अफगानिस्तान में छिपने को मजबूर हैं पूर्व महिला जजें

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अफगानिस्तान में महिला अधिकारों की लड़ाई तो चल ही रही है। पर अब तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान की अदालतों में काम करने वाली महिला जज सजा के डर से छिपने को मजबूर हैं। बीबीसी हिंदी के हवाले से कई महिला जजों ने अपनी आप बीती बताई है।  

आपको बता दें कि सुरक्षा कारणों से सभी महिला जजों के नाम बदल दिये गए हैं, साथ ही उनके रहने की जगह गोपनीय ही रखा गया है। सालों जज के रूप में काम करने वाली मासूमा बताती हैं कि बीते कई सालों में वह बतौर जज अफगानिस्तान में काम कर रही थीं। अपने करियर में उन्होंने सैकड़ों पुरुषों को महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा, रेप, हत्या और प्रताड़ना के लिए सज़ा सुनाई थी। लेकिन तालिबान ने सत्ता में आते ही सभी कैदियों को रिहा कर दिया। 

जिसके बाद से उन्हें लगातार जान से मारने की धमकियां मिलने लगी हैं। वह बताती हैं मुझे अंजान नंबरों से मैसेज और वॉयस नोट्स आने लगे हैं। “तब आधी रात हो रही थी जब हमने सुना कि तालिबान ने जेल मे बंद सभी क़ैदियों को रिहा कर दिया है.”

“हम तुरंत भाग खड़े हुए। हमने अपना घर और सबकुछ वहीं पीछे छोड़ दिया।”

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मासूमा बताती हैं, बीते 20 सालों में अफ़ग़ानिस्तान में 270 महिलाएं जजों के रूप में काम कर चुकी हैं. इनमें से कई देश की प्रसिद्ध और ताक़तवर महिलाएं थीं जिन्हें लोग जानते थे। अब वह सभी अपनी जान बचाने के लिए छिपने को मजबूर हैं। 

मासूमा के घर छोड़ने के बाद उनके घर में कुछ तालिबानियों ने आकर पूछताछ की, पड़ोसियों ने जब उन पुरूषों का हुलिया बताया तो वह समझ गई कि आखिर कौन उन्हें ढूढंते हुए आया होगा।

अपराधी ने कहा वो मुझे ढूंढ लेगाः मासूमा

मासूमा ने बताया कि, जब तालिबानी सत्ता में नहीं थे, तो उन्होंने तालिबान के एक सदस्य को उसकी पत्नी की हत्या के जुर्म में 20 साल तक जेल में रहने की सजा सुनाई थी। सजा के समय उस शख्स ने मासूमा को धमकी दी थी कि वह जब भी जेल से रिहा होगा, तब मासूमा से अपना बदला जरूर लेगा। उस समय उन्होंने इस धमकी को गंभीरता से नहीं लिया। पर अब तालिबानी सत्ता आने के बाद उस अपराधी ने मासूमा को कॉल करके कहा कि उन्हें जल्दी ही ढूंढ लेगा।  

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बीबीसी की पड़ताल में यह बात भी सामने आई है कि कम से कम 220 पूर्व महिला जज अफ़ग़ानिस्तान में ही छिपी हुई हैं। सभी जजों ने लगभग एक ही जैसी बात बताई है। महिला जजों को धमकी देने वाले यह अपराधी वही लोग थे, जिन्हें तालिबानी शासन से पहले सजाएं दी गईं थी। इसी डर से कई महिला जजों को तो अपना नंबर बदलना पड़ा, साथ ही कुछ जज तो लगातार अपना ठिकाना बदल रही हैं। ताकि तालिबान उन तक पहुंच न पाए। 

सभी को माफी दे दी गई है माफी

हालांकि तालिबान के प्रवक्ता बिलाल करीमी ने इन सभी आरोपों के जवाब में कहा है कि “महिला जजों को बाक़ी महिलाओं की तरह ही बिना डर के साथ जीना चाहिए। किसी को भी उन्हें नहीं धमकाना चाहिए। हमारी स्पेशल मिलिट्री यूनिट्स इन शिकायतों की जांच करना चाहेंगी और अगर कोई उल्लंघन हुआ है तो कार्रवाई करेंगी।

साथ ही बिलाल करीमी ने कहा कि पिछली सरकार के सभी कर्मचारियों को आम माफी दे दी गई है। उन्होंने कहा, “हमारी आम माफ़ी एकदम सच्ची है लेकिन अगर कोई देश छोड़कर जाना चाहता है तो हमारा यह निवेदन है कि वे ऐसा न करें और यहीं अपने देश में रहे।”

करीमी मे आगे कहा कि क़ैदियों को जब जेलों से छोड़ा गया तो उनमें तालिबान से जुड़े अपराधियों की संख्या बहुत ही कम थी “नशा तस्कर, माफ़िया के सदस्यों के मामले में हमारा इरादा साफ़ है कि हम उन्हें तबाह करना चाहते हैं। हम गंभीरता से उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करेंगे।”

तालिबान की सत्ता आने के बाद सरकार के नुमाइंदो ने कहा था कि महिलाओं को शरीयत के मुताबिक अधिकार जरूर दिये जाएंगे, लेकिन अभी महिला अधिकारों को लेकर तालिबानी सरकार में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। यहां तक कि सरकार में भी किसी महिला को जगह नहीं दी गई है। वहीं स्कूलों को लेकर शिक्षा मंत्रालय ने पुरुष शिक्षक और बच्चे स्कूल लौटने की सिफारिश की है, लेकिन महिला स्टाफ़ और छात्राओं को अभी तक नहीं बुलाया गया। 

तालिबान की ओर से करीमी ने कहा कि वो इस बात पर फिलहाल कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते कि भविष्य में महिला जजों की कोई भूमिका होगी या नहीं। उन्होंने कहा, “महिलाओं के काम करने की स्थिति और मौक़ों के बारे में चर्चा जारी है।”

अफगानिस्तान के हालातों को देख कर ब्रिटेन मे रह रही पूर्व अफगान महिला जजों ने तालिबान शासन में फंसी सभी महिला जजों को सुरक्षित देश से बाहर निकालने की मांग की है। उन्होंने कहा “इन जजों में से कइयों के पास पासपोर्ट या सही काग़ज़ात नहीं हैं जो उन्हें देश छोड़ने में मदद कर सकें। लेकिन हमें इन्हें भूलना नहीं चाहिए, यह सभी बड़े खतरे में हैं।

अब बात जिस मासूमा से शूरू की थी उन्हीं पर वापस आते हैं वह कहती हैं कि “कई बार मैं सोचती हूं कि हम सब का क्या अपराध है? पढ़-लिखा होना? महिलाओं की मदद की कोशिश करना या अपराधियों को सज़ा देना?” “मैं अपने देश को प्यार करती हैं लेकिन अब मैं यहां क़ैदी हूं। हमारे पास पैसा नहीं है। हम अपने घर को नहीं छोड़ सकते हैं। ” वह कहती हैं, “मैं जब भी अपने छोटे बेटे को देखती हूं, तो मैं उसे यह नहीं समझा पाती कि वो बाक़ी बच्चों से बात क्यों न करे, या उनके साथ क्यों न खेले। वो पहले से ही डरा हुआ है।”

“मैं सिर्फ़ उस दिन के लिए दुआ कर सकती हूं जब हम दोबारा आज़ाद होंगे।”