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जीएसटी बकाया न मिलने से कई राज्यों के सामने कर्ज में डूबने की नौबत आ चुकी है

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GST वसूली में भारी कमी का खामियाजा राज्य सरकारों को उठाना पड़ रहा है। केंद्र सरकार के पास राज्यों के तीन महीने की जीएसटी हिस्सेदारी बकाया है। सूत्रों के मुताबिक, केंद्र सरकार ने पिछले तीन महीने से राज्यों को कंपनसेशन सेस यानी उनको होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं की है। जबकि जीएसटी कानून में ये साफ लिखा है, कि राज्यों को जितना भी नुकसान होगा अगले 5 साल तक इसकी भरपाई केंद्र सरकार करेगी।
5 राज्यों के वित्तमंत्रियों ने संयुक्त बयान जारी कर बताया है, कि हमारा करीब 35,000 करोड़ रुपये बकाया है। और अब हालात इतने बिगड़ गए हैं, कि इसकी वजह से उन्हें विकास योजनाओं और सैलरी देने में भी आफत आ रही है। क्योंकि उनके पास फंड की बेहद कमी है।
जीएसटी बकाया न मिलने से कई राज्यों के सामने कर्ज में डूबने की नौबत आ चुकी है। वित्त मंत्रियों का कहना था कि जीएसटी में राज्यों के टैक्स रेवेन्यू का 60 फीसदी हिस्सा रहता है। जाहिर इतने बड़े रेवेन्यू सोर्स के रुक जाने से से उन पर कितना वित्तीय बोझ बढ़ जाएगा।
दरअसल आंकड़ों में हेराफेरी करके वास्तविकता छुपाई जा रही है, असलियत में केंद्र सरकार का रेवेन्यू कलेक्शन लगातार गिरता जा रहा है। आपको जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि चालू वित्‍त वर्ष के आठ महीनों में अब तक डायरेक्‍ट टैक्‍स कलेक्‍शन मात्र 6 लाख करोड़ हुआ है। जबकि इस वित्त वर्ष का सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य साढ़े 13 लाख करोड़ रुपये था। यानी यदि इस लक्ष्य को पाना है, तो अगले 4 महीने में करीब 7.5 लाख करोड़ रुपये जुटाने होंगे। जो कि मंदी के इस दौर में असम्भव लक्ष्य है।
कल कैबिनेट ने भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (BPCL) शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (SCI) और कॉनकोर (CONCOR) जैसी 5 सरकारी कंपनियों अपनी हिस्सेदारी बेचने की मंजूरी दे दी है। यानी अब घर के बर्तन-भांडे बेचकर खर्च चलाने की कोशिश की जा रही है।

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