14 जून 1928 को लैटिन अमेरिका में पैदा होने वाले चे ग्वेरा के चाहने वाले आज भी भारत में मौजूद हैं। चे ग्वेरा का जन्म अर्जेंटीना के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। चे ग्वेरा कुछ लोगों के लिए महान क्रांतिकारी और कुछ लोगों के लिए बस एक हत्यारा। चे ग्वेरा पर कई बार ये आरोप भी लगाया जाता है कि वह तीसरा विश्व युद्ध करवाना चाहते थे। जिस आदमी को अमेरिका और अमेरिकी खुफिया एजेंसी खत्म करना चाहती थीं। जिसका नामोनिशान पूंजीपति ताकतें मिटा देना चाहती थीं, वह आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है।
अपने समय के सबसे पूर्ण पुरुष की मिली थी उपाधि
चे ग्वेरा ने दक्षिण अफ्रीका में भाईचारे की भावना और सर्वहारा के लिए सामाजिक क्रांति का आह्वान किया था। चे ग्वेरा अपने लिए नहीं बल्कि समाज के लिए जीते थे। इसलिए फ्रांस के महान दार्शनिक ज्यां-पॉल सार्त्र ने ‘चे’ गेवारा को ‘अपने समय का सबसे पूर्ण पुरुष’ जैसी उपाधि से नवाजा था।
दक्षिण अमेरिका की यात्रा ने बदला जीवन
चे ग्वेरा की “मोटरसाइकिल डायरिज़” के नाम से मशहूर यात्रा वृतांत के अनुसार दक्षिण अमेरिका की यात्रा चे ग्वेरा के जीवन बहुत बड़ा बदलाव लेकर आई। इस यात्रा के बाद ग्वेरा ने अपने जीवन के असली मकसद को पहचाना। दरअसल, ग्वेरा अपने दोस्त अल्बेर्तो ग्रेनादो के साथ दक्षिण अमेरिका को करीब से जानना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने मोटरसाइकिल पर पूरे दस हजार किलोमीटर का सफर तय किया। जब ग्वेरा अपने अपनी इस यात्रा पर गए तब उनकी उम्र महज 23 साल थी।
दक्षिण अमेरिका के हालत जब चे ग्वेरा ने देखा, तो उनकी जिंदगी पूरी तरह पलट गई, वहां लोगों जीने के लिए विषम परिस्थितियों से जूझना पड़ रहा था। उन्होंने देखा कि कैसे पूंजीवाद ने लोगों को उनके अस्तित्व से अलग कर दिया है और कैसे खदानों में काम मजदूरों का शोषण किया जा रहा था। साथ ही उन्होंने यह महसूस किया कि पूंजीवादी समाजवादियों को खत्म करना चाह रहे थे। यहां तक की 15वीं शताब्दी की “इंका सभ्यता” जुड़े लोगों को हाशिए पर धकेला जा रहा है। इसी गरीबी और शोषण को देख कर उनका झुकाव मार्क्सवाद की तरफ हो गया और ग्वेरा ने ग़रीब और हाशिये पर धकेले जा चुके लोगों के लिए जीवनभर लड़ने की कसम खाई।
ग्वाटेमाला में तख्तापलट भड़काई क्रांति की आग
ग्वेरा 1953 में अपने शहर ब्यूनस लौटा आए और यहां आकर अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद ग्वेरा डॉक्टर बन गए। लेकिन वो डॉक्टर की नौकरी नहीं, बल्कि समाज में कुछ बड़ा बदलाव लाना चाहते थे। जल्द ही उन्हें पता चला की ग्वेरा जिस व्यवस्था के प्रसंशक थे, वही व्यवस्था उनके पड़ोसी देश ग्वाटेमाला में स्थापित होने जा रही है। वह उस व्यवस्था को करीब से देखना चाहते थे।
जब चे ग्वेरा ग्वाटेमाला गए, तब समाजवादी सरकार वहां शासन कर रही थी। इस सरकार की अगुवाई राष्ट्रपति जैकब अर्बेंज गुजमान कर रहे थे। गुजमान ने ग्वाटेमाला में भूमि सुधारों की शुरुआती की थी। इन सुधारों के दौरान अमेरिका की यूनाइटेड फ्रूट कंपनी के कारोबारियों को भारी नुकसान हो रहा था। और उनके हित प्रभावित हो रहे थे। तब अमेरिका की सरकार और सीआईए ने मिल कर गुजमान सरकार का तख्तापलट करवा दिया। जिस समय गुजमान सरकार को सत्ता से हटाया गया, उस समय चे ग्वेरा ग्वाटेमाला में ही मौजूद थे। ग्वेरा उस समय गुजमान सरकार का समर्थन कर रहे थे। लेकिन, पकड़े जाने के डर से वह मैक्सिको भाग आए और यहां आकर एक अस्पताल नौकरी करने लगे। इस पूरी घटना ने मैक्सिको आने के बाद उनके मन में क्रांति की आग व विरोध को और ज्यादा भड़का दिया।
कैसे बने क्यूबा क्रांति के प्रमुख नेता
मैक्सिको में उनकी मुलाकात क्यूबा से निकाले गए फिदेल कास्त्रो और उनके भाई राउल कास्त्रो से हुई। इस मुलाकात के समाज के लिए क्रांति करने के सपने को साकार करने का रास्ता उन्हें साफ नजर आने लगा। अब उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य अमरीका समर्थित सरकार को हटाना था। इस मुलाकात के बाद ग्वेरा फिदेल कास्त्रो क्यूबा क्रांति के अगुवा नेता बनकर उभरे।
चे ग्वेरा के विचारों से प्रभावित होकर लागू की मार्क्सवादी व्यवस्था
वक्त के साथ फिदेल कास्त्रों और चे ग्वेरा का विद्रोह हर प्रांत में फैल गया। 1959 के पहले महीने में ही कुल 500 विद्रोहियों ने बतिस्ता सरकार का तख्तापलट कर दिया। फिदेल ने चे ग्वेरा के विचारों से प्रभावित होकर देश में मार्क्सवादी व्यवस्था लागू को लागू किया था। लेकिन जो भी वादे फिदेल ने क्यूबा की सत्ता में आने से पहले किए थे, वो कभी पूरे नहीं हो पाए।
ग्वेरा को फिदेल की सरकार में उधोग मंत्रालय मिला, साथ ही बह “बैंक ऑफ क्यूबा” के अध्यक्ष बनाए गए। लेकिन सत्ता में रहकर ग्वेरा ने कभी सत्ता का भोग नहीं किया। जब ग्वेरा सत्ता में उद्योग मंत्री थे, उस समय भी उनका परिवार बसों से सफर करता था। चे ग्वेरा खुद हफ्ते में श्रमदान भी करते थे।
चे ग्वेरा और भारत
1959 में फिदेल कास्त्रों ने तीसरी दुनिया के देशों से मैत्री पूर्ण संबंध बनाने की जिम्मेदारी चे ग्वेरा को दी थी। इसी जिम्मेदारी के चलते ग्वेरा भारत आए थे। यह जानकारी भी कम ही लोगों की थी कि चे ग्वेरा भारत आए थे। चे ने अपनी भारत यात्रा के बाद क्यूबा सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में भारत की यात्रा से संबंधित ब्यौरा था। इस रिपोर्ट में भारतीय यात्रा का जिक्र करते हुए चे ग्वेरा कहते हैं कि “काहिरा से हमने भारत के लिए सीधी उड़ान भरी। 39 करोड़ आबादी और 30 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल। हमारी इस यात्रा में सभी उच्च भारतीय राजनीतिज्ञों से मुलाक़ातें तय थी। नेहरू ने न सिर्फ दादा की आत्मीयता के साथ हमारा स्वागत किया बल्कि क्यूबा की जनता के समर्पण और उसके संघर्ष में भी अपनी पूरी रुचि दिखाई।”
आगे चे ने रिपोर्ट में बताया, ” नेहरू ने हमें बेशकीमती मशविरे दिए और हमारे उद्देश्य की पूर्ति में बिना शर्त अपनी चिंता का प्रदर्शन भी किया। भारत यात्रा से हमें कई लाभदायक बातें सीखने को मिलीं। सबसे महत्वपूर्ण बात हमने यह जाना कि एक देश का आर्थिक विकास उसके तकनीकी विकास पर निर्भर करता है और इसके लिए वैज्ञानिक शोध संस्थानों का निर्माण बहुत ज़रूरी है- मुख्य रूप से दवाइयों, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान और कृषि के क्षेत्र में.”
भारत से जाते हुए समय को याद करते हुए चे लिखते हैं “जब हम भारत से लौट रहे थे तो स्कूली बच्चों ने हमें जिस नारे के साथ विदाई दी, उसका तर्जुमा कुछ इस तरह है- क्यूबा और भारत भाई-भाई. सचमुच, क्यूबा और भारत भाई-भाई हैं।”
क्यूबा में मंत्री पद छोड़ फिर अपनाया क्रांति का रास्ता
चे ग्वेरा कभी सत्ता के भूखे नहीं थे, उनका लक्ष्य पूरे लैटिन अमेरिका में सामाजिक क्रांति लाना था। और इसीलिए वह क्यूबा छोड़ कर कांगों चले गए। कांगों में वह तख्तापलट करके मार्क्सवादी सरकार की स्थापना करना चाहते थे। लेकिन, ऐसा हो ना सका। चे अपने इस लक्ष्य में विफल रहे। कांगों में असफल होने के बाद फिदेल कास्त्रो ने उन्हें वापस क्यूबा लौटने का सुझाव दिया। पर चे ने इसे अस्वीकार करके अपना पद और क्यूबा की नागरिकता छोड़ने की बात कास्त्रो को बताई। कांगों में असफलता के बावजूद भी उनका सपना टूटा नहीं, उन्होंने नौ बार बोलविया में तख्तापलट करने कोशिश की और इसी दौरान अक्टूबर 1967 को बोलिविया सेना और सीआईए के हाथों चे ग्वेरा की मारे गए।
दुनिया भर में आज युवा चे ग्वेरा के चेहरे वाली टी–शर्ट पहनता है। उन्हें ये बहुत कूल लगता है। हाथ में बड़ा सा सिगार, बिखरे हुए बाल, सर पर सितारे वाली टोपी, और फौजी वर्दी वाली सबको खूब लुभाती है। जिस तरह चे जीते थे, उनके इसी अंदाज और क्रांतिकारी विचारों ने “सत्ता विरोधी संघर्ष” का प्रतीक बना दिया है।