क्या बसपा को सिर्फ सत्ता चाहिए?

Share

बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने अगले वर्ष होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले शिरोमणि अकाली दल (शिअद) से गठबंधन का मास्टर स्ट्रोक खेला है,इससे पहले भी मायावती को गठबंधन की राजनीति रास आती रही है,फिर चाहे वह उत्तर प्रदेश की बात हो या फिर बाहरी राज्यों की।

गठबंधन को लेकर भरोसा नहीं करती हैं मायावती।

बसपा का अन्य दलों से रहा है समझौतों का रिकॉर्ड रहा है। लेकिन वह राजनीतिक दोस्ती निभाने के मामले में हमेशा फिसड्डी साबित हुई हैं।

मतलब सियासी फायदे के लिए वह गठबंधन तोड़ने में गुरेज नहीं करतीं। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने चिर-प्रतिद्वंदी पार्टी सपा से गठबंधन किया था, लेकिन चुनाव के बाद उन्होंने अपनी अलग राह चुन ली।

खास बात यह है यूपी में बसपा ने जब-जब गठबंधन किया, उनके लिए संजीवनी ही साबित हुआ है, लेकिन बाहरी राज्यों में उनकी दाल नहीं गली,बहुजन समाज पार्टी के लिए बाहरी राज्यों में गठबंधन भले ही सुखद नहीं रहा, लेकिन उत्तर प्रदेश में गठजोड़ की राजनीति ने ही उन्हें पहली बार सत्ता का स्वाद चखाया।

जब साथ आये थे मुलायम और कांशीराम

करीब ढाई दशक पहले बहुजन समाज पार्टी ने सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और वह पहली बार यूपी की मुख्यमंत्री बनीं। लेकिन डेढ़ वर्ष बाद गेस्ट हाउस कांड के चलते मायावती ने यह गठबंधन तोड़ दिया। इसके बाद कांग्रेस से मिल कर विधानसभा चुनाव लड़ा तो बसपा के वोट प्रतिशत में इजाफा हुआ।

वर्ष 2019 में बसपा ने सपा और रालोद संग मिलकर चुनाव लड़ा, जिसमें बसपा की सीटें शून्य से 10 तक पहुंच गई। लेकिन, खास बात यह है कि बसपा के साथ किसी भी दल का गठबंधन लंबा नहीं चला और खुद मायावती ने गठबंधन तोड़ने का ऐलान किया।

तीस वर्ष पहले जब बहुजन समाज पार्टी ने अकेले दम पर विधानसभा चुनाव लड़ा था। इसमें बसपा को 10.26 प्रतिशत वोट मिले और पार्टी के 12 विधायक जीते।

करीब दो वर्ष बाद बसपा ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया। चुनावी नतीजों के बाद मायावती के रूप में पहली बार को दलित महिला मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने में सफल रही।

हालांकि, कुछ दिनों मायावती ने यह गठबंधन तोड़ दिया। इसके बाद के विधानसभा चुनाव में बसपा को कांग्रेस से गठबंधन का फायदा मिला और न केवल पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़कर 27.73 फीसदी हो गया, बल्कि 67 सीटें भी जीतने में सफल रही।

लेकिन, कांग्रेस से भी दोस्ती लंबी न चल सकी। गठबंधन के जरिए राजनीति की उंचाइयों को छूते हुए बसपा 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल रही। इसके बाद से लगातार बहुजन समाज पार्टी सत्ता में आने के लिए एडी चोटी का जोर लगा रही है,लेकिन लगातार नाकाम साबित हो रही है।

इस बार 2022 के चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन को लेकर जो कयास लगाए जा रहे थे, सोमवार को मायावती द्वारा किये गए अकेले दम पर चुनाव लड़ने के ऐलान के साथ खारिज हो गया।