अनिल अंबानी द्वारा किया गया मानहानि का मुक़दमा और कुछ सवाल

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हम राफेलसौदा और राफेलघोटाला में सवाल उठा रहे हैं, सरकार पर। हम जानना चाहते हैं कि कैसे हमारी कंपनी #एचएएल से तयशुदा सौदा छीन कर पंद्रह दिन पहले गठित, डिफाल्टर के कई मामले झेल रही अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस को दे दी गयी और सरकार से सवाल पर तनतना रहे हैं अनिल अंबानी।
आज उन्होंने एनडीटीवी पर 10,000 करोड़ के मानहानि का केस किया है। अगर केस ही करना है तो मिडियापार्ट पर भी करें फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद पर करें। पर वहां नहीं करेंगे। विदेश में ओलांद की मित्र की फ़िल्म को तो फाइनेंस करेंगे और देश मे राजनीतिक दल को चंदा देकर दल का ईमान खरीदेंगे, और गिरोहबंद पूंजीवाद ( CronyCapitalism ) के एक अंग की तरह ठेका प्राप्त करेंगे।
ये मुकदमा 29 सितंबर को एनडीटीवी के साप्ताहिक शो “ट्रुथ वर्सेज हाइप” में दिखाई गई खबर पर दायर किया गया है। एक बयान में एनडीटीवी ने कहा है कि मानहानि का मुकदमा और कुछ नहीं बल्कि अनिल अंबानी समूह द्वारा तथ्यों को दबाने और मीडिया को अपना काम- रक्षा सौदे के बारे में सवाल पूछने और सार्वजनिक हित से जुड़े सवालों का जवाब मांगने- करने से रोकने की कोशिश है। साथ ही एनडीटीवी ने ये भी कहा है कि इस बात को याद रखना चाहिए कि शो के प्रसारित होने से ठीक पहले रिलायंस की भूमिका पर सवाल किसी और ने नहीं बल्कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांकोइस ओलांदे ने उठाया था जिसके समय में ये डील हुई थी। एनडीटीवी ने अपने शो में सभी पक्षों को दिखाया है। इसमें डसाल्ट का वो बयान भी शामिल था जिसमें उसने रिलायंस के साथ समझौते में जाने पर किसी तरह के दबाव से इनकार किया था। शो के दौरान पैनल में शामिल लोगों ने हर पक्ष से मामले पर विचार किया था।
एनडीटीवी ने कहा कि इसके जरिये मीडिया को अपना काम न करने की चेतावनी दी जा रही है। उसने कहा कि इस मामले को अकेले एनडीटीवी ने नहीं उठाया है लेकिन उसे निशाना बनाकर सच को दबाने की कोशिश जरूर की जा रही है।
राफेल खरीद पर लगने वाला धन हमारा है। हम जो एक एक पैसा सरकार को कर के रूप में देते हैं उसी से यह सारे सौदे होते हैं। सरकार भी हमीं चुनते हैं। यह चुनी हुयी सरकार संवैधानिक रूप से हमारे प्रति जवाबदेह है। हमे यह जानने का यह पूरा संवैधानिक अधिकार है कि हमारे करों का उपयोग कहां और किस प्रकार से हो रहा है। इसी लिए, नियंत्रक और महा लेखा परीक्षक ( सीएजी ) जैसा संवैधानिक और अधिकार सम्पन्न पद भी बनाया गया है। सीएजी की रिपोर्ट पर संसद बहस करती है। लोक लेखा समिति ( पब्लिक एकाउंट्स कमेटी ) सीएजी की रिपोर्ट पर, मीन मेख निकलती है। सरकार से जवाब तलब करती है। कभी कभी सरकार के मंत्रियों को इस्तीफा भी देना पड़ा है, बशर्ते गैरतमंद सरकार हो तो। जी, वही सरकार और उसी सर्वशक्तिमान सरकार के प्रधानमंत्री जिसे हमारे कुछ मित्र अवतारवाद में एकादशावतार बता कर ठकुरसुहाती के नए प्रतिमान गढ़ते रहते हैं।
राफेल पर उसकी कीमत, टेक्निकल स्पेसिफिकेशन और युद्ध के उपकरणों को दरकिनार कर दीजिये तो भी, जो यक्ष प्रश्न ज़ीवित और आज तक अनुत्तरित है वह यह है कि 8 अप्रैल 2015 तक सरकार को यह तथ्य पता है कि यह सौदा एचएएल और दसाल्ट के बीच हो रहा है। विदेश सचिव का उस दिन का बयान पढें। पर 10 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंदमोदी जी की पेरिस यात्रा होती है और सरकारी कंपनी उस सौदे से बाहर हो जाती है और चंद हफ्तों पहले 5 लाख की पूंजी से गठित अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस जिसके पास न फैक्ट्री है न तकनीक यह ठेका राज कृपा से हथिया लेती है ! अब कहा जाता है कि यह सौदा दसाल्ट का निजी मंतव्य था। होगा। पर पैसा तो हमारा लग रहा है। क्या सरकार यह नहीं पूछ सकती थी कि एक अनुभवी और स्थापित विमान निर्माता कम्पनी के अब तक सौदे में शामिल करने के बाद अचानक क्या हुआ कि उसे हटा कर रिलायंस को यह दायित्व दे दिया गया। यह सरकार है या मार्केटिंग मैनेजर ! यही तथ्य अनिल अंबानी को अदालत में रखना चाहिये कि वे यह सौदा कैसे पाये।
सवाल निजी क्षेत्र और अनिल अंबानी की भागीदारी का नहीं है। सवाल है वे किन विन्दुओं पर एचएएल से बेहतर है। क्या हमने उन्हें घाटे से उबारने का ठेका ले रखा है। देश मे और भी निजी कंपनियां है, उन्हें भी प्रतिद्वंद्विता में लाने के लिये सरकार ने फ्रांस की सरकार और  दसाल्ट कम्पनी से बात क्यों नहीं की ? सरकार की क्या मजबूरी थी ? क्या यह सवाल आप सब के जेहन में उठ नहीं रहा है ?
समाचार चैनल और अखबार लोकतंत्र की प्राण वायु हैं। अब अगर प्राणवायु भी अधोवायु की तरह प्रदूषित और बदबूदार हो जाय तो घुटन तो होगी ही। पर इन तमाम प्रदूषण के बीच मे सुगंधित हवा के झोंके के समान कुछ संचार तँत्र हैं जो हमे सच से रूबरू कराते हैं। सोशल मीडिया भी उन्ही में से एक है, जहां हर आदमी एक चलता फिरता अखबार है। सच जानना हमारा अधिकार है। सत्यमेव जयते हमारा बोध वाक्य है। सच जानना और सूचना प्राप्त करना अब हमारा विधिसम्मत अधिकार भी बन गया है। इसी अधिकार और दायित्व के अंतर्गत हम सरकार से सवाल पूछते हैं, उसके इरादों पर संदेह जताते हैं, और सरकार असहज होती है तो हो, सरकार हमसे हैं न कि हम सरकार से हैं। सरकार एक सर्विस प्रोवाइडर की तरह है जो विधि विधान के अंतर्गत देश का शासन तँत्र चलाने के लिये चुनी गयी है न कि मध्ययुगीन बादशाहों की तरह अपने चहेतों को मनसब बांटने के लिये ।
अनिल अंबानी का यह मुक़दमा हमारे सच जानने, सूचना पाने और हमारे तथा हमारी सरकार के बीच आपसी सम्बंधो पर एक अतिक्रमण है। यह मुक़दमा येन प्रकारेण राफेलसौदा हथियाने की एक पूंजीवादी खीज है और कुछ नहीं है। आज विजयादशमी है। आज के दिन सत्ता हो या पूंजी इन सबके एकाधिकार के मृत्यु की कामना कीजिये। रावण पर राम की विजय का यह प्रतीक एकाधिकार, अहंकार, सारी दुनिया को मुट्ठी में कर लेने के दंभी आचरण पर एक सामान्य पर असामान्य इरादों वाले  व्यक्ति और उसकी जिजीविषा के विजय का प्रतीक भी है। इस लेख में आये शब्द हम का अर्थ जनता है, जन है और आप हम सब हैं।
© विजय शंकर सिंह

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