बात अप्रैल 1999 की है. उड़ीसा के कांग्रेसी मुख्यमंत्री गिरिधर गोमांग के एक वोट से वाजपेयी की एनडीए सरकार सदन के शक्ति परीक्षण में शिकस्त खा चुकी थी. वाजपेयी और आडवाणी भौचक्के थे. उनके पांवों के नीचे से जमीन खिसक गई थी. सिर्फ एक वोट, सिर्फ एक से वाजपेयी सरकार अल्पमत में आ गई थी और सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति भवन जाकर सरकार बनाने का दावा ठोक दिया था. सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति केआर नारायणन से मुलाकात के बाद दर्जनों कैमरे के सामने आत्मविश्वास से लबालब होकर कहा था- ‘हमारे पास 272 सांसदों का समर्थन है‘. ये वो जादुई नंबर था, जिससे केंद्र में सोनिया गांधी की सरकार बन सकती थी. सोनिया के इस ऐलान के साथ ही एनडीए खेमे में खलबली मच गई.फोन की घंटियां घनघनाने लगी. सब पता करने में जुटे कि सोनिया के साथ कौन-कौन हैं? 272 का आंकड़ा कैसे पूरा होगा? सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा पहले से ही उछाला जा रहा था. ऐसे में एनडीए नेताओं को कतई अंदाजा नहीं था कि 146 सीटों की पार्टी की मुखिया सोनिया गांधी खुद सरकार बनाने का दावा पेश करने इतनी जल्दी राष्ट्रपति भवन पहुंच जाएंगी.
दोनों खेमे जोड़-घटाव में लगे थे. वाजपेयी सदमे में थे. एक वोट से हारना उन्हें हजम ही नहीं हो रहा था. उधर कांग्रेस खेमे में मिठाइयां बंट रही थी. अर्जुन सिंह, डॉ मनमोहन सिंह, नटवर सिंह, प्रणब मुखर्जी समेत कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सोनिया गांधी के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए लालू यादव, हरिकिशन सिंह सुरजीत, मायावती, मुलायम सिंह यादव समेत सभी विरोधी दलों से लगातार बात कर रहे थे. कांग्रेसी नेताओं को ऐसा लग रहा था कि स्टेज सेट है. ताजपोशी के लिए रेड कारपेट बस बिछने ही वाला है. बीजेपी विरोधी दल न चाहते हुए भी काग्रेस की छतरी के नीचे आ ही जाएंगे.
तभी सबसे बड़ा खेल हुआ. खेल बाजी पलटने का. खेल सोनिया गांधी के सपनों में पलीता लगाने का. खेल 272 जुटाने के दावे को फुस्स करने का. वो 21-22 अप्रैल की रात थी. देर रात को वाजपेयी सरकार के रक्षा मंत्री और एनडीए के संयोजक जॉर्ज फर्नांडीज ने लालकृष्ण आडवाणी को फोन किया. उन्होंने कहा – ‘लाल जी, मेरे पास आपके लिए एक अच्छी खबर है. सोनिया गांधी सरकार नहीं बना सकती.‘
आडवाणी ने पूछा – ‘किस आधार पर आप ऐसा कह रहे हैं ?
जॉर्ज ने कहा- ‘बहुत जल्दी आप जान जाएंगे. दूसरे पक्ष का एक खास व्यक्ति आपसे मिलना चाहता है. परंतु ये मुलाकात आपके या मेरे घर पर नहीं हो सकती . हम लोग सुजान सिंह पार्क में जया जेटली के घर पर मिलेंगे. आप अपनी कार से मत आइएगा क्योंकि उससे सुरक्षा दस्ता आपके साथ होगा. जया आपको लेने आएंगी और आप उनकी कार में आएं.‘ आडवाणी अपनी कार छोड़कर जया की कार में सवार होकर किसी को बताए बगैर उनके घर पहुंचे. जो शख्स वहां बैठा मिला, उसे देखकर आडवाणी भी चौंक गए. वो थे समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव. इस वाकये का जिक्र करते हुए लालकृष्ण आडवाणी ने अपने किताब ‘MY COUNTRY , MY LIFE ‘ में लिखा है- जॉर्ज और मुलायम दोनों समाजवादी पृष्ठभूमि के हैं और लोहिया के अनुयायी रहे हैं. एक लंबे समय से दोस्त रहे और वीपी सिंह की सरकार गिरने के बाद अलग-अलग रास्तों पर जाने के बाद भी उनकी दोस्ती बनी हुई थी. कांग्रेस के धुर विरोधी जॉर्ज ने मुझसे कहा-‘ लालजी, मेरे दोस्त का ये पक्का वादा है कि उनकी पार्टी के 20 सांसद किसी भी हालत में सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने में सहयोग नहीं देंगे. मैं इन्हें अपने साथ लाया हूं ताकि आपको इस बात पर पूरा भरोसा हो सके.‘
आडवाणी ने आगे लिखा है कि उनके सामने भी मुलायम सिंह यादव ने सोनिया गांधी को समर्थन नहीं देने का अपना वादा फिर से दोहराया. लेकिन ये भी कहा- ‘आडवाणी जी मेरी एक शर्त है. इससे पहले मैं घोषणा करूं कि सरकार बनाने में हम सोनिया के साथ नहीं हैं, मैं आपसे एक वादा चाहता हूं कि उस हालत में एनडीए फिर से सरकार बनाने की कोई कोशिश नहीं करेगा. कोई दावा पेश नहीं करेगा. मैं चाहता हूं कि दोबारा चुनाव हो‘. आडवाणी ने मुलायम सिंह यादव को भरोसा देते हुए कहा- ‘ मुलायम सिंह जी, इस साहसिक निर्णय के लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूं. जहां तक दूसरी बात का सवाल है, तो एनडीए में भी लोगों का विचार यही है कि हमें सरकार बनाने के लिए दोबारा दावा पेश नहीं करना चाहिए. हमें मध्यावधि चुनाव का सामना करना चाहिए.’
आडवाणी, जॉर्ज और मुलायम की उस ‘गुप्त मुलाकात ‘ ने गुल खिलाया. कांग्रेस उधर अपने नंबर जोड़ने में लगी रही. इधर मुलायम सिंह यादव ने राजनीतिक दुश्मन के साथ हाथ मिलाकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को गच्चा देने का प्लान तैयार कर लिया था. कांग्रेस नेताओं को इसकी भनक तक नहीं थी. सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ मुलायम सिंह यादव की पूरी राजनीति को पैमाना मानकर उन्हें अपने पाले में मानकर बाकी दलों को पटाने -मनाने के खेल में लगी थी, तभी 23 अप्रैल को मुलायम सिंह यादव ने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर सोनिया की सरकार को सपोर्ट नहीं करने का ऐलान कर दिया. मुद्दा और बहाना विदेश मूल का बनाया. जबकि खेल कुछ और ही था. वामदलों ने भी कांग्रेस से हाथ खींच लिया. सोनिया गांधी की सारी प्लानिंग ध्वस्त हो गई. मुलायम सिंह ने उसी बीजेपी के साथ मिलकर सबसे बड़ी चाल चली, जिसके खिलाफ वो राजनीति कर रहे थे. सोनिया ने राष्ट्रपति से मिलकर 233 सांसदों की लिस्ट दी. दो दिन का फिर समय लिया लेकिन जो नहीं होना था, वो नहीं हुआ .दो दिन बाद तय हो गया कि अब चुनाव ही एक मात्र विकल्प है.
सोनिया गांधी की जीवनी लिखने वाले राशिद किदवई ने लिखा है कि सोनिया गांधी के इर्द -गिर्द घेरा बना चुके कांग्रेसी नेताओं ने उन्हें भरोसा दिया था कि किसी भी सूरत में बहुमत का आंकड़ा पूरा हो जाएगा, तभी सोनिया गांधी ने मीडिया के सामने अपनी जिंदगी का सबसे मूर्खतापूर्ण और अपरिपक्व ऐलान कर दिया था. किदवई ने ये भी लिखा है कि कांग्रेस मुख्यालय में तो बड़े नेताओं के बीच भावी सरकार में विभागों को लेकर भी दांव-पेंच शुरू हो गए थे. मनमोहन सिंह, अर्जुन सिंह, पवार, सिंधिया समेत कई नेताओं के बीच गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, उद्योग मंत्रालय, वित्र मंत्रालय से लेकर अहम मंत्रालयों के लिए होड़ भी शुरू हो गई थी. उन्हें लग रहा था कि बस अब सरकार बनने ही वाली है, तभी मुलायम सिंह ने उनके सपनों को मिट्टी में मिला दिया.
सोनिया की सियासी जिंदगी की ये सबसे बड़ी भूल थी. बिना सहयोगी दलों से बात किए, जल्दबाजी सरकार बनाने का ऐलान करके उन्होंने जो गच्चा खाया था, उससे उबरने में उन्हें समय लगा. लेकिन 2004 की सोनिया गांधी बिल्कुल बदली -बदली सी थी .एनडीए की हार के बाद जब यूपीए सरकार बनने जा रही थी , सोनिया को लोग भावी प्रधानमंत्री मान रहे थे, तब सबको चौंकाते हुए उन्होंने ताज मनमोहन सिंह के माथे पर रख दिया था. 1999 में उनकी छवि को जो धक्का लगा था 2004 में उनकी बिल्कुल अलग छवि देश -दुनिया के सामने आई. ऐसे कांग्रेस अध्यक्ष की छवि जिसने अपने हिस्से का ताज दूसरे के सिर पर रख दिया था.