सलीम अख्तर सिद्दीकी
उत्तर प्रदेश में हो रहे निकाय चुनाव में एक बार फिर ईवीएम पर सवाल उठे हैं। मेरठ और कानपुर से खबरें आई हैं कि ईवीएम का कोई भी बटन दबाने पर वोट कमल के सामने वाली लाइट जल रही थी। मेरठ से तो बाकायदा एक वीडियो भी वायरल हुआ, जिसमें साफ दिख रहा था कि हाथी वाला निशान दबाने पर कमल वाले निशान की लाइट जल रही थी। ईवीएम पर कोई पहली बार सवाल नहीं उठे हैं। खुद भाजपा ने 2009 का आम चुनाव हारने के बाद ईवीएम पर सवाल उठाए थे।
एक भाजपा नेता तो बाकायदा इस पर एक किताब भी लिखी थी कि कैसे ईवीएम को हैक किया जा सकता है। अब जब भाजपा पर ईवीएम से छेड़खानी करके चुनाव जीतने के आरोप लग रहे हैं, तो वह ईवीएम को फूलप्रुफ बता रही है। ईवीएम हो या कोई अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण, उनमें खुद भी गड़बड़ी हो सकती है और उन्हें अपने तरीके से ‘मोडिफाई’ भी किया जा सकता है। कोई भी इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों की रिपेयर करने वाला आम टेक्निनिशियन बता सकता है कि धूल और नमी इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों के लिए घातक होते हैं। उपकरण में धूल के साथ नमी होने का मतलब होता है उपकरण का सर्किट शॉर्ट हो जाना, जिससे कई तरीके के फॉल्ट आते हैं। यही वजह है कि बरसात के दिनों में इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण ज्यादा खराब होते हैं।
सभी जानते हैं कि हमारे देश में सरकारी चीजों का रखरखाव कैसा होता है। ईवीएम भी इसका अपवाद नहीं हो सकतीं। चुनाव निपट जाने के बाद वे कहां रखी जाती हैं, उनका धूल से कैसे बचाव किया जाता है, उनमें नमी न आए, इसके क्या उपाय किए जाते हैं, यह शायद ही कोई जानता हो। चुनाव आने पर ईवीएम को झाड़ पोंंछकर फिर से चुनाव में भेज दिया जाता है। उनको शायद ही सही तरीके से चेक किया जाता है। यही वजह है कि बूथों पर जाने के बाद कई ईवीएम चलती ही नहीं हैं, जिससे मतदान कई घंटों तक रुका रहता है। मेरठ में कई बूथों पर ईवीएम चली हीं नहीं, जिससे मतदान कई घंटों तक रुका रहा। यह भी संभव है कि जिन मशीनों में कोई भी बटन दबाने पर कमल के निशान की लाइट जलती है, वह छेड़छाड़ का नतीजा न होकर मशीन में आई कमी रही हो।
लेकिन सवाल यह भी है कि आखिर मशीन खराब होने पर कमल के निशान वाली ही लाइट क्यों जलती है? ये तो हुई ईवीएम में आने वाली स्वाभाविक खराबी आने की बात। अब सवाल यह है कि क्या ईवीएम को अपने हिसाब से सेट किया जा सकता है? हम एक सामान्य टीवी का उदाहरण लेते हैं। टीवी में एक माइक्रोकंट्रोलर होता है, जिसकी इस तरह प्रोग्रामिंग की जाती है कि जो आदेश उसे रिमोट से दिया जाए, वह उसे पूरा करे। जैसे हम रिमोट से चैनल बदलने वाला बटन दबाते हैं, तो चैनल बदल जाता है। आवाज कम ज्यादा करने का बटन दबाते हैं तो आवाज कम या ज्यादा होती है। इसको ऐसे भी किया जा सकता है कि अगर चैनल वाला बटन दबाएं तो आवाज कम या ज्यादा हो, आवाज वाला बटन दबाएं तो चैनल बदल जाए। इसी तरह ईवीएम में भी एक माइक्रो कंट्रोलर होता है, जिसकी इस तरह प्रोग्रामिंग की जाती है कि जिस निशान वाला बटन दबाया जाए, उसके सामने वाली लाइट तो जले ही वोट उस पार्टी के खाते में वोट भी दर्ज हो जाए, जिस पार्टी के निशान वाला बटन दबाया गया है।
क्या यह असंभव है कि ईवीएम में लगे माइक्रोकंट्रोलर को निकालकर अपने हिसाब से प्रोग्राम कराकर उन्हें ईवीएम में सेट कर दिया जाए? यह काम बहुत भारी नहीं है। इसे कोई भी कंप्यूटर प्रोग्रामर आसानी से कर सकता है। हम नहीं जानते कि ईवीएम मशीन कौन सप्लाई करता है? उसकी प्रोग्रामिंग कहां से होकर आती है? इसमें पारदर्शिता का अभाव शक पैदा करता है, जो आहिस्ता आहिस्ता यकीन में बदलता जा रहा है। सरकार को चाहिए कि वह ईवीएम पर मंडरा रहे शक को दूर करे। यह साबित करे कि ईवीएम से छेड़छाड़ संभव नहीं है। मात्र यह कह देने भर से काम नहीं चलने वाला कि ईवीएम से छेड़छाड़ संभव नहीं है। ईवीएम को ‘ईश्वरीय वरदान’ नहीं मिला हुआ है कि उसके साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। यह बेवजह नहीं है कि जनता के दिमाग में यह बात घर कर गई है कि भाजपा गुजरात ईवीएम की वजह से नहीं हारेगी।