मानवाधिकार, न केवल जीवित मनुष्य का होता है, बल्कि शव के भी मानवाधिकार हैं। संविधान के मौलिक अधिकारों में एक अधिकार सम्मान से जीने का अधिकार भी है। यह अधिकार, मानवीय मूल्यों, जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के आधार पर दिया गया है। इसी मौलिक अधिकार के आलोक में, तरह तरह के नागरिक अधिकारों और श्रम अधिकारों के कानून बने हुए हैं। अब शव के अधिकार की भी बात हो रही है तो मृत्यु के बाद एक शव के क्या अधिकार हो सकते हैं, यह प्रश्न अटपटा लग सकता है, लेकिन राजस्थान के मानवाधिकार आयोग ने, शव के भी सम्मानजनक अंतिम संस्कार के रूप में यह सवाल उठाया है।
” शव रख कर मांगें मनवाने की घटनाओं को रोकने के लिए इसे दंडनीय अपराध घोषित किया जाए। राजस्थान ही नहीं समूचे देश में शव रख कर मुआवजा, सरकारी नौकरी और अन्य तरह की मांगें मनवाए जाने की प्रवृत्ति बढ़ी है। शव का दुरुपयोग किए जाने, इसकी आड़ में आंदोलन कर अवैध रूप से सरकार, प्रशासन, पुलिस, अस्पताल और डॉक्टरों पर दबाव बनाकर धनराशि या अन्य कोई लाभ प्राप्त करना गलत है। ऐसी घटनाओं को आयोग शव का अपमान और उसके मानवाधिकारों का हनन मानता है।”
अयोग ने कहा है कि
” इसे रोकने के लिए आवश्यक नीति निर्धारण और विधि के प्रावधानों को मजबूत किया जाना जरूरी है। आयोग ने इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का भी उल्लेख किया है, जिसमें कहा गया है कि संविधान के तहत सम्मान और उचित व्यवहार का अधिकार जीवित व्यक्ति ही नहीं बल्कि उसकी मृत्यु के बाद उसके शव को भी प्राप्त है। आयोग ने कहा है कि विश्व के किसी भी धर्म के अनुसार शव का एकमात्र उपयोग उसका सम्मान सहित अंतिम संस्कार ही है।”
आयोग ने इस संदर्भ में निम्न सिफारिशें कीं
- दाह संस्कार में लगने वाले समय से अधिक तक शव को नहीं रखा जाए।
- परिजन अंतिम संस्कार नहीं कर रहे हैं तो राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह कराए।
- यदि किसी अपराध की जांच के लिए शव की जरूरत नहीं है तो ऐसी स्थितियों में पुलिस को अंतिम संस्कार का अधिकार दिया जाए
- शव को अनावश्यक रूप से घर या किसी सार्वजनिक स्थान पर रखना दंडनीय अपराध घोषित हो।
- शव का किसी आंदोलन में उपयोग दंडनीय अपराध माना जाय।
लेकिन यह सब तब है जब शव का दुरूपयोग किया जाय। हाथरस मामले में सबसे बड़ी अनियमितता यह हुयी है कि शव का अंतिम संस्कार करने में अनावश्यक रूप से जल्दीबाजी की गयी है। शव का पोस्टमार्टम डॉक्टरों के अलग पैनल द्वारा कराये जाने की मांग की जा रही थी और इसके लिए धरना प्रदर्शन भी चल रहा था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। शव का उसके परिजनों की मांग के अनुसार अलग और बड़े डॉक्टरों के पैनल से पोस्टमार्टम कराया जाना चाहिए था और अब तो ऐसे पोस्टमॉर्टम की वीडियोग्राफी कराने के भी निर्देश हैं। यह सब इसलिए कि तमाम अफवाहें जो जनता में फैल रही हैं, उनका निराकरण हो जाय। अब यह स्पष्ट नहीं हो रहा है कि, ऐसे गुपचुप अंतिम संस्कार के लिये पीड़िता के माता पिता और अन्य परिजन सहमत थे या नही। अगर वे सहमत नहीं थे तब यह अनुचित है और निंदनीय भी ।