व्यक्तित्व – कुछ बातें नेहरु के बहाने

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आज 14 नवम्बर है और आज ही के दिन, इलाहाबाद में जवाहरलाल नेहरू का जन्म वर्ष 1889 ई में हुआ था। उनके जन्मदिन पर उन्हें स्मरण करते हुए Ashok Kumar Pandey जी का यह खूबसूरत लेख पढ़ें।

जवाहर लाल नेहरु का ज़िक्र सोशल मीडिया, अखबारों और चंडूखानों में केवल 14 नवम्बर तक महदूद नहीं रहता। वह एक तरफ आज़ाद हिन्दुस्तान के निर्माता हैं तो दूसरी तरफ़ कश्मीर को राष्ट्र संघ में ले जाके उलझाने वाले, एक तरफ आधुनिक राजनेता हैं तो दूसरी तरफ के लिए चरित्रहीन। एक तरफ के लिए सेकुलरिज्म के प्रतीक हैं तो दूसरी तरफ के लिए भारतीय संस्कृति का विलोम, इन सबके बीच नेहरु असल में हैं क्या?

मुझे सबसे पहले भगत सिंह के लेख “साम्प्रदायिकता और उसका इलाज” का वह प्रसंग याद आता है जिसमें भगत सिंह पंजाब के किसी जगह की उस सभा का ज़िक्र करते हैं जिसमें एक मुस्लिम नेता बार-बार ख़ुदा का ज़िक्र करते हैं तो नेहरु सभाध्यक्ष के रूप में उन्हें टोकते हैं कि धार्मिक बातें कांग्रेस के मंच से मत कीजिए। विडंबना देखिये कि उनके दुश्मनों ने उन्हें मुस्लिम तुष्टीकरण के प्रतीक के रूप में बदल दिया!

फिर एक पिता के रूप में इंदिरा गांधी को लिखे उनके पत्र याद आते हैं। याद तिलंगाना में कम्युनिस्टों का वह क्रूर नरसंहार भी आता है जिसके नायक भले वल्लभ भाई पटेल हों पर प्रधानमंत्री के रूप में नेहरु का पूरा समर्थन था। कश्मीर में शेख साहब से उनकी दोस्ती याद आती है, याद आता है कि जब माउंटबेटन के सामने पटेल उस “सड़े” सेव को पाकिस्तान को देने पर लगभग सहमत हो गए थे तो नेहरु ने कश्मीरी नेतृत्व और जनता के साथ उसे भारत से जोड़े रखने और उसके सेकुलर फैब्रिक को बचाए रखने की कैसी कोशिशें की थीं। उनकी प्रतिबद्धता ही थी लोकतंत्र में और कश्मीरी जनता पर भरोसा कि मामला संयुक्त राष्ट्र में गया…फिर शेख साहब की गिरफ़्तारी..चीजें बहुत उलझी हैं।

नेहरु समाजवादी नहीं थे, उन अर्थों में तो बिलकुल नहीं जिन अर्थों में उस ज़माने में चीन या रूस समाजवादी थे। आर्थिक विकास का वह माडल असल में राजकीय पूंजीवाद था। उसकी ज़रुरत थी क्योंकि पूंजीपति जिस हाल में थे उन्हें जड़ें ज़माने के लिए सरकार का संरक्षण चाहिए था, इन्फ्रास्ट्रकचर विकसित करना उनके बस की बात नहीं थी, तो मिश्रित अर्थव्यवस्था के अलावा कोई चारा नहीं था।

लेकिन नेहरु सेक्युलर थे, एक आधुनिक बुर्जुआ…एक स्वप्नदर्शी। उन्होंने सिर्फ फैक्ट्रियां नहीं बनाईं, संस्थाएं बनाई, कला, संस्कृति, विज्ञान की आधुनिक संस्थाएं। सज्जाद ज़हीर जब पाकिस्तान की जेल में न हिन्दुस्तान के नागरिक थे न पाकिस्तान के तो वहां इन्कलाब करने भेजे गए उस अदबी सिपाही को हिन्दुस्तान वापस लाने वाले नेहरु थे। नेहरु थे जिन्होंने हर तरह के दक्षिणपंथ के खिलाफ पार्टी के भीतर और बाहर लड़ाई लड़ी और कल किसी ने जब लिखा कि पाकिस्तान और हिन्दुस्तान के बीच का फ़र्क नेहरु है, तो मैं उससे पूरी तरह सहमत था/हूँ।  धर्म और जाति से मुक्त गैर कम्युनिस्ट नेताओं में वह अनूठे हैं, उस ब्राह्मणवादग्रस्त समय में उनका होना एक ब्लिस था।

और मुझे एडविना माउंटबेटन का वह अधेड़ प्रेमी भी याद आता है. प्रेम सिर्फ एक मनुष्य कर सकता है। एक संवेदनशील मनुष्य, राजनीतिकों के प्रेम प्रसंगों से सारी दुनिया परिचित है। उससे ज्यादा व्याभिचार से, लेकिन नेहरु और एडविना का प्रेम व्याभिचार नहीं था। प्रेम था रूहानी, जिस्मानी हो न हो मुझे फ़र्क नहीं पड़ता। जब आष्ट्रेलियाई राजनायिक की पत्नी का सिगरेट जलाते नेहरु की फोटो को एडविना के साथ का बता के संघी जमात उनके चरित्र को लांछित करती है तो वह अपनी स्त्री विरोधी मनुवादी मानसिकता के चलते। नेहरु एक आधुनिक पुरुष थे, स्त्री में प्रति स्वाभाविक सम्मान से भरे. यह उन्हें उस दौर के तमाम तमाम दूसरे लोगों से अलग करता है।

मुझे ग्लिम्प्सेज़ आफ वर्ड हिस्ट्री और डिस्कवरी आफ इंडिया याद आती है जो एक कवि का गद्य है। तमाम बौद्धिक कमजोरियों और भावनात्मक भटकावों के बावजूद वह मुझे एक प्रवाहमान और संवेदनशील गद्य लगता है, वह संदर्भ पुस्तक नहीं लगती, इन्डियन आइडियोलाजी में पेरी एंडरसन ने इसकी कमियों पर पर्याप्त ध्यान दिलाया है, इसके बावजूद मुझे उन्हें पढ़ना अच्छा लगता है।

वह मेरे मेंटर तो छोडिये, वैचारिक मित्र भी नहीं, . लेकिन अगर तमाम मुद्दों पर शत्रु भी हैं तो सम्माननीय। जिनसे बहस की जा सकती है…जिनके साथ चाय पी जा सकती है। जिनसे असहमत होके बिना सर कटाए निकला जा सकता है। उनके जन्मदिवस पर मैं उन्हें सम्मान से याद कर रहा हूँ।

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