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संविधान से टकराते राजनीतिक दलों के घोषणापत्र

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काफी पहले, अकाली दल ने भी एक घोषणा पत्र बनाया था। वही अकाली दल जो भाजपा का सहयोगी है। जिसे आनन्दपुर साहब प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है। उसमें जो बातें कहीं गयीं थीं, वह देश के संविधान के विरूद्ध थी।
इस प्रस्ताव में पंजाब को एक स्वायत्त राज्य के रूप में स्वीकारने तथा केंद्र को विदेश मामलों, मुद्रा, रक्षा और संचार सहित केवल पाँच दायित्व अपने पास रखते हुए बाकी के अधिकार राज्य को देने संबंधी बातें कही गईं थी। लेकिन वह घोषणापत्र अब रद्दी का टुकड़ा है। पंजाब के निवासियों ने उसे सिरे से नकार दिया।
वोट लेने के लालच में भाजपा ने भी एक घोषणा पत्र बनाया जिसका नाम रखा संकल्पपत्र। उसमे यह वादे हैं। उसी का उल्लेख करते हुए, अब बड़ी मासूमी से कह रहे हैं कि, संकल्पपत्र में नागरिकता संशोधन का वादा है, जिसे हम पूरा कर रहे हैं।
लेकिन, उसी घोषणा पत्र उर्फ संकल्पपत्र में आर्थिक वादे भी किये गये हैं। उसमे 2 करोड़ नौकरियां हर साल देने, 100 स्मार्ट सिटी बनाने, बेशुमार विदेशी निवेश लाने आदि आदि, जैसे अनेक वादे हैं, पर वे उन्हें याद नहीं आएंगे। उन्हें पूरा करने के बारे में नहीं सोचेंगे।
पूरा करने की बात तो छोड़िये, वे उन आर्थिक वादों को याद भी करना नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें पूरा करने का इनका इरादा ही नहीं है । और अब सुब्रमण्यम स्वामी की मानें तो उसे पूरा करने की काबिलियत भी नहीं है। वे वादे केवल एक मृग मरीचिका थे।
हां, यह लोग, एक दूसरे के बीच, झगड़ा लगा सकते हैं। लोगों को  कन्फ्यूज कर सकते हैं। सामाजिक माहौल खराब कर सकते हैं। आपस मे अविश्वास पनपा सकते हैं। दुष्प्रचार फैला सकते हैं। और यही कर रहे हैं।
देश का कोई भी कानून या विधेयक या संशोधन, चाहे उसे पूरी संसद भी एकमत से क्यों न पास कर दे, अगर वह संविधान के मौलिक अधिकारों के विपरीत है तो वह सुप्रीम कोर्ट से रद्द हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार संविधान से ही प्राप्त प्राप्त है।
राजनीतिक दलों का यह दायित्व है कि वह जनता से कोई भी वादा करने और उसे घोषणा पत्र में समेटने के पहले यह ज़रूर विचार कर लें कि वह वादा या संकल्प संविधान के विरुद्ध तो नहीं है।
कहा जा रहा है अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं के उत्पीड़न के आधार पर सीएबी कानून लाया गया है। पर क्या कभी भारत ने  पाकिस्तान और बांग्लादेश की सरकार ने हिंदुओं के इस उत्पीड़न पर कोई बात की है या  विरोध जताया है ?
बीबीसी के अनुसार, बांग्लादेश के विदेश मंत्री अब्दुल मोमिन ने भारत के गृह मंत्री अमित शाह के उस बयान को ख़ारिज किया है जिसमें उन्होंने कहा था कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं का उत्पीड़न हो रहा है। बांग्लादेश के प्रमुख अंग्रेज़ी अख़बार ढाका ट्रिब्यून में 10 दिसंबर को छपे उनके बयान के मुताबिक़ बांग्लादेश सरकार इस मसले को भारत के साथ उठाने से पहले ठीक से पढ़ेगी.
बांग्लादेश के विदेश मंत्री ने कहा, “जो वे हिंदुओं के उत्पीड़न की बात कह रहे हैं, वो ग़ैर-ज़रूरी और झूठ है. पूरी दुनिया में ऐसे देश कम ही हैं जहां बांग्लादेश के जैसा सांप्रदायिक सौहार्द है. हमारे यहां कोई अल्पसंख्यक नहीं है. हम सब बराबर हैं. एक पड़ोसी देश के नाते, हमें उम्मीद है कि भारत ऐसा कुछ नहीं करेगा जिससे हमारे दोस्ताना संबंध ख़राब हों. ये मसला हमारे सामने हाल ही में आया है. हम इसे ध्यान से पढ़ेंगे और उसके बाद भारत के साथ ये मुद्दा उठाएंगे.”
क्या विडंबना है, अंग्रेजों की मुखबिरी और जिन्ना के साथ कभी, चर्चिल के जेरेसाया सरकार चलाने वालों के मानस पुत्र आज राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ा रहे हैं ? जिनके अपने दस्तावेज फ़र्ज़ी हैं वे सबसे असल दस्तावेज मांग रहे हैं ?

© विजय शंकर सिंह
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