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क्या दलितों का भाजपा से मोह भंग हो रहा है, ऊना घटना के बाद बदलते राजनीतिक समीकरण

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अहमदाबाद: ऊना की शर्मनाक घटना के बाद पूरे गुजरात में दलित समुदाय आन्दोलन की राह पकड़ चुका है, संघ ने इस घटना के बाद एक सर्वे किया, जिसमें बड़े ही चौकाने वाले नतीजे सामने आये है.पहले पटेल आन्दोलन और फिर अब दलित आन्दोलन से गुजरात ही नहीं यूपी से भी दलितों का मोहभंग होता दिख रहा है.अहमदाबाद और मुंबई में विभिन्न दलित संगठनो ने जिस अंदाज़ में विरोध प्रदर्शन किया है, उससे सभी राज्यों में भाजपा को दलित वोटों के जाने का डर पैदा हो गया है. भाजपा के लिए दलित वोटों की अहमियत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि जब दलित वोटर्स भाजपा के समर्थन में लामबंद हुए तो देश में भाजपा की सरकार बन गई थी. पर अब परिस्थितियां 2014 जैसी नहीं दिख रही है, दलित संगठन इस तरह लामबंद होंगे यह किसी ने सोचा भी नहीं था, ख़बरें ऐसी आ रही हैं कि ये दलित वोटर्स अब मायावती से भी दूर दिख रहे हैं. सवाल ये उठता है, की दलित यदि भाजपा और बसपा के साथ नहीं तो फिर किसके पाले जायेंगे?
ऊना घटना के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने एक सर्वे कराया है, जिसके अनुसार भाजपा से दलित वोटों और पाटीदार वोटों की दूरी के कारण गुजरात में जो परिस्थितियां बनी हैं,उसके मुताबिक़ यदि चुनाव हुए तो गुजरात में कई सालों बाद भाजपा की हार हो सकती है.भाजपा के लिए गुजरात में सबकुछ सहीह नहीं चल रहा, यह समझने के लिए इतना ही जान लेना काफी है, कि चुनाव होने पर भाजपा 50-65 सीटों तक सिमट सकती है. गुजरात में हुए पंचायत और नगरीय निकाय चुनावों में भी भाजपा को भारी नुकसान हुआ था. तब पटेल आन्दोलन को वजह बताया गया था, फिलहाल हार्दिक पटेल भी जेल से बाहर आ गए हैं और गुजरात के बाहर रहकर उन्ही तेवरों के साथ और नए तरीकों से आन्दोलन को जारी रखने की बात भी कर रहे हैं. इधर ऊना घटना के बाद दलितों की एकजुटता और जगह-जगह हो रहे आन्दोलन बताते हैं, कि इस बार दलित भाजपा के साथ नहीं जायेंगे.
दलितों ने लिया फैसला
ऊना घटना के बाद दलितों ने मृत गायों का चमड़ा न निकालने और उनका अंतिम संस्कार न करने का फैसला लिया है, वहीं गटर और ड्रेनेज सिस्टम को साफ़ न करना, मल ढोना आदि कार्यों को भी न करने का फैसला किया है. दलित संगठनों के इन फैसलों ने भी सरकार और भाजपा दोनों को ही चिंतित कर दिया है.

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