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नज़रिया – कई राज्यों के शिक्षामंत्री भी नहीं जानते होंगे "फ़िराक गोरखपुरी" का असल नाम

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यूपी पुलिस भर्ती की परीक्षा में सवाल आया है कि उर्दू शायरी में फिराक़ गोरखपुरी के नाम से किसको जाना जाता है? यह सवाल शिक्षा मंत्रालय, देश के शिक्षण तंत्र का मुंह चिड़ा रहा है, क्योंकि 12th तक किसी भी उर्दू शायर को हिन्दी में पढ़ाया ही नहीं जाता। फिर छात्र को कैसे पता चलेगा कि फिराक़ कौन थे?  शायर थे या कवि थे या कहानीकार थे या फिर कोई राजा/मंत्री थे?
सच्चाई यह है कि शिक्षण तंत्र ने स्कूली किताबों के पाठ्यक्रम में फिराक़, महेन्द्र सिंह बेदी, अल्लामा इक़बाल, दाग़ देहलवी, कृष्ण बिहारी नूर, अल्ताफ हुसैन हाली, मिर्जा हादी रूस्वा, मीर तक़ी मीर, नज़ीर अकबराबादी, जिगर मुरादाबादी, मंटो और यहां तक कि मिर्जा असदुल्लाह खान ग़ालिब तक को भी कोई स्थान नहीं दिया, फिर छात्रों को कैसे पता चले कि ये लोग कौन थे? और इनका क्या योगदान था?

मैं दावे के साथ कहता हूं कि अगर फिराक़ गोरखपुरी का सवाल इस देश के शिक्षा मंत्री और प्रदेश के शिक्षा मंत्री से कर लिया जाये तो बगैर गूगल किये उनके लिये भी इस सवाल का जवाब देना मुश्किल हो जायेगा। 

दूसरा सवाल है कि भारत में अली बंधुओं शौकत एंव मोहम्मद अली ने किस आंदोलन का नेतृत्व किया था, अली बंधू कोई और नहीं बल्कि मौलाना मोहम्मद अली जौहर और मौलाना शौकत अली जौहर हैं, जंग ए आजादी के इन नेताओं के नाम पर यूपी में अगर कुछ बचा है तो वह सिर्फ आज़म खान द्वारा बनवाई गई मौलाना मोहम्मद अली जौहर यूनीवर्सिटी है। कोई बताये जरा क्या किसी छात्र ने 12th तक ‘अली बंधुओं’ का जिक्र पाठ्यक्रम की किस किताब में पढ़ा है?
इन सवालों को तैयार करने वाले को मैं सेल्यूट करता हूं कि उसने अभी तक इतिहास के नायकों को याद रखा है और पुलिस में भर्ती होने जा रहे छात्रों के सामने रखा है। भले ही वह छात्र इन सवालों के जवाब न दे पायें, (जैसा कि मुझे आभाष है कि अधिकतर छात्र इन सवालों के सही जवाब नहीं दे पाये होंगे) लेकिन वह इंसान तारीफ के लायक है, जिसने इन सवालों को प्रश्न पत्र में जगह दी है।

शिक्षा तंत्र को सोचना चाहिये कि वह पाठ्यक्रम में ऐसे नायकों को भी शामिल करें ताकि आने वाली पीढ़ी जानें कि ये लोग कौन थे? हमारे देश में जो सांप्रदायिकता बढ़ी है उसमें काफी हद तक स्कूली पाठ्यक्रम का भी योगदान रहा है। जैसे औरंगजेब मुग़ल बादशाह था उसने भारत पर 49 साल तक राज किया था, महाराणा प्रताप वीर थे और बहादुरी के साथ लड़ते हुए मुगल बादशाह अकबर से हल्दीघाटी का युद्ध हार गये थे। ये औरंगजेब ‘था’ और महाराणा प्रताप ‘थे’ यह अपने आपमें बहुत कुछ कह रहा है।

यह लेखक की मानसिकता को भी दर्शा रहा है। दूसरा पाठ्यक्रम की किताबों में 1857 की क्रान्ति का जिक्र तो मिलता है, लेकिन उसमें मंगल पांडे के अलावा उस बहादुर शाह जफर का नाम नहीं बताया जाता जिसने इस आंदोलन का नेतृत्व किया था और इस जुर्रत के लिये उन्हें अपने दोनों बेटों की कुर्बानी देनी पड़ी, वही बेटे जिनके सर अंग्रेजों द्वारा थाल में सजा कर मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के सामने पेश किये थे, यह भी नहीं बताया जाता कि 1857 में 25 हजार उलमा को अंग्रेजों द्वारा फांसी दी गई थी।
जंग ऐ आजादी का स्कूली पाठ्यक्रम में जिक्र होता तो उसमें डॉक्टर जाकिर हुसैन, मौलाना अबुल कलाम आजाद, खान अब्दुल गफ्फार खान, अशफाकउल्लाह खान का तो संक्षिप्त विवरण होता है, लेकिन ‘अली बंधू’ जो भारत की आज़ादी की मांग को लेकर इंग्लैंड तक चले गये थे उनका कहीं कोई जिक्र नहीं किया जाता, बत्तख मियां का जिक्र नहीं किया जाता। फिर छात्र को कैसे पता चलेगा कि ये लोग कौन थे? कैसे पता चलेगा इंक्लाब जिंदाबाद का नारा देने वाले शख्स का नाम मौलाना हसरत मोहानी था? कैसे पता चलेगा कि ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है’ का शायर/लेखक राम प्रसाद बिस्मिल नहीं बल्कि बिहार के अज़ीमाबाद के रहने वाले बिस्मिल अज़ीमाबादी थे?

राम प्रसाद बिस्मिल ने तो देश के लिये शहीद होते वक्त बिस्मिल अजीमाबादी की गज़ल के अशआर पढ़े थे। ऐसे बहुत से सवाल हैं और बहुत सी शख्सयितें हैं जिनके योगदान को भुला दिया गया और उनका नाम लेना भी गवारा नहीं किया गया। जब तक छात्रों को पाठ्यक्रम में देश की आजादी में सिर्फ उंगलियों पर गिने जाने लायक नाम और चेहरे ही पढ़ाये जाते रहेंगे तब तक ऐसा ही होता रहेगा।

शिक्षणतंत्र में बदलाव संसोधन की जरूरत है, और जरूरत है उन महान लोगों को भी पाठयक्रम में शामिल किया जाये जिनका देश के लिये महत्तवपूर्ण योगदान रहा लेकिन हमारी पाढ़ी, और हमारे बाद वाली पीढ़ी भी उनसे अंजान हैं। पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया का नारा तभी सफल हो पायेगा।

फिर से फिराक़ याद आये हैं जो कहा करते थे कि –

आने वाली नस्लें तुम पर फख़्र करेंगी हमअसरों
जब जब उनको ये ख्याल आयेगा तुमने फिराक़ को देखा है।

फिराक़ कोई एस्ट्रोलॉजर नहीं शायर थे तभी तो उन्हें मालूम नहीं था कि जिस शहर में पैदा होने पर उनका नाम रघुपति सहाय रखा गया और फिर उस शहर को फिराक गोखपुरी की वजह से दुनिया भर में ख्याती मिली उसी शहर के लोग उन्हें भूल जायेंगे, और नारा लगायेंगे कि गोरखपुर में रहना होगा, तो योगी योगी कहना होगा।

ग़ालिब शायद इसी दिन के लिये कहकर गये थे कि –

वो पूछते हैं कि कौन है ग़ालिब ?
कोई बतलाए कि हम बतलाऐं क्या?

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