साल 1879… ब्रिटिश भारत में एक चुपचाप सी दिखने वाली लेकिन सामाजिक तौर पर बेहद क्रांतिकारी पहल हुई — पोस्टकार्ड सेवा की शुरुआत। यह केवल डाक विभाग की एक सेवा नहीं थी, बल्कि भारत में सस्ते और सार्वजनिकीकरण संचार की नींव रखने वाली ऐतिहासिक घटना थी। मात्र एक पैसे में संदेश भेजने की सुविधा ने आम आदमी को संवाद का हक दिया।

आज जब हम डिजिटल युग में वॉट्सऐप और ईमेल की बात करते हैं, हमें समझना होगा कि इस डिजिटल क्रांति से 100 साल पहले, भारत ने एक ऐसी क्रांति देखी थी जो कागज़, स्याही और एक पैसे से शुरू हुई थी।
ब्रिटिश राज में डाक व्यवस्था की पृष्ठभूमि
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और बाद में ब्रिटिश राज के दौरान भारत में डाक व्यवस्था धीरे-धीरे विकसित हो रही थी।
1837 में पहला भारतीय डाक अधिनियम आया, और 1854 में आधुनिक डाक टिकट प्रणाली की शुरुआत हुई। लेकिन डाक सेवा तब भी ज़्यादातर अमीरों, व्यापारियों और अधिकारियों तक सीमित थी।
डाक व्यवस्था की सीमाएँ:
- पत्र भेजना महंगा था।
- सामान्य जनता के लिए यह सेवा बहुत दूर की बात थी।
- ग्रामीण भारत में डाक घरों और पोस्टमैन की संख्या बेहद सीमित थी।
इन्हीं बाधाओं को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश पोस्टल विभाग ने पोस्टकार्ड सेवा शुरू करने का विचार किया।
1 जुलाई 1879: भारत में पोस्टकार्ड की विधिवत शुरुआत
1 जुलाई 1879 को भारत में सरकारी स्तर पर पोस्टकार्ड सेवा की शुरुआत हुई। इसे “भारत सरकार पोस्टकार्ड” (Government of India Postcard) नाम दिया गया और इसकी कीमत थी — मात्र एक पैसा।
यह एक ऐतिहासिक कदम क्यों था?
- सस्ती दर: एक पैसे में पत्र भेजने की सुविधा।
- सुलभता: कोई लिफाफा नहीं, कोई अतिरिक्त खर्च नहीं।
- तेज़ी: पोस्टकार्ड सीधे पढ़े जा सकते थे, जिससे छंटाई और डिलीवरी तेज़ होती थी।
- जनसामान्य की भागीदारी: आम किसान, मज़दूर, दुकानदार और छात्र भी अब पत्राचार कर सकते थे।
पोस्टकार्ड का प्रारंभिक स्वरूप
पोस्टकार्ड का प्रारंभिक डिज़ाइन अत्यंत साधारण था:
- साइज: 121mm × 77mm
- रंग: हल्का पीला या ब्राउन
- मुद्रण: बाईं ओर संदेश के लिए स्थान, दाईं ओर पते के लिए।
- छपाई: ऊपर “Post Card” लिखा होता था, और टिकट की जगह रानी विक्टोरिया की छवि होती थी।
पोस्टकार्ड में संदेश सार्वजनिक होता था, क्योंकि वह बिना लिफाफे के खुला होता था। लेकिन उस समय गोपनीयता से ज़्यादा सुलभता और affordability मायने रखती थी।
ग्रामीण भारत में संचार का नया युग
पोस्टकार्ड सेवा की शुरुआत के बाद ग्रामीण भारत में एक नया बदलाव आया:
- किसान अब मंडी के भाव जानने के लिए पत्र भेजते थे।
- विद्यार्थी परीक्षा की तिथि या परिणाम के बारे में पत्राचार करने लगे।
- प्रवासी मजदूर अपने गाँव वालों से संपर्क बनाए रखने लगे।
- परिवारों के बीच रिश्तेदारी का संवाद फिर से जीवंत हो गया।
लोक भाषा में संवाद:
पोस्टकार्ड पर लोग हिंदी, उर्दू, बांग्ला, तमिल, मराठी जैसी भाषाओं में लिखते थे। इससे यह सेवा भाषाई लोकतंत्र का प्रतीक बन गई।
प्रशासनिक और सामाजिक भूमिका
पोस्टकार्ड न सिर्फ व्यक्तिगत संचार का माध्यम था, बल्कि इसने प्रशासन और जनता के बीच पुल का भी काम किया।
सरकारी उपयोग:
- सरकारी नोटिस और घोषणाएं पोस्टकार्ड के ज़रिये भेजी जाती थीं।
- अदालत की तारीख़ें, भूमि संबंधित नोटिस – सब पोस्टकार्ड पर आते थे।
सामाजिक आंदोलन में योगदान:
- 20वीं सदी की शुरुआत में जब स्वतंत्रता आंदोलन तेज़ हुआ, तब पोस्टकार्डों का इस्तेमाल प्रचार और आंदोलन की सूचनाएं भेजने में हुआ।
- बाल गंगाधर तिलक और गांधी जी जैसे नेताओं ने जनसंपर्क के लिए पोस्टकार्ड का सहारा लिया।
व्यापारिक और साहित्यिक उपयोग
पोस्टकार्ड ने व्यापारियों और साहित्यकारों को भी एक नया मंच दिया:
व्यापारिक संवाद:
- व्यापारी ग्राहकों को रसीद, बिल, या उत्पादों की जानकारी भेजते थे।
- रेलवे कंपनियाँ, बीमा एजेंसियाँ और बैंकों ने भी पोस्टकार्ड के माध्यम से संपर्क साधना शुरू किया।
साहित्यिक अभिव्यक्ति:
- कई लेखक और कवि अपने विचार, शायरी और संदेश पोस्टकार्ड पर लिखकर भेजते थे।
- कुछ पोस्टकार्डों में कलात्मक चित्र और सांस्कृतिक प्रतीक भी छपने लगे थे।

पोस्टकार्ड का विकास और विविधता
1902 के बाद पोस्टकार्ड में कई बदलाव आए:
- पिक्चर पोस्टकार्ड शुरू हुए जिन पर ऐतिहासिक स्थल, त्योहार, नेता आदि के चित्र होते थे।
- अंतरराष्ट्रीय पोस्टकार्ड सेवा शुरू हुई, जिससे विदेश में पत्र भेजना आसान हुआ।
- मुद्रित विज्ञापन पोस्टकार्ड – व्यापारिक कंपनियाँ अपने उत्पादों का विज्ञापन पोस्टकार्ड के ज़रिए करने लगीं।
पोस्टकार्ड और स्वतंत्र भारत
स्वतंत्रता के बाद भी पोस्टकार्ड का क्रेज बना रहा:
- 1970 और 80 के दशक में पोस्टकार्ड भारतीय समाज का सामाजिक और भावनात्मक चेहरा बन गया था।
- दूरदर्शन के कार्यक्रमों के लिए लोग पोस्टकार्ड से संदेश भेजते थे।
- ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ सीरियल्स के लिए हज़ारों पोस्टकार्ड आते थे।
2000 के बाद: डिजिटल युग में पोस्टकार्ड की भूमिका
1990 के बाद जैसे-जैसे फोन, मोबाइल, ईमेल और सोशल मीडिया आए, वैसे-वैसे पोस्टकार्ड का उपयोग घटता गया। फिर भी:
- भारतीय डाक विभाग ने 2002 में मेघदूत पोस्टकार्ड (Meghdoot Postcard) शुरू किया — एक पैसे में ही।
- यह भारत का सबसे सस्ता संचार माध्यम रहा, हालांकि अब इसका उपयोग केवल प्रचार और सरकारी सूचनाओं के लिए ही हो रहा है।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व
आज भी पोस्टकार्ड को लेकर लोगों में nostalgia जुड़ा है। यह सिर्फ कागज़ का टुकड़ा नहीं था, बल्कि:
- जुड़ाव की भावना
- समय की सरलता
- हाथ की लिखावट का अपनापन
संग्रहणीय वस्तु:
कई संग्रहकर्ता (philatelists) पुराने पोस्टकार्डों को आज भी सहेजते हैं। इन पर लगी मुहरें, टिकट और संदेश — सब इतिहास के जीवंत दस्तावेज़ हैं।
निष्कर्ष: जब एक पैसे में भारत ने संचार की आत्मा पाई
1879 में शुरू हुई पोस्टकार्ड सेवा ने भारत को जोड़ा — गाँव से शहर, गरीब से अमीर, अनपढ़ से पढ़े-लिखे तक। यह एक ऐसी सेवा थी जिसने भारत में लोकतांत्रिक संचार की नींव रखी।
पोस्टकार्ड ने यह साबित किया कि संवाद सिर्फ सुविधा नहीं, एक सामाजिक अधिकार है।
आज भले ही हम स्मार्टफोन और सोशल मीडिया में उलझे हों, लेकिन भारत के डाकघर की एक छोटी सी खिड़की और वहां बिकने वाला एक पैसे का पोस्टकार्ड — हमें याद दिलाता है कि क्रांति हमेशा तेज़ और महंगी नहीं होती, कभी-कभी वो एक पैसे की होती है।