कश्मीर में हालात कैसे हैं? इस पर हमारा यह कह देना बहुत ख़राब हालात हैं या फिर हमारा ये कहना कि वहां तो हमेशा से ही हालात ख़राब रहते है, हमारा यह वाक्य ये वाकई में गलत होगा. हमारे जवान लगातार वहा शहीद हो रहे हैं. हर दिन हम सीमा पर हमारे जवानों के शहीद होने की खबर सुनते हैं.
लेकिन मीडिया में हल्ला तभी होता है जब आकड़े बढ़ जाते है.और फिर तो इसमें नेता भी घुस जाते है और बयान देते हैं. अभी हाल ही में पाकिस्तान ने आंतकियो की घुसपैठ करवाने की साजिश रचकर जम्मू के राजौरी जिले के केरी सेक्टर में जमकर गोलाबारी की.
इसमें हमारी सेना के एक मेजर व तीन जवान शहीद हुए. व एक जवान गंभीर रूप से घायल हो गया. इससे हमारे देश के लोग एक बार फिर आक्रोशीत हुए. और इसका खुनी साजिश का बदला लेते हुए हमारी सेना ने पाकिस्तान के घर में घुस कर कार्रवाई की और पाक के तीन सैनिको को मोत के घाट उतारा. इसे हमारे देश के लोगों ने सर्जिकल स्ट्राइक-2 नाम दिया. हमारे देश में जश्न मनाने लगे. हमने ऐसा माना जैसे कोई हमने बहुत बड़ी जंग जीत ली हो. मगर क्या हमे ये भी पता है की पिछले 3 वर्षो में हमारे देश के कितने जवान शहीद हुए हैं? सारा जश्न फिखा पड़ जायेगा आंकड़े सुनकर.
मई, 2014 से अक्टूबर 2017 तक जम्मू कश्मीर में हमारे 183 जवान शहीद हो चुके हैं.और वहीं अगर 2 महीने और शमी कर लिए जाये यानि कि नवंबर और दिसंबर तो आंकड़ा 200 तक पहुँचता नज़र आता है. ये कोई 200 रन नही है जो रोहित शर्मा के 3 बार बनाए हुए हैं. ये 200 जवान है जो शहीद हो गए हैं. यानि 200 घर उजड़ गये है, वो भी बिना किसी जंग के. आपको कारगिल युद्ध तो याद ही होगा. वैसे कोई भारतीय उसे भूल भी नही सकता. मई 1999 से आधी जुलाई तक चले इस युद्ध में रक्षा संसाधनों के इस्तेमाल में देश को 15 सौ करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करने पड़े थे और इस युद्ध में 527 जवानों ने अपने देश के लिए प्राण न्यौछावर कर दिए थे.
ये तो फिर भी एक युद्ध का था. तो कश्मीर के आंकड़ो को देखकर क्या माना जाए? क्या ये मने की कश्मीर में भी इस वक़्त एक युद्ध ही चल रहा है. और ये आंकड़े भी मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद के हैं.
दरअसल नोएडा के आरटीआई एक्टिविस्ट रंजन तोमर ने होम मिनिस्ट्री से आतंकवाद से जुड़े चार सवाल पूछे थे. इस पर होम मिनिस्ट्री ने अपना जवाब दिया –
होम मिनिस्टर से पूछे गए चार सवाल –
सवाल – मोदी सरकार के तीन साल में कितनी आतंकी वारदातें हुईं?
जवाब – मई, 2014 से मई, 2017 तक 812 आतंकवादी घटनाएं हुईं. इनमें हमारे 62 नागरिक मारे गए. 183 जवान शहीद हुए.
सवाल – मनमोहन सरकार (यूपीए) के आखिरी तीन साल में कितनी आतंकी घटनाएं हुईं?
जवाब – मई, 2011 से मई, 2014 के बीच में जम्मू एवं कश्मीर में 705 आतंकवादी घटनाएं हुईं. 59 आम नागरिक मारे गए. 105 जवान शहीद हुए.
सवाल – मनमोहन सरकार ने आतंकी घटनाओं से निपटने के लिए आखिरी तीन साल में कितना फंड जारी किया?
जवाब – आतंकी घटनाओं से निपटने के लिए होम मिनिस्ट्री ने 850 करोड़ रुपए जारी किए. आंकड़ा मई, 2011 से मई, 2014 के बीच का है.
सवाल – मोदी सरकार ने अपने शुरुआती तीन साल में आतंकी घटनाओं को रोकने के लिए कितना फंड जारी किया?
जवाब – 1,890 करोड़ रुपए जारी किए. यह आंकड़ा मई, 2014 से मई, 2017 तक का है.
वैसे हमारा यूपीए सरकार और मोदी सरकार की तुलना करना भी गलत होगा. क्योंकि मोदी सरकार को इसीलिए चुना गया था ताकी हमारे जवान शहीद नहीं हो. और अगर एक शहीद भी हुआ तो 10 सर कलम करके लायेंगे. हमारे देश में ऐसा एक भी मुद्दा नहीं है, जिस पर राजनीति न हो.क्योंकि चाहे कोई भी मुद्दा हो हमारे नेता उसमे घुस ही जाते है. जब मनमोहन सरकार के समय जवान शहीद हो रहे थे, तब बीजेपी ने कहा था कि ये मौन-मोहन सरकार है. सुषमा स्वराज ने कहा था एक सर के बदले 10 सर कलम करेंगे.लेकिन स्तिथि देखकर लगता है की बातों के साथ साथ नीतिओ को भी जंग लग गया हो.और ये बात सिर्फ सुषमा स्वराज ने ही नही हमारे पीएम मोदी साहब ने भी कही थी कि पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देंगे. लेकिन यह तो उल्टा हुआ साहब तो पाकिस्तान में जाकर केक खाकर आ रहे है, सायद इनकी भाषा में ये ही जवाब है. वैसे आपको क्या लगता है पाकिस्तान को जवाब मिला है? ये आप सोच ले. क्योंकि अगर जवाब मिलता तो पाकिस्तान बार-बार ये नापाक हरकत नहीं करता. मगर यहाँ तो पाकिस्तान 15 अगस्त के दिन भी गोलीया बरसाता नज़र आता है. जब प्रधानमंत्री मोदी शपथ ले रहे थे, और हमारे यहा उनके आका की महमान नवाजी चल रही थी. उस दिन भी सीमा पर सीज़फायर उल्लंघन हुआ.
कुछ तो ऐसे महाश्य भी हैं हमारे देश में जो इन शहीदों के आंकड़े देख कर कहते हैं कि सेना में जवान तो शहीद होंगे. अरे भैया आदरणीय नेताजी सेना में जवान मरने के लिए नहीं मारने के लिए भर्ती होता है. अगर कोई जवान युद्ध में शहीद हो और उस युद्ध का नतीजा निकले कि भारत ने इस युद्ध में फतह हासिल की, तब तो ये बात समझ आती है. मगर यहाँ तो कोई नतीजा ही नहीं नज़र आता. ना तो कश्मीर में हालात सुधरते दिखाई देते हैं? ना ही पाकिस्तान अपनी हरकतों से बज आया और ना ही आतंकी गतिविधियां बंद कर रहा है. वाकई में अगर सरकार खुछ करना चाहती है तो अब उसे कुछ नहीं, बल्कि बहुत कुछ करने की ज़रूरत है.