नागरिकता संशोधन कानून ( सीएए ) के तमाम विरोध और तमाशो के बीच वित्तमंत्री थोड़ी चैन से हैं। केंद्र सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने शुक्रवार को हार्वर्ड विश्वविद्यालय में एक रिसर्च पेपर का प्रजेंटेशन करते हुए कहा कि देश की अर्थव्यवस्था आईसीयू की तरफ बढ़ रही है। वहीं एनबीएफसी कंपनियों में जो संकट है, वो एक भूकंप जैसा है। ट्विन बैलेंस शीट (टीबीएस) संकट की दूसरी लहर इकोनॉमी को प्रभावित कर रही है।
2004 से 2011 तक स्टील, पावर और इन्फ्रा सेक्टर के कर्ज जो कि एनपीए में बदल गए उन्हें टीबीएस-1 कहा है। सुब्रमण्यन ने कहा कि यह सामान्य मंदी नहीं है, बल्कि इसे भारत की महान मंदी कहना उचित होगा, जहां अर्थव्यवस्था के गहन देखभाल की जरूरत है।
2017-18 तक रियल स्टेट सेक्टर के 5,00,000 करोड़ रुपये के लोन में एनबीएफसी कंपनियों का हिस्सा है।यह संकट निजी कॉरपोरेट कंपनियों की वजह से आया है 2014 में भी दी थी चेतावनी सुब्रमण्यन ने कहा कि पद पर रहते हुए 2014 में भी सरकार को टीबीएस को लेकर के चेतावनी दी थी, लेकिन उनकी सुनी नहीं गई। पहले चरण में बैंकों को एनपीए बढ़ने से मुश्किलें हुई थीं, वहीं अब दूसरे चरण में नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों और रिएल एस्टेट फर्मों के नकदी संकट से है।
पिछले साल सितंबर में सामने आया आईएलएंडएफएस का संकट भूकंप जैसी घटना थी। सिर्फ इसलिए नहीं कि आईएलएंडएफएस पर 90,000 करोड़ रुपये के कर्ज का खुलासा हुआ, बल्कि इसलिए भी क्योंकि इससे बाजार प्रभावित हुआ और पूरे एनबीएफसी सेक्टर को लेकर सवाल खड़े हो गए।
उन्होंने कहा कि बड़ी मात्रा में नकदी नोटबंदी के बाद बैंकों में जमा हुए हैं और इस राशि का बड़ा हिस्सा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां(एनबीएफसी) को दिया है। इसके बाद एनबीएफसी ने इस राशी को रियल एस्टेट सेक्टर में खर्च किया है। साल 2017-18 तक रियल एस्टेट के पांच लाख करोड़ रुपये के बकाया अचल संपत्ति ऋण के आधे भाग के लिए गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां जिम्मेदार थे।
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