ये भी गज़ब है कि हिन्दी दिवस पर दो गुट एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते हैं। पहले हिन्दी माध्यम से पढ़े जो बोलते हैं कि हिन्दी दिवस पर सबसे ज़्यादा बधाईयां वे ठेलते हैं जिनको पता ही नहीं समबाहु विषमबाहु राक्षस हैं या ज्यामितीय संरचनाएं। कभी पढ़े होते हिन्दी माध्यम से तो समझते पीड़ा।
दूसरे कॉन्वेंट ब्रांड हैं जो कहते हैं कि हिन्दी बोलने वाले कुंठित लोग ही सबसे ज़ोरदार पैरवी करते हैं हिन्दी की क्योंकि अंग्रेज़ी में हाथ तंग होता है हालांकि अरमान दिलो जान से उन्हीं की तरह फर्राटेदार इंग्लिश बोल पाने का होता है।जो खुद अंग्रेज़ी नहीं बोल पाते, अपनी खुन्नस मिटाने को दूसरों को गरियाते हैं जबकि खुद हीन भावना से ग्रस्त होते हैं।
एक तीसरा गुट भी होता है जो खिचड़ी होता है। हिंदी अति सुंदर, निःशब्द, मार्मिक, हॄदयस्पर्शी, नमन है, श्रध्दांजलि,हार्दिक बधाई टाइप होती है और इंग्लिश नाइस पिक, ब्यूटीफुल, वॉव, ऑसम, थैंक यू टाइप। ये सीज़न के हिसाब से पाले बदलते रहते हैं और दोनों गुटों की बराबर हौंसला अफ़ज़ाई करते हैं।
जो चौथा ग्रुप होता है, वह दोनों भाषाओं में ठीक ठाक होता है। हिन्दी भी अच्छी होती है, इंग्लिश के साथ भी कम्फर्टेबल होते हैं। वे अक्सर नो कमेंट्स मोड में पाये जाते हैं।
इसके अलावा एक पाँचवा ग्रुप भी है जो कॉन्वेंट से पढ़ा होता है और अचानक से हिन्दी की ओर हनुमान कूद लगा देता है। जो स्कूल के बाद आयुर्वेद में एडमिशन ले लेता है। फिर हिन्दी ही नहीं पीएचडी लेवल की संस्कृत से पाला पड़ता है। eggshell को अंडे का छिल्का नहीं, कुक्कुटाण्डत्वक, supraclavicular को गर्दन के ऊपर का भाग नहीं, ऊर्ध्वजत्रुगत, heart valves त्रिकपर्दीय कपाट, द्विकपर्दीय कपाट, फुफ्फुसीय कपाट, लिवर में सूजन यकृतददाल्योदर पढ़ते पढ़ते सिर में दिल में सबमें दर्द होने लगता है, सॉरी शिरःशूल, हॄदशूल।सब्जेक्ट बुक्स भी भैषज्य रत्नावली, द्रव्यगुण विज्ञान, भिषककर्मसिद्धि, अष्टाङ्ग हॄदय। दवाइयां भी महाभयंकर, महावातविध्वन्सन रस, श्वाकासचिन्तामणि रस, महाविषगर्भ तैलं, महामंजिष्ठादि क्वाथ, पार्थ्यारिष्ट, देवदार्व्यादि क्वाथ, सप्तामृत पर्पटी, मकरध्वज वटी, किराक्तिकतादि क्वाथ….. तो सभी कॉन्वेंट छाप आततायी नहीं होते, कुछ पीड़ित भी होते हैं….
अंत में यही कहेंगे – भाषा नहीं सिखाती किसी से बैर रखना. एक भाषा के महिमामंडन के लिये दूसरी को निकृष्ट बताना कतई आवश्यक नहीं….