क्या रेमडेसिवर कोरोना रोगियों के लिए संजीवनी है?

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मीडिया पर खबरे और उनके साथ विज़ुअल बार बार दिखाए जा रहे हैं जिसमें लोगों की लंबी कतार है जो अपने रिश्तेदारों के लिए रेमडेसिवर लेने के लिए खड़े हैं। इस खबर से आम लोगों के ज़हन में यह बात घर कर जाती है कि यही दवाई है बस इस रोग के ख़िलाफ़ और इसे शरीर में डालते ही कोरोना बाहर हो जाता होगा। शरीर में या तो कोरोना रहता है या फिर रेमडेसिवर। लेकिन यह महज़ एक खबर है। खबर अच्छी है लेकिन यह कोई पक्का इलाज भी है ऐसा बिल्कुल नहीं है।

मैं आपको रेमडेसिवर पर हुए एक शोध के बारे में बताना चाहता हूं- ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ के अक्टूबर 2020 के अंक में एक शोध प्रकाशित हुआ था। जिसमें शोधकर्ताओं ने कोरोना रोगियों को रेमडेसिवर और प्लासबो (छद्म दवाई जैसे पानी के इंजेक्शन आदि) दिया यह देखने के लिए कि इससे रिकवरी में कितना अंतर आता है। उन्होंने पाया कि पानी का इंजेक्शन जिन रोगियों को दिया वे 15 दिन में अस्पताल से डिस्चार्ज हुए जबकि रेमडेसिवर दवाई जिन्हें दी गई वे 10 दिन में डिस्चार्ज हुए। मोर्टेलिटी रेट प्लासबो लेने वालों में 15% थी तो रेमडेसिवर लेने वालों में यह महज 4% ही कम थी यानी 11%। ज़ाहिर है कि रेमडेसिवर के यह कोई बहुत चमत्कारी परिणाम नहीं है।

यदि रेमडेसिवर की तुलना में प्लासबो की जगह कोई दूसरी दवाई जैसे सामान्य निमोनिया में दी जाने वाली एंटीबायोटिक या कोई फ़ेफ़डों के रोगों में दी जाने वाली हर्बल दवाई होती तो हो सकता था कि वह रेमडेसिवर से ज़्यादा बेहतर नतीज़े देती लेकिन चतुर व्यापारी ऐसा भला क्यों करेंगे। एक मूल बात हम सब याद रखें कि रेमडेसिवर या अन्य कोई भी दवाई एक प्रोडक्ट है, उसे बनाने वाली कंपनियां व्यापारी हैं और रोगी एक ग्राहक। और हर व्यापार में प्रोडक्ट बेचना ही एकमात्र लक्ष्य होता है। और हर प्रोडक्ट का एक जैसा प्रचार नहीं होता कुछ के लिए खबरें ही प्रचार का माध्यम होती हैं।

मेरा कहना बस यह है कि रेमडेसिवर यदि नहीं मिलती हैं तो आप निराश न हो। अभी जो अन्य विकल्प उपलब्ध हैं उन्हें लीजिए। अवसाद में मत डूब जाइये अगर यह दवाई नहीं मिल रही है आपके लिए या आपके रिश्तेदार के लिए तो। इस रोग में निराशा और डर बेहद घातक है दोस्तों। न तो पिछले साल वाली HCQ इसकी संजीवनी थी और न इस साल की रेमडेसिवर… अगले साल शायद कोई और नाम आ जाए।

यदि दुर्भाग्य से आप कोरोना की चपेट में आ गए हैं तो टीवी और अखबारों से दूर रहें, जब भी याद आए गहरी सांसें लें, उपलब्ध हो तो ऑक्सिजन लीजिए, रोज़ाना धूप में थोड़ी देर बिताएं, अच्छा और पौष्टिक भोजन लें, अपने चिकित्सक की देख रेख में लाइफ सपोर्टिंग मेडिसिन लें, हर्बल दवाओं (आयुर्वेद, होमेओपेथी या यूनानी) का भी उपयोग ज़रूर कीजिए।

– डॉ. अबरार मुल्तानी, लेखक और चिकित्सक