क्या जयंत का साथ देगा जाट समाज ?

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ती जा रही है,किसान आंदोलन से लेकर बीते 7 महीनों में हालात बदल से गये हैं,देश का “जाटलैंड” कहे जाने वाले इस क्षेत्र में जहां 2014 से लेकर 2017 तक और और फिर 2019 तक भाजपा ने एकछत्र राज किया,और संजीव बालियान,सत्यपाल सिंह जैसे नेताओं का दौर आया ,किसान आंदोलन के बाद से अब माहौल बदला सा लग रहा है।

 

जयंत चौधरी ( Jayant Chaudhary ) किसान आंदोलन में “हीरो” की तरह ज़मीन पर उतर आए हैं,उन्होंने लगातार किसान रैलियां और जनसभाएं करते हुए राज्य और केंद्र सरकार पर खुल कर निशाना साधा है,उन्होंने,किसान,गन्ना,गरीब की बात करते हुए जनता के बीच उतर जाना शुरु कर दिया है,लग रहा है जयंत 2013 के ज़ख्मों को भर देंगे, लेकिन क्या “रालोद” से दूरी बना चुके जाट समाज को वो दोबारा अपने साथ ला पायेंगे?

भाजपा ने जाट और गुर्जर समाज मे पकड़ बनाई

भाजपा ने 2013 से लेकर 2021 के साथ तक लगभग 9 साल के समय मे वेस्ट यूपी की दो बड़ी आबादी गुर्जर और जाट को समाज को अपने साथ जोड़ने की पूरी कोशिशें की हैं और बहुत हद तक वो उसमें कामयाब भी हुई है,मौजूदा वक़्त में संजीव बालियान ( Sanjiv Baliyan), सत्यपाल सिंह ( Satyapal Singh) , राजा भारतेंद्र, सुरेंद्र नागर, मोहित बेनीवाल से लेकर योगेश धामा उर प्रदीप सिंह जैसे दिग्गजों को भाजपा ने सम्मान और पद दोनों दिए हैं।

जयंत चौधरी के लिए ये बहुत बड़ी चुनौती है कि वो अपने खो चुके समर्थकों को वापस लाये और वो भी तब वापस लाये जब भाजपा ने गली गली और बूथ बूथ लेवल तक अपना कार्यकर्ता तैयार कर लिया है,क्या ये मुमकिन हो सकता है? असल मे ये काम लोहे के चने चबाने जितना मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नही है।

इस विषय पर पश्चिम यूपी की सियासत अखबार की संपादक नाहिद फात्मा जी से हमने बात की वो बताती हैं कि “बीते 20 सालों में मैंने देखा है कि वेस्ट यूपी की राजनीति रालोद (Rashtriya Lokdal)  के इर्द गिर्द घूमती है,चाहे हार हो या जीत रालोद यहां है,लेकिन क्या रालोद के नेता यहां हैं? भाजपा से मुकाबले का दम रखने वाले रालोद के पास संगठन,बूथ लेवल तक कि तैयारी भाजपा के मुकाबले भी नही है तो ये मुकाबला कैसे होगा? और कैसे जाट समाज रालोद के साथ आएगा?

वहीं ज़िला मुज़फ्फरनगर ( Muzaffarnagar) से ताल्लुक रखने वाले विपिन बालियान जो राष्ट्रीय जाट संरक्षण समिति के अध्यक्ष हैं हमें इस मुद्दे पर बात करने पर ये बताते हैं की “जाट समाज जयंत चौधरी को वोट तब देगा जब जयंत चौधरी खुद को खुल कर “जाट” कहें,वो अब तक खुद को जाट नहीं कहते हैं,और ऐसा करके वो गलती कर रहे हैं।

जयंत चौधरी को ये समझना चाहिए की वेस्ट यूपी में आज भी ये स्थिति है कि अगर समाजवादी पार्टी ( Samajwadi Party) से कोई मुस्लिम चुनाव लड़ेगा तो जाट उसे वोट नहीं देगा जबकि रालोद से कोई मुस्लिम चुनाव लड़ेगा तो उसे वोट देता है,ये मौजूदा स्थिति है जिसे रालोद समझने की कोशिश नहीं कर रहा है।

मुस्लिम -जाट गठजोड़ पर रालोद की निगाहें हैं

दरअसल जयंत चौधरी जानते हैं कि रालोद के लिए जो सहानुभूति जो कम हो गयी थी बढ़ी है,किसान आंदोलन और हाथरस में लाठीचार्ज के बाद बदले हालात इसकी मिसाल है, लेकिन बहुत बड़ा सवाल ये उठता है कि क्या ये सहानुभूति इतनी बढ़ पाई है कि ज़ीरो सीट वाली रालोद को 20 से 25 सीट जिताकर फिर से “किंगमेकर” बना सके,ये बहुत अहम सवाल है।

 

क्योंकि 2019 का लोकसभा रिज़ल्ट का चुनाव हमारे पास ही है ,बसपा, सपा और रालोद के मज़बूत गठबंधन के बावजूद भी मुजफ्फरनगर जैसी सीट स्वर्गीय अजीत चौधरी हार गए,और उनकी सीट पर लड़ रहे उनके पुत्र जयंत बहुत करीब आकर हार गए,तो अब तो इस 2022 के गठबंधन में तो बसपा भी साथ नही है तो ये कैसे मुमकिन होगा कि इतनी ही भरपूर तादाद में जयंत और अखिलेश को वेस्ट यूपी में वोट मिल पायेगा?

अभी सब कुछ कहना आसान नही है क्योंकि जयंत चौधरी ये जान पा रहे हैं कि ये चुनाव उनके लिए आसान नही है और उनके अस्तित्व को बचाने वाला चुनाव है,इसलिए रालोद के अध्यक्ष बहुत सोच समझ कर यहां दांव खेल रहे हैं,देखना बस ये है कि ये सही बैठता है या फिर नहीं..

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