देश की अर्थव्यवस्था गंभीर संकट की स्थिति में है अब सभी तरफ से बुरे संकेत मिलना शुरू हो गए हैं पेट्रोल डीजल की कीमतें आसमान छू रही है और डॉलर के मुकाबले रुपया पाताल की गर्त में गिरने की ओर अग्रसर है बैंको में एनपीए की समस्या इतनी भयानक है कि कई जानेमाने बैंक दीवालिया होने कि कगार पर है, राजकोषीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है.
इतिहास में ऐसा कभी भी नही हुआ है बीते 6 दिनों में रुपये में 1 रु 65 पैसे की गिरावट आई है , अरुण जेटली इसे स्वाभाविक स्थिति बताने पर तुले है लेकिन हम जानते हैं कि एक कमजोर मुद्रा हमेशा देश को नुकसान पहुंचाती हैं मुद्रा में गिरावट होने से सबकुछ महंगा हो जाता हैं.
रुपया कल 71.97 तक पुहंच गया, भविष्य के लिए संकेत और बुरे हैं एसबीआई की शोध रिपोर्ट ‘इकोरैप’ में कहा गया है कि रूपया अभी और गिरेगा क्योंकि रिजर्व बैंक फिलहाल विदेशी विनिमय बाजार में हस्तक्षेप नहीं करने की नीति अपनाएगा.
सिर्फ रुपये के गिरने की ही बात नही है भारत वर्तमान में निर्यात से अधिक आयात कर रहा है जो स्थिति को और बदतर बना रहा है व्यापार घाटा खतरनाक स्तर पर है.
बैंकिंग की हालत इस कदर खराब है कि चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीनों में आठ सहकारी बैंक दिवालिया हुए हैं जिससे ऋण बीमा कंपनियों को जमाकर्ताओं को करीब 143 करोड़ रुपए का भुगतान करना पड़ा.
आठ सहकारी बैंक अपने ग्रहकों को जमा का पुनर्भुगतान करने में असफल रहे. इन बैंकों में महाराष्ट्र के चार, कर्नाटक के तीन और गुजरात का एक बैंक शामिल हैं पिछले वित्त वर्ष के दौरान देश भर में 26 सहकारी बैंकों ने अपना परिचालन बंद कर दिया.
अर्थशास्त्री रुपये के गिरने से अधिक बढ़ते हुए चालू खाते के घाटे पर चिंतित हैं मौजूदा वित्त वर्ष में चालू खाता घाटा सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के 2.7 फीसदी तक पहुंच सकता है 2016-17 में सौ बिलियन डॉलर के करीब रहा चालू खाते का घाटा 2017-18 में 161 बिलियन डॉलर के स्तर पर पहुंच गया था, अब इस साल यह ओर अधिक तेजी से बढ़ रहा है.
अकेला यह तथ्य ही यह बताने को काफी है कि नोटबन्दी ओर जीएसटी ने देश के छोटे और मझौले उद्योग धंधों को बरबाद कर दिया है.