गुजरात चुनाव के परिणाम आ गए है,चुनाव आयोग की वेबसाइट के अनुसार भाजपा को बहुमत मिला है और भाजपा के राष्ट्रीय अध्य्क्ष ने वहां सरकार बनाने के ऐलान कर दिया है । भाजपा छठी बार लगातार गुजरात मे सरकार बनाने जा रही है,इस बार मुक़ाबला मोदी और राहुल का आमने सामने था और परिणाम बता रहें है कि मोदी जी राहुल के सामने अब भी मज़बूत स्थिति में है ।
हिंदुत्व के मुद्दे पर कांग्रेस ने भाजपा का क्लोन बनने की कोशिश की
लेकिन क्या ये चुनाव सिर्फ भाजपा अपनी “गुड गवर्नेंस” पर जीती या राहुल के “जनेऊधारी” से जीती ? ये विचार करने वाला मुद्दा है,चुनाव परिणाम आने से पहले एनसीपी के नेता नवाब मालिक ने कांग्रेस के लिए कहा था कि “कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व का इस्तेमाल कर रही है” क्योंकि भाजपा तो अपने “हिंदुत्व” एजेंडा के साथ चल रही थी लेकिन कांग्रेस क्यों “क्लोन” बनने पर तुल गयी? क्यों भाजपा के उकसाने पर कांग्रेस के राहुल गांधी ने खुद को “ब्राह्मण” घोषित किया ?
मंदिर जाने की होड़ में छोड़ दिए गए असल मुद्दे
क्यों लगातार मंदिरों में जाने की होड़ में राहुल में रहें और असल मुद्दे कृषि,विकास और रोज़गार को इतनी तरज़ीह नही दी? क्यों कांग्रेस ये भूल गयी कि गुजरात मे दलित और मुस्लिम वोट बहुत अच्छी तादाद में है और ज़ाहिर है जब कांग्रेस भी भाजपा जैसी बोली बोलेगी तो इन समुदायों में असंतोष नही होगा क्या? शायद कांग्रेस भूल गयी कि पिछली बार जब उन्होंने राजीव गांधी के ज़रिए “सॉफ्ट हिंदुत्व” अपनाया था तब भी वो हारे ही थे और अभी तो सिर्फ गुजरात हारें है आगे और भी चुनाव है।
10 प्रतिशत मुस्लिम वोट को नज़रअंदाज़ करना पड़ा भारी
असल में जो एक मुश्त मुस्लिम वोट यानी 10 प्रतिशत मुस्लिम वोट कांग्रेस को मिला करता था वो कांग्रेस को अपनी लीक से हटने की वजह से नही मिल पाया, और यही वजह रही कि जो चंद सीटों का अंतर आया उससे कांग्रेस सरकार बनाने में नाकामयाब रही,ये विषय आधारित बात है कि कांग्रेस जो पिछड़ों,अल्पसंख्यक और दलितों के लिए पूरी क्षमता से बोलने और मुद्दों को उठाने में हर बार कोशिश करती है इस बार वो ऐसा नही था,और यही वजह रही कि दलित समुदाय सुर मुख्यत मुस्लिम समुदाय की वो तत्परता गायब रही ।
हद तो तब हो गयी जब दस प्रतिशत मुस्लिम आबादी का ज़िक्र तक नही हुआ। इसी का परिणाम है कि निर्दलीय उम्मीदवारों से लेकर,बसपा के उम्मीदवारों को औऱ कुछ और एक सीटों पर अन्य उम्मीदवारों को वोट गया और यही वजह रही कि कई सीटों पर अंतर 1500 तक रहा,क्योंकि ये वोट जो कांग्रेस को जाना था वहां नही जा पाया और इसका नुकसान ये रहा को जो कांग्रेस बहुमत की तरफ जाने को आतुर थी वो इन चंद चीजों की वजह से पीछे रह गयी और कांग्रेस को खमियाज़ा भुगतना पड़ा।
क्या पता अगर कांग्रेस ने पाटीदार और ओबीसी नेताओ की तरह मुस्लिम और दलितों नेताओं पर भी गहराई से नज़र रखी होती तो अभी तस्वीर कुछ और होती क्योंकि जिस तरह वोट शेयर आया है वो इसी तरह की तस्वीर बता रहा है ।मगर फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि कांग्रेस ने बड़ा नुकसान उठाया और वो भी अपने हाथों से ही क्योंकि हार जब इतने करीब से होती है तो ज़रूर सोचने पर मजबूर कर देती है और कांग्रेस को सोचना चाहिए कि वो “क्लोन” बनना चाहेगी या कांग्रेस।
असद शैख़