0

जेएनयू में दीपिका

Share

सभी राजनीतिक दल और नेतागण अपनी राजनीति चमकाने के लिये ढेर सारे तमाशे करते रहते हैं और हम भारत के लोग उन तमाशों के तमाशबीन बने रहते हैं। हमें पता है कि यह सारे तमाशे हमारे, देश और समाज के ही नाम पर नेता लोग अपने अपने हित के लिये कर रहे हैं। फिर भी हम सब, यह देखते, सुनते, समझते, बूझते, रहते हैं, और कभी कभी, जब ऊब जाते हैं तो महठिया भी जाते हैं।
और आज दीपिका जेएनयू में गयीं तो जनआंदोलन विरोधी और विशेषकर एन्टी जेएनयू लोगो को लग रहा है कि वे जेएनयू और फीसवृद्धि के आंदोलन के पक्ष में नहीं बल्कि अपनी फ़िल्म छपाक के प्रोमोशन के लिये गयी है। अगर वे, अपने हक़ के लिये  शांतिपूर्ण ढंग से धरना प्रदर्शन करते हुए छात्रों के बीच जा कर अपनी फिल्म का प्रोमोशन कर रही हैं तो भी यह एक सराहनीय कदम है। इसकी प्रशंसा की जानी चाहिए । दीपिका की यह पहल या तमाशा, जो भी आप कहें, सर्द कोहरे की धुंध में नीम खिल रही धूप सा आनन्द देने वाला है।
जेएनयू में दीपिका के जाने के समय का जो वीडियो सोशल मीडिया पर आ रहा है उसमें एक बात मार्के की है कि फ़िल्म अभिनेता और अभिनेत्रियों को देख कर जो अमूमन भगदड़ या दीवानगी भरा माहौल लड़को या लोगों में होता है वह दीपिका को वहां देख कर, उपस्थित समूह में नहीं दिखा। छात्र और शिक्षक दोनों उस समूह में थे और कन्हैया कुमार का भाषण चल रहा था।
दीपिका आती हैं। एक उत्कंठा और उत्सुकता भरा माहौल और हलचल समूह में व्यापता है और फिर दीपिका वहां लोगों से मिलती हैं। अक्सर फ़िल्म अभिनेताओं और अभिनेत्रियों से ऑटोग्राफ लेने और उनसे उनकी लोकप्रिय फिल्मों के संवाद बोलने का आग्रह होता है, पर वह सीन यहां नहीं दिखा। यह परिपक्वता और अपने आंदोलन के प्रति समर्पित जुड़ाव ही इस फीसवृद्धि के विरुद्ध हो रहे आंदोलन को लक्ष्य तक पहुंचाने में सफल होगा।
पढ़ना घूमना और फिल्में देखना मेरा प्रिय शगल है। अक्सर रात का 9 से 12 का शो मेरा प्रिय शो होता था। अब जब फिल्में लैपटॉप और टीवी पर सुगमता से उपलब्ध हैं तो सिनेमा हॉल में जाकर देखना कम हो गया है। फिर भी फ़िल्म देखने मे जो आंनद हॉल में है वह टीवी भले ही होम थियेटर वाला हो, और कम्प्यूटर पर नहीं है। छपाक तो हॉल में ही देखी जाएगी।

© विजय शंकर सिंह
Exit mobile version