर 29 अक्टूबर 1954 को रखी। इसको पूरी तरह तैयार होने में चार साल का समय लगा यह 1958 में बनकर तैयार हुई। इस साल 2018 में इसे साठ साल पूरे हो जाएंगे।
यह इमारत तिलक रोड पर 22 एकड़ जमीन के एक वर्गाकार भूखंड पर बनाई गई है। इसका डिज़ाइन तैयार करने की जिम्मेदारी केंद्रीय लोग निर्माण विभाग के तत्कालीन अध्यक्ष गणेश भीखाजी देवोलिकर को दी गई थी।
उनकी ये चुनौती बहुत बड़ी थी क्योंकि वह भारत की राजधानी में स्वतंत्र भारत की पहली अहम व बड़ी इमारत तैयार कर रहे थे। गणेश भीखाजी देवोलिकर ने इसका डिज़ाइन तैयार करते समय भारतीय स्थापना कला को आधार बनाया। व कुछ लोगो का मानना है कि यह इंडो-ब्रिटिश शैली में तैयार किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट परिसर को न्याय के तराजू की छवि देने की भीखाजी द्वारा कोशिश की गई , उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य भवन के केंद्रीय ब्लॉक को इस तरह से डिज़ाइन किया कि वह तराजू की लगे। इस वर्गाकार इमारत के पश्चिमी छोर पर तिलक मार्ग, पूर्वी छोर पर मथुरा रोड, दक्षिण में भगवानदास मार्ग व उत्तर दिशा में तिलक ब्रिज है।
इसकी मुख्य बिल्डिंग में एक ऊंची छत के साथ एक बड़ा गुम्बद है भारतीय स्थापत्य कला से प्रभावित इमारतों में खंबे, गुम्बद, जालियां अवश्य मिलती है सर्वोच्च न्यायालय की इस बिल्डिंग में यह सब कुछ है इंडो- ब्रिटिश शैली में बना होने के अनुसार कुछ लोगो का मानना है कि यह सब यूरोपीय कला का भी हिस्सा है।
1979 में इसमें दो नए हिस्से पूर्वी विंग व पश्चिमी विंग को भी जोड़ा गया । 20 फरवरी 1979 में ही सुप्रीम कोर्ट के परिसर में काले रंग की कांस्य की भारत माता की प्रतिमा स्थापित की गई, जिसे महान मूर्तिकार श्री चिंतामणि कार ने तैयार किया था। इसके बाद से यहाँ कोई और नया निर्माण नहीं किया गया।
संरचना
सुप्रीम कोर्ट परिसर में 15 अदालती कमरे है मुख्य न्यायाधीश की अदालत केंद्रीय विंग के मध्य में स्थित है। भारतीय संविधान द्वारा उच्चतम न्यायालय के लिए मूल रूप से दी गई व्यवस्था में एक मुख्य न्यायाधीश व सात अन्य न्यायधीशों को अधिनियमित किया गया था बाद में 1956 में इसे 11 किया गया व 1978 में 18 , 1986 में 26 , 2008 में इनकी संख्या 31 कर दी गई। सुप्रीम कोर्ट साठ सालो में 24000 से ज़्यादा अधिक निर्णय ले चुका है व अब तक इसके 45 मुख्य न्यायाधीश रह चुके है।
खंडपीठ – दो या तीन न्यायधीशों की छोटी न्यायपीठ (जिसे खंडपीठ कहते है) के रूप में मामलों की सुनवाई करते है।
संविधानिक पीठ- संवैधानिक मामले और ऐसे मामले जिनमे विधि के मौलिक प्रश्नों की व्याख्या देनी हो ,की सुनवाई पांच या इससे अधिक न्यायाधीशों की पीठ (संवैधानिक पीठ) द्वारा की जाती है।
सुप्रीम कोर्ट साठ सालों से भारतीय संघीय ढांचे और अनेक विविधताओं को न्याय व अनुशासन की डोर में बांधे हुए है यही भारतीय लोकतंत्र की गरिमा का सबसे बड़ा संकेतक है। अपने साठवें साल में भी इसकी प्रासंगिकता, न्याय, वचनबद्धता के साथ साथ इसकी इमारत की चमक भी पूरी तरह बरकरार है।