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इस जगह रहतीं हैं सैकड़ों निर्भया, इंसाफ कब होगा ?

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निर्भया के दोषियों को सजा मिल गई है, देश की मिडिया ने इससे खुब टीआरपी बटोरी है, तथाकथित मानवाधिकार संगठन और सियासी पार्टियाँ भी इससे अछुते नहीं रहे हैं, वहीं दुसरी तरफ बिलकिस बानो के दोषियों की सजा भी बरकरार रखी गई है लेकिन धर्म और जाति के आधार पर कोर्ट का दोहरा रवैय्या यहाँ भी देखने को मिला है, जहाँ निर्भया के दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई वहाँ बिलकिस के दोषियों को उम्रकैद हुई जबकि बिलकिस किसी भी मामले में निर्भया से कम मजलुम नहीं है, बहरहाल बिलकिस ने कोर्ट के इस फैसले को कबुल कर लिया है।

अब आइए जानते हैं देश की उन सैकड़ों निर्भया के बारे में

वो कौन हैं जानने से पहले निचे तसवीर में मौजूद इन पाँच महिलाओं को देखिये, ये हैं “नताशा राथर, इफराह बट, मुनाज़ा राशिद, समरीना मुश्ताक़ और इस्सर बतूल” जिन्होंने मिलकर एक किताब लिखी लिखी है जिसका नाम है “डू यू रिमेंबर कुनन-पोशपोरा”,

डू यू रिमेंबर कुनन-पोशपोरा किताब की लेखिकाये
“नताशा राथर, इफराह बट, मुनाज़ा राशिद, समरीना मुश्ताक़ और इस्सर बतूल”


किताब “डू यू रिमेंबर कुनन-पोशपोरा” क मुख्यपृष्ठ


जी हाँ यह कुनन पोशपोरा कशमीर के कुपवाड़ा जिले का वही गांव है जहाँ 23 फरवरी, 1991 को हमारी सेना सर्च आॅपरेशन के लिए गई थी और सेना ने गांव भर की महिलाओं का बलात्कार किया था. अनुमान था कि कुल 30 महिलाओं का बलात्कार हुआ है, प्रशासन और सेना ने इनकार किया था, जब अंतरराष्ट्रीय दबाव पड़ा तब लीपापोती जैसी जांच की गई, फिर जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बहाउद्दीन फारूकी की देखरेख में एक फैक्ट फाइंडिंग टीम कशमीर को गई जिसमें 53 महिलाओं ने कहा कि उनके साथ सैनिकों ने बलात्कार किया है, जिस अधिकारी को जांच सौंपी गई थी वह छुट्टी पर था, फिर उसका तबादला हो गया. जस्टिस फारूकी की टिप्पणी थी कि हमने अपने जीवन में ऐसा कोई केस नहीं देखा जिसमें प्राथमिक जांच से ही इनकार कर दिया गया हो।
बाद में प्रशासन ने सब आरोप खारिज कर दिए, अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने जांच प्रक्रिया पर सवाल उठाए लेकिन कुछ नहीं होना था, सो नहीं हुआ, 2011 में राज्य मानवाधिकार आयोग ने जांच करने और लोगों को मुआवजा देने की बात कही थी, जून 2013 में इस समूह की सक्रियता से प्रभावित होकर एक स्थानीय अदालत ने मामले में आगे की जांच करने और दोषियों की पहचान किए जाने के निर्देश सरकार को दिए. लेकिन पिछले साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने मामले की दोबारा जांच शुरू करने पर सेना की आपत्ति के बाद इस पर रोक लगा दी।

इन पाँचों महिलाओं की माने तो कशमीर की उन महिलाओं को आज तक इंसाफ नहीं मिला है और न ही कोई कानूनीकार्रवाई हुई है, जिसे इनहोने अपने इस किताब में दर्ज किया है, इनमें से एक लेखिका इस्सर बताती हैं, 2012 में हुए निर्भया कांड के बाद हमारा ध्यान इस ओर गया कि दिल्ली में हुई एक घटना ने पूरे देश में सनसनी फैला दी लेकिन कश्मीर के दो गांवों में महिलाओं के पूरे समूह के साथ हुए बलात्कार ने बीते वर्षों में शायद ही किसी का ध्यान खींचा होगा.’ इस फर्क को लेकर लेखिका कहती हैं की ‘एक ऐसे देश में जो सारी दुनिया में खुद के ‘सबसे बड़ा लोकतंत्र’ होने का दम भरता है, वहां सेना द्वारा किए गए बलात्कारों को माफ कैसे किया जा सकता है ?’
वहीं इन लेखिकाओं ने कुनन पोशपोरा की एक पीड़िता हमीदा से मुलाकात की तो हमीदा ने बताया की ‘उस रात जब सेना मेरे पति को उठा ले गई तब घर में मैं अपने दो छोटे बच्चों के साथ अकेली थी. सैनिकों ने मेरी गोद से मेरे छोटे बेटे को छीन लिया और मेरे कपड़े फाड़कर मुझे जमीन पर धकेल दिया… मेरा बेटा ये सब देख लगातार रो रहा था, वहीं मुझे कुछ पता नहीं था कि उन्होंने मेरे दूसरे बेटे को कहां रखा था. मेरे गिड़गिड़ाने के बावजूद उन्होंने मुझे पूरी रात नहीं जाने दिया.’ 1991 की उस भयावह रात को बयान करते हुए हमीदा रो पड़ती हैं. उस वक्त वे केवल 24 वर्ष की थीं”
आप भी सोचिये की वो क्या मंजर होगा जब एक पुरा गाँव निर्भया से भरा पड़ा था, उस घटना के बाद इस गाँव की महिलाओं की कहीं शादी नहीं हो पाती थी, गांव का सामाजिक बहिष्कार हुआ क्योंकि उनकी महिलाओं का बलात्कार हुआ था, वहां के सिर्फ दो बच्चे विश्वविद्यालय तक पहुंच सके थे, बाकी स्कूल से ही बाहर हो जाते थे, क्योंकि उन्हें बाहर शर्मिंदगी झेलनी पड़ती थी, उन पर ताने कसे जाते थे,
ऐसे ही निम्न घटनाए देखिये  – छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में आदिवासी महिलाओं के साथ यौन शोषण की मार्मिक घटना किसे याद नहीं होगी? – पुलिसकर्मियों पर नवंबर 2015 में बीजापुर जिले के पेगदापल्ली, चिन्नागेलुर, पेद्दागेलुर, गुंडम और बर्गीचेरू गांवों में महिलाओं का यौन उत्पीड़न करने के आरोप।
– अहमदाबाद के गांधीनगर सीआरपीएफ कैंप में एक नाबालिग लड़की से बलात्कार का मामला सामने आया था।
– अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, असम,नगालैंड, मिजोरम,त्रिपुरा और जम्मू-कश्मीर मे अनेक ऐसी जघन्य घटनाये सुनने और देखने को मिली जिसके चलते इरोम चानु शर्मिला को सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम 1958 इन जगहो से हटाने के लिये भुख हडताल पर बैठना पडा और वह लगभग सोलह साल संघर्षरत रही। मणिपुर में तो मनोरमा के साथ बलात्कार और हत्या तो याद ही होगा जिसके बाद महिलाओं ने नग्न होकर प्रदर्शन किया था, उनके हाथ में पोस्टर थे ‘इंडियन आर्मी रेप अस’. के।
– छत्तीसगढ़ में सैनिकों ने नौ महिलाओं के स्तन निचोड़कर उनका कौमार्य चेक किया था. गांव में स्त्रियों के कौमार्य से सेना का क्या लेना देना था ?
यह उदाहरण केवल इस लिए पेश किया हूँ ताकि कोई ये न कह सके की कश्मीरियों पर ही सेना की बर्बरता का इलजाम कयों लगाया जाता है (कई लिंक कमेन्ट बाॅक्स में हैं)।
अब सोचिये की 29 राज्यों वाले देश के एक राज्य का एक पुरा गाँव निर्भया से भरा पड़ा था और किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया, वो लड़ती रही लेकिन किसी ने उनके लिए कैंडल मार्च नहीं निकाला, वो चीखती रही परंतु किसी भी मिडिया चैनल ने उन्हें प्रमुखता नहीं दी, वो रोती रही पर किसी भी सियासतदानों की भावनाएं आहत नहीं हुई।
आज भी उनकी आंखे इंसाफ की तलाश में हैं, आज भी उनकी संतानों को एक नई किरण की उम्मीद है, लेकिन कोई भला कयों उनकी आवाज़ बने ? कयोंकि ना तो यहाँ मिडिया को टीआरपी, न सियासतदानों को वोट और न तथाकथित प्रगतिशील समाज को वाहवाही।
अरे छोड़िए साहब, हम भारतीय हैं, कशमीर भारत का हिस्सा है, हमें कशमीर चाहिए, चाहे इसमें कश्मीरी रहें या न रहें।
हिंदुस्तान जिंदाबाद।