कैसे किसान विरोधी हैं, मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि अध्यादेश ?

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Shivam Baghel
केंद्र सरकार हाल ही में कोरोना कॉल के चलते 3 कृषि अध्यादेश लेकर आई है, जिन्हें केंद्र सरकार की तरफ से बड़ा कृषि रिफॉर्म, कृषि में सुधार बताया जा रहा है। लेकिन इसमें कितनी सच्चाई है आइए इस पर हम एक किसान की नजर से पूरा विश्लेषण करते हैं।

पहला अध्यादेश है – फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एन्ड कॉमर्स ऑर्डिनेन्स 2020

इसके तहत केंद्र सरकार ‘एक देश, एक कृषि मार्केट’ बनाने की बात कह रही है। इस अध्यादेश के माध्यम से पैन कार्ड धारक कोई भी व्यक्ति, कम्पनी, सुपर मार्केट किसी भी किसान का माल किसी भी जगह जैसे खेत में, खलिहान में, घर में सड़क पर खरीद सकते हैं। किसान भी अपनी फसल को चाहे तो देश के किसी भी शहर, राज्य या किसी भी कोने में ले जाकर बेंच सकता है। कृषि माल की बिक्री APMC यार्ड में होने की शर्त केंद्र सरकार ने हटा ली है। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि कृषि माल की जो खरीद APMC मार्केट से बाहर होगी, उस पर किसी भी तरह का टैक्स या शुल्क नहीं लगेगा। इसका अर्थ यह हुआ कि APMC मार्केट व्यवस्था धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी क्योंकि APMC व्यवस्था यानि कृषि उपज मंडियों में टैक्स व अन्य शुल्क लगते रहेंगे।

इस अध्यादेश के तहत किसानों का माल खरीदने वाले पैन कार्ड धारक व्यक्ति, कम्पनी या सुपर मार्केट को तीन दिन के अंदर किसानों के माल की पेमेंट करनी होगी। सामान खरीदने वाले व्यक्ति या कम्पनी और किसान के बीच विवाद होने पर SDM इसका समाधान करेंगे। पहले SDM द्वारा सम्बन्धित किसान एवं माल खरीदने वाली कम्पनी के अधिकारी की एक कमेटी बना के आपसी बातचीत के जरिये समाधान के लिए 30 दिन का समय दिया जाएगा, अगर बातचीत से समाधान नहीं हुआ तो SDM द्वारा मामले की सुनवाई की जाएगी। एसडीएम के आदेश से सहमत न होने पर जिला अधिकारी यानि जिला कलेक्टर के पास अपील की जा सकती है, SDM और जिला अधिकारी को 30 दिन में समाधान करना होगा।

एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि किसान व कम्पनी के बीच विवाद होने की स्थिति में इस अध्यादेश के तहत कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटाया जा सकता है।

यहां पर गौर करने की बात यह है कि प्रशासनिक अधिकारी हमेशा सरकार के दबाव में रहते हैं और सरकार हमेशा व्यापारियों व कम्पनियों के पक्ष में खड़ी होती है, क्योंकि चुनावों के समय व्यापारी और कम्पनियाँ राजनीतिक पार्टियों को चंदा देती हैं। न्यायालय सरकार के अधीन नहीं होते और न्याय के लिए कोर्ट में जाने का हक हर भारतीय को संविधान में दिया गया है, तो सवाल यही उठता है कि यहां किसान से संवैधानिक अधिकार क्यों छीना जा रहा है?

नए अध्यादेश की वजह से किसानों को न्याय मिलना बहुत मुश्किल हो जाएगा। ध्यान रखने योग्य बात यह भी है कि केंद्र सरकार ने इस बात की कोई गारंटी नहीं दी है कि प्राइवेट पैन कार्ड धारक व्यक्ति, कम्पनी या सुपर मार्केट द्वारा किसानों के माल की खरीद MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर होगी। सवाल यहां भी है कि छोटे किसानों को फसल बेचकर जल्दी पैसों की जरूरत होती है, तो ऐसे में वह मजबूरन कम दाम में फसल बेचेगा। तो किसान बड़े प्लेयर के आगे कैसे टिक पायेगा ? क्योंकि केंद्र सरकार के इस अध्यादेश से सबसे बड़ा खतरा यह है कि जब फसलें तैयार होंगी,  उस समय बड़ी-बड़ी कम्पनियां जानबूझ कर किसानों के माल का दाम गिरा देंगी और उसे बड़ी मात्रा में स्टोर कर लेंगी जिसे वे बाद में ऊंचे दामों पर ग्राहकों को बेचेंगी। मंडियों में किसानों की फसलों की MSP पर खरीद सुनिश्चित करने के लिए और व्यापारियों पर लगाम लगाने के लिए APMC एक्ट अलग-अलग राज्य सरकारों द्वारा बनाया गया था।

कानून के अनुसार APMC मंडियों का कंट्रोल किसानों के पास होना चाहिए लेकिन वहां भी व्यापारियों ने गिरोह बना के किसानों को लूटना शुरू कर दिया। APMC एक्ट में जहां एक तरफ कई समस्याएं हैं जिनमें सुधार की जरूरत है, दूसरी तरफ इसका एक सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसके तहत सरकार की ज़िम्मेदारी बनती है कि किसानों के माल की खरीद MSP पर हो। अब नए अध्यादेश के जरिये सरकार किसानों के माल की MSP पर खरीद की अपनी ज़िम्मेदारी व जवाबदेही से पूरी तरह से पल्ला झाड़ना चाहती है।

यहां सबसे महत्वपूर्ण एक सवाल यह है कि जब किसानों के उपज की खरीद निश्चित स्थानों पर नहीं होगी तो सरकार इस बात की गणना कैसे कर पायेगी कि किसानों के माल की खरीद MSP पर हो रही है या नहीं ?

यह हम भी मानते हैं कि देश में वर्तमान में कृषि उपज मंडी व्यवस्था में भारी सुधार की आवश्यकता है। एक अनुमान के मुताबिक अभी तक 30% किसान ही मंडी तक अपनी फसल को ले जा पाते हैं। बाकी किसान इससे बाहर बेच देते हैं। तो क्यों न अब सरकार को लक्ष्य रखना चाहिए कि देश भर में किसी भी गांव से 5 किलोमीटर के अंदर एक कृषि उपज मंडी हो। मंडी प्रांगण में आधुनिक कोल्ड स्टोरेज,आधुनिक तौल काँटे, बड़े वेयरहाऊस हों, बड़ा प्रांगड़ हो, आधुनिक छन्ना हों, किसान सभा ग्रह हो, किसानों की फसल के लिए MSP खरीद ग्यारंटी कानून हो, हम मानते हैं कि वर्तमान में यह सब ढाँचा इतना बड़ा नहीं है। MSP खरीद ग्यारंटी कानून नहीं है । लेकिन फिर भी APMC व्यवस्था को खारिज़ नहीं किया जा सकता है।

किसानों के माल खरीदने की इस नई व्यवस्था से किसानों का शोषण बढ़ेगा। उदहारण के तौर पर 2006 में बिहार सरकार ने APMC एक्ट खत्म कर के किसानों के उत्पादों की MSP पर खरीद खत्म कर दी। उसके बाद किसानों का माल MSP पर बिकना बन्द हो गया और प्राइवेट कम्पनियाँ किसानों का सामान MSP से बहुत कम दाम पर खरीदने लगी जिस से वहां किसानों की हालत खराब होती चली गयी और उसके परिणामस्वरूप बिहार में किसानों ने बड़ी संख्या में खेती छोड़ के मजदूरी के लिए दूसरे राज्यों का रुख किया।

दूसरा अध्यादेश है – एसेंशियल कमोडिटी एक्ट 1955 में संसोधन

पहले व्यापारी फसलों को किसानों के औने-पौने दामों में खरीदकर उसका भंडारण कर लेते थे और कालाबाज़ारी करते थे, उसको रोकने के लिए Essential Commodity Act 1955 बनाया गया था।  जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गयी थी। अब इस नए अध्यादेश के तहत आलू, प्याज़, दलहन, तिलहन व तेल के भंडारण पर लगी रोक को हटा लिया गया है। अब समझने की बात यह है कि हमारे देश में 85% लघु किसान हैं, किसानों के पास लंबे समय तक भंडारण की व्यवस्था नहीं होती है। वैसे भी किसान के पास वर्तमान में आय बहुत कम है छोटा किसान हो या बड़ा किसान हो वह अपनी उपज को ज्यादा दिन तक रोकने में सक्षम नहीं है क्योंकि किसान को फसल कटाई के बाद जल्द पैसों की आवश्यकता होती है।

यहां देखने वाली सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है की किसान अपनी उपज को कितने भी दिन तक भंडारण करके इसके पहले भी रख सकता था जो कानूनी रोक थी वो सिर्फ बड़ी कंपनियों और व्यापारियों के भंडारण करने पर थी सिर्फ उसे हटाया गया है तो यह कैसा किसान हितैषी फैसला हुआ ?  इससे तो सिर्फ धन्ना सेठो को कालाबाजारी करने का पूरा पूरा मौका मिला है कालाबाजारी करने का कानूनी अधिकार मिला है। यानी यह अध्यादेश बड़ी कम्पनियों द्वारा कृषि उत्पादों की कालाबाज़ारी के लिए लाया गया है, ये कम्पनियाँ और सुपर मार्केट अपने बड़े-बड़े गोदामों में कृषि उत्पादों का भंडारण करेंगे और बाद में ऊंचे दामों पर ग्राहकों को बेचेंगे। इससे किसान तो बुरी तरह प्रभावित होगा ही पर देश का आम उपभोक्ता भी बार बार मंहगाई का शिकार होगा।

किसान फसल बोनी से एक महीना पहले से असमंजस में रहता है कि कौनसी फसल की बोनी करे तो वह अक्सर जिस फसल के दाम अधिक होते हैं उसे चुन लेता है। सोचिए बड़े उद्योगपतियों द्वारा अतिरिक्त भंडारण की गई फसल के बोनी के समय रेट ज्यादा रहेंगे तो किसान महंगी फसल को बोयेगा। लेकिन किसान की फसल बोने के 4 से 5 महीना बाद मार्केट में आएगी तब तक बड़े प्लयेर अपनी स्टॉक की हुई फसल को फिर से मार्केट में निकालेंगे। इससे  किसान की फसल आते तक फिर दाम बहुत ज्यादा गिर जाएंगे। ऐसे में किसान का फिर से शोषण होगा। फिर किसान की सस्ती फसल को बड़े प्लेयर खरीद कर स्टॉक कर लेंगे और उसका दाम बढ़ा देंगे यही क्रम चलता रहेगा।

यहां हमें अमेरिका की भी चर्चा करनी चाहिए जहां 1970 से ओपन मार्केट कमोडिटी एक्ट है मतलब आज जो हिंदुस्तान में सरकार बदल रही है वह व्यवस्था अमेरिका में 50 साल पहले से है। वहां वॉलमार्ट, नेक्सेस जैसी बड़ी कंपनियां किसान की फसल को खरीद कर ऐसे ही भण्डारण कर लेती हैं। जिसका परिणाम आज यह है कि अमेरिका में 2018 के एक अध्ययन में 91% किसान कर्जदार थे। जिन पर 425 बिलियन डॉलर का कर्ज है और 87% अमेरिकी किसान आज खेती छोड़ना चाहते हैं। लेकिन वहां के किसान आज सिर्फ सरकारी मदद से टिके हुए हैं। आज अमेरिका में किसान को 242 बिलियन डॉलर यानी लगभग 7 लाख करोड़ रुपया की सरकारी सब्सिडी मिलती है। तो इससे यह साफ होता है कि जो मॉडल अमेरिका में फैल हो चुका है उसे वर्तमान सरकार यहां लागू करना चाहती है।

एक उदाहरण से हमें और समझना चाहिए कि यह एक्ट किसान को कैसे खत्म करेगा। पिछले कुछ दिन पहले सिवनी जिला मध्यप्रदेश के किसानों ने मक्का समर्थन मूल्य 1850 रुपया क्विंटल से काफी कम दाम लगभग 900 से 1000 रुपया में बिक रहा था। उसके लिए “ऑनलाइन किसान सत्याग्रह” किये थे इसके बावजूद भी केंद्र सरकार ने किसानों को राहत न देते हुए मक्का से संबंधित बड़ी कंपनियों को विदेश से 5 लाख मीट्रिक टन मक्का आयात करने की छूट दे दी। अमेरिका में वर्तमान में मक्का का दाम 145 डॉलर प्रति टन मतलब 1060 रुपया प्रति क्विंटल है। अब सोचने वाली बात यह है कि अपने देश की कंपनियां 1000 से 1100 रुपया क्विंटल भाव का मक्का आयात करके गोदामों में भंडारण कर लेंगी और किसान की भी फसल आज से 2 महीना बाद मार्केट में आने लगेगी तो किसान को फिर 800 से900 रुपया का दाम मिलेगा। इससे किसान की लागत जो एक क्विंटल मक्का उगाने में 1213 रुपया सरकार खुद मानती है वह भी नहीं मिलेगी।

तीसरा अध्यादेश है – फार्मर्स एग्रीमेन्ट ऑन प्राइस इंश्योरेंस एन्ड फार्म सर्विसेस ऑर्डिनेन्स

इसके तहत कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा दिया जाएगा जिसमें बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ खेती करेंगी और किसान उसमें सिर्फ मजदूरी करेंगे। इस नए अध्यादेश के तहत किसान अपनी ही जमीन पर मजदूर बन के रह जायेगा। इस अध्यादेश के जरिये केंद्र सरकार कृषि का पश्चिमी मॉडल हमारे किसानों पर थोपना चाहती है। हालांकि यह मॉडल हमारे देश में कोई नया नहीं है, देश में पहले से भी कांट्रेक्ट फार्मिंग किसानों से करवाई जा रही है। मध्यप्रदेश में टमाटर और शिमला मिर्च की, महाराष्ट्र में फूलों और आनर की खेती, कर्नाटक में काजू की खेती, उत्तराखंड में औषधियो की खेती इसके उदाहरण है। जो किसानों के लिहाज से ज्यादा फायदेमंद नहीं हैं। पुराने मॉडल को ही फिर भी इतने हो हल्ला के साथ बढ़ावा दिया जा रहा है कि इससे किसानों। की पूरी तश्वीर और तकदीर बदल जाएगी  लेकिन सरकार यह बात भूल जाती है कि हमारे किसानों की तुलना विदेशी किसानों से नहीं हो सकती क्योंकि हमारे यहां भूमि-जनसंख्या अनुपात पश्चिमी देशों से अलग है और हमारे यहां खेती-किसानी जीवनयापन करने का साधन है वहीं पश्चिमी देशों में यह व्यवसाय है।

अनुभव बताते हैं कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से किसानों का शोषण होता है। पिछले साल गुजरात में पेप्सिको कम्पनी ने किसानों पर कई करोड़ का मुकदमा किया था जिसे बाद में किसान संगठनों के विरोध के चलते कम्पनी ने वापस ले लिया था। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत फसलों की बुआई से पहले कम्पनियां किसानों का माल एक निश्चित मूल्य पर खरीदने का वादा करती हैं लेकिन बाद में जब किसान की फसल तैयार हो जाती है तो कम्पनियाँ किसानों को कुछ समय इंतजार करने के लिए कहती हैं और बाद में किसानों के उत्पाद को खराब बता कर रिजेक्ट कर दिया जाता है।

इस एक्ट में यह गारंटी नहीं है कि किसान का माल कंपनी पूरा खरीदेगी। फिर इसमें सवाल यही उठता है कि किसान मेहनत से 100 केला उगाएगा और कंपनी उसके 25 केले को खराब या छोटा बताकर रिजेक्ट कर देगी तो वह किसान कहाँ बेंचेगा..?

  • पुनश्चः – मंडी टेक्स और वहां के कानून कायदे से सिर्फ व्यापारी को छूट है।
  • भंडारण और कालाबाजारी का कानूनी अधिकार व्यापारी और कंपनियों को मिला है।
  • कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग से कंपनियों को खेती करने का अधिकार और बढ़ावा मिला है किसान सिर्फ अपने खेत का मजदूर बनेगा।

किसान के लिए इन अध्यादेशों में कुछ भी नहीं है तो हमारी प्रधानमंत्री जी से प्रार्थना है कि इन्हें आप किसान हितेषी बताकर प्रचार प्रसार ना करें और किसान को इतना नासमझ न समझें। इन अध्यादेश में ना किसान को फसल की MSP मिलने की ग्यारंटी है ना ही पूरी फसलों के बिकने की गारंटी है।

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