क्या कांग्रेस संजय गांधी को भुला देना चाहती है?

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संजय गांधी (Sanjay Gandhi) एक ऐसे नेता थे, जिनका नाम आते ही विवादों का जिक्र अपने आप हो जाता था। 14 दिसंबर 1946 को जन्मे संजय गांधी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के छोटे बेटे थे। इनके बड़े भाई राजीव गांधी का रूझान कभी राजनीति में नहीं था। इंदिरा गांधी संजय को ही अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी मानती थीं। और जिस तरह उस समय देश का कोई फैसला संजय गांधी के मर्जी के बिना नहीं लिया जाता था, उसे देखकर ऐसा ही लगता था कि इंदिरा की विरासत केवल संजय ही संभालेंगे। परंतु कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। 1980 के आम चुनावों के कुछ दिन बाद ही प्लेन हादसे में संजय गांधी ने दुनिया को अलविदा कह दिया।

संजय गांधी का प्रारंभिक जीवन

संजय गांधी ने पहले वेल्हम बॉयज स्कूल से अकादमिक जीवन में कदम रखा। और फिर मशहूर देहरादून के दून स्कूल में संजय को पढ़ाई के लिए भेजा गया। लेकिन इंदिरा और फिरोज गांधी के तमाम प्रयासों के बावजूद संजय स्कूल के पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए। पढ़ने लिखने में संजय के मन नहीं लगता था। लेकिन, उनका ख्वाब ऑटोमोबाइल इंजीनियर बनने के था। दरअसल, संजय कारों के पीछे दीवाने थे। उन्हें कारें चलाने और बनाने का बड़ा शौक था। इसी चाहत को पूरा करने के लिए संजय लंदन चले गए। वहां जाकर उन्होंने रोल्स-रॉयस कम्पनी में 3 साल तक इंटर्नशिप भी को थी। उसके बाद संजय ने हवाई जहाज उड़ाने की ट्रेनिंग की और कमर्शियल पायलट बनने का लाइसेंस हासिल कर किया।

कांग्रेस में इंदिरा से भी ऊपर हो गए थे संजय

संजय गांधी ने भारत लौटकर जब इंदिरा गांधी के साथ राजनीतिक जीवन की शुरआत की, तब इंदिरा का खुद का राजनीतिक कैरियर दांव पर लगा था। जब संजय गांधी ने राजनीति में अपना अस्तित्व बनाना शुरू किया, उस समय राज नारायण ने इंदिरा गांधी पर चुनाव में धांधली का आरोप लगा दिया। इंदिरा का पूरा राजनीतिक कैरियर दांव पर लग गया था, उस वक्त संजय की सलाह और फैसलों से ही इंदिरा दोबारा भारतीय राजनीति में वापस अपनी जगह बना पाईं। इसी वजह से इंदिरा संजय को अपना सियासी वारिस मान चुकी थीं। ऐसा कहा जाता है कि इंदिरा पुत्र मोह में अंधी हो चुकी थीं और संजय के सभी फैसले आंख मूंद कर मान रही थीं। इमरजेंसी का लगना भी इसी बात का नतीजा था।

मैन बिहाइंड इमरजेंसी

संजय गांधी को मैन बिहाइंड इमरजेंसी भी कहा जाता है, जो काफी हद तक सच् भी है। जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राजनारायण के पक्ष में अपना फैसला सुनाया तो इंदिरा को लगा कि अब उन्हें इलाहाबाद कोर्ट का फैसला मनाते हुए, नैतिक आधार इस्तीफा दे देना चाहिए। लेकिन, संजय इस बात से सहमत नहीं थे। वो जानते थे कि अगर इंदिरा ने इस्तीफा दे दिया तो उनका राजनीतिक कैरियर खत्म हो जाएगा। उन्होंने इंदिरा ऐसे में आपातकाल लगाने की सलाह दी, जिसके बाद 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा कर दी गई।

जब आपातकाल में संजय की तूती बोलने लगी

आपातकाल की बात हो और संजय के दबंग रवैये का जिक्र न किया जाए, ऐसा तो मुमकिन ही नहीं है। संजय आपातकाल में एक ऐसे नेता और शख्सियत के तौर पर भारतीय राजनीति में उभरे रहे थे, जिसकी बातें प्रधानमंत्री भी मानती थीं। आपातकाल में संजय ने जो फैसले लिए उससे न सिर्फ विपक्ष में संजय के प्रति रोष था बल्कि उनकी खुद की पार्टी के नेता भी उनके खिलाफ हो गए थे। जो भी संजय गांधी के फैसले नहीं मानता था, उसे संजय गांधी बाहर का रास्ता दिखा देते थे। इंद्र कुमार गुजराल का नाम ऐसे ही लोगों की लिस्ट में शामिल है। दरअसल, आपातकाल के दौरान इन्द्र कुमार गुजराल सूचना प्रसारण मंत्री हुआ करते थे। इस समय संजय गांधी ने गुजराल से कहा कि आज के बाद जो भी खबरें छपेंगी, उनका ड्राफ्ट पहले संजय को दिखाया जाए। लेकिन इस बात से संजय ने साफ इनकार कर दिया।

गुजराल ने संजय से कहा में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का आदेश मानता हूं, तुम्हारा नहीं। बस यही शब्द संजय को पसंद नहीं आए और उन्होंने गुजराल को उनके पद से हटा दिया। इसके बाद विद्या चरण शुक्ल को सूचना प्रसारण मंत्री बना दिया गया। यह संजय गांधी के काफी करीबी माने जाते थे। संजय कांग्रेस में एक अलग कांग्रेस के अस्तित्व की स्थापना करना चाह रहे थे, जिसमें नए नेता नई सोच के साथ आगे आएं। लेकिन इस बात के चलते उन्होंने कई अनुभवी नेताओं को दरकिनार कर दिया।

किशोर कुमार के गानों पर भी लगा दिया था प्रतिबंध

हम सब जानते हैं कि आपातकाल में प्रेस की फ्रीडम को छीन लिया गया था। लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि न सिर खबरों पर सेंसरशिप लगाई गई, बल्कि संजय ने फिल्मों और फिल्मों में काम करने वाले लोगों पर भी सेंसरशिप लगवा दी थी। इस समय संजय गांधी चाहते थे कि कोई भी फिल्म इंदिरा गांधी के खिलाफ न बने और इसके साथ ही संजय ने फिल्मों संगीतकारों से इंदिरा के सपोर्ट में गाना गाने के लिए कहा। पर किशोर कुमार ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया। इस बात से खफा होकर किशोर कुमार के सभी गाने और फिल्में संजय गांधी ने प्रतिबंधित करवा दी।

विपक्ष का मिटा दिया था नामों निशान

आपातकाल के उस दौर में संजय गांधी ने विपक्ष का वजूद सत्ता से मिटा दिया था। संजय ने विपक्ष के सभी बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया। कोई भी अगर इंदिरा गांधी के फैसलों की आलोचना करता, तो उसका यही अंजाम होता था।
इन फैसलों का खामियाजा आज भी भुगतती है कांग्रेस
संजय गांधी काफी अशांत, बेसब्र और जल्दबाजी करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे। संजय ने कुछ ऐसे फैसले लिए जिसका खामियाजा आज भी कांग्रेस को भुगतना पड़ता है। संजय गांधी आपातकाल में कुछ लक्ष्य को लेकर राजनीति में आगे बढ़ रहे थे। जिन्हें कम समय में पूरा नहीं किया जा सकता था। उनमें से सबसे बड़ा लक्ष्य देश की बढ़ती जनसंख्या को रोकना था। फिर संजय ने नसबंदी कार्यक्रम की शुरुआत की, जिसमें हजारों की तादाद में लोगों की जबरन नसबंदी कराई गई।

डीडी नेशनल के आर्काइव में संजय गांधी का एक भाषण है। संजय गांधी इस भाषण में कहते हुए नजर आते है कि अगर युवा कांग्रेस में किसी को मंत्री पद चाहिए या कोई और पोस्ट पर भर्ती होना है तो हम उसे वो बना तो देंगे, जो वो बनना चाहे, लेकिन उसे महीने की दो नसबंदी लानी होंगी। एक पेड़ बोना पड़ेगा। एक आदमी को पढ़ना लिखना सीखना पड़ेगा। और गांव की सफाई में खुद हाथ बंटाना पड़ेगा।

साथ ही देश में हरियाली लाना और देश में सफाई की भावना को मजबूत बनाने के लिए भी संजय ने अभियान चलाया। इसी के तहत संजय ने तुर्कमान गेट सौंदर्यकरण कराने का निर्णय लिया और तुर्कमान गेट के पास की एक बस्ती पर बुलडोजर चलवा दिया। इन्हीं फैसलों के कारण आज भी कांग्रेस के दामन पर एक ऐसा दाग लगा है जिसके बारे में वो कभी बात नहीं करना चाहती। शायद यही कारण है कि आज संजय की पुण्यतिथि पर न तो कांग्रेस के ट्विटर हैंडल और न ही राहुल गांधी के ट्विटर हैंडल से कोई ट्वीट दिया गया।

वरुण गांधी ने किया याद

संजय गांधी के शादी मेनका गांधी से 1974 में हुई थी। जब संजय की मृत्यु हुई, तो मेनका और संजय गांधी के बेटे वरुण सिर्फ 3 महीने की थे। आज अपने पिता की पुण्यतिथि पर वरुण गांधी ने संजय की समाधि पर जाकर उन्हें याद किया। वरुण ने ट्वीट कर लिखा, मेरे स्वर्गीय पिता की41वीं पुण्यतिथि पर शांतिवन में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।