भारतीय इतिहास में कई ऐसे मोड़ आये हैं जब उन्होंने इतिहास को बदल कर रख देने वाला ऐसा कारनामा किया है कि “इतिहास ही बदल गया है” क्योंकि अब जब उस दौर को बीते हुए 200 या 250 साल हो गए हैं तो हम ये कहते हैं कि “काश” ऐसा न होता।
बादशाह औरंगजेब की मौत ने मुग़ल सल्तनत को हिला कर रख दिया,सही शब्दों में 1707 के बाद कभी भी फिर दिल्ली से बैठ कर सत्ता चलाई नहीं गयी जब तक अंग्रेज़ नहीं आ गए,क्यूंकि औरंगजेब के ही समय मे जाट,राजपूत और मराठा समुदायों के बीच खटास पड़ चुकी थी और अव्यवस्था फैल चुकी थी।
मराठों ने मुग़लों से लड़े बिना उन्हें हराया
बाजीराव प्रथम मराठा के चितपावन ब्राह्मण परिवार में जन्में वो पेशवा थे जिन्होंने रणभूमि पर लड़ते हुए कभी हार नहीं मानी, और सिर्फ 20 वर्ष ही कि उम्र में उन्होंने हैदराबाद, मालवा और बुंदेलखंड को अपने रियासत में जोड़ लिया था।
दक्षिण और पश्चिम के क्षेत्र में अपनी गुरिल्ला नीति और तेज़ रफ़्तार पर पकड़ रखने वाले मराठों ने भी अपना सिक्का जमा रखा ही था,जो मुगल बादशाहों की नाक की नीचे से चौंथ(कर) वसूल करने की ताक़त रख रहे थे।
लेकिन बुखार से हुई इनकी अचानक मौत के बाद ने इनके बेटे को “पेशवा” घोषित किया गया,आज उन्हीं की पुण्यतिथि है,ये वही बालाजी बाजी राव (नाना साहब) हैं,जिन्होंने उस समय के अफगानिस्तान के शासक अहमद शाह अब्दाली से युद्ध करने के लिए अपने बेटे और भाई को भेजा था,और फिर “तीसरा पानीपत” का युध्द हुआ था।
19 साल की उम्र में बने “पेशवा” और पानीपत का तीसरा युद्ध।
8 दिसम्बर 1720 को जन्में बालाजी राव को अचानक हुई मृत्यु के बाद महज़ 19 वर्ष की आयु ही में अगस्त 1740 में पेशवा का पद दे दिया गया था,ये पद बहुत ज़िम्मेदारी से भरा पद था। उन्हें विरासत में युद्धभूमि में लड़ने का साहस,युद्धनीति प्राप्त हुई थी और अपने कर्तव्यों का पालन करने का हुनर मिला था,तो उसके साथ साथ उन्हें एक साम्राज्य मिला था जिसे संभाल पाना आसान काम नहीं था, यूँ तो उस वक़्त मराठे दिल्ली पर काबिज नहीं थे मगर दिल्ली के तख़्त पर कौन बैठेगा इस पर उनकी ही चलती थी।
14 जनवरी, 1761 ई. को मराठों ने आक्रमण आरंभ किया।मल्हार राव होल्कर युद्ध के बीच में ही भाग निकला था, मराठा फौज के पैर पूरी तरह उखङ गये थे और पेशवा का बेटा विश्वास राव, जसवंत राव, सदाशिवराव भाऊ, तुंकोजी सिन्धिया और अन्य अनगिनत मराठा सेनापति करीब 28,000 सैनिकों के साथ मारे गये।
युद्ध के परिणाम और स्थिति।
इतिहास जदुनाथ सरकार ने लिखा है कि “महाराष्ट्र में संभवतः ही कोई ऐसा परिवार होगा जिसने कोई न कोई संबंधी न खोया हो तथा कुछ परिवारों का तो सर्वनाश ही हो गया”
पानीपत के तृतीय युद्ध 1761 ई. में मराठों के पराजय की सूचना बालाजी बाजीराव को एक व्यापारी द्वारा कूट संदेश के रूप में पहुंचायी गई थी। जिसमें ये कहा गया कि “दो मोती विलीन हो गये, बाइस सोने की मुहरें लुप्त हो गई और चाँदी तथा ताँबे की तो पूरी गणना ही नहीं की जा सकती”
इन युद्ध मे मिली हार को “नाना साहब” पेशवा झेल नहीं पाए, क्योंकि यहां सिर्फ वो हारे नही थे,उनका बना बनाया हुआ साम्राज्य बिखर गया था,और अपने सुपुत्र को भी उन्हें खोना पड़ा था। 23 जून 1761 को उनका निधन हुआ और उनके बाद उनके छोटे बेटे माधव राव को पेशवा का पद दिया गया था,हालांकि ये भी एक तथ्य है कि अगर ये युद्ध न हुआ होता तो शायद देश का इतिहास कुछ और ही होता।