शर्म और हया जिसे इस्लाम में ईमान का एक हिस्सा कहा गया है. तुम्हें वो शर्म भी नहीं आई, तुम उस बच्ची गीता को भाभी कह कह कर पोस्ट कर रहे हो. मैंने देखा तुम्हारी आई-डी, अच्छे से चैक किया. तुम ये जस्टीफ़ाई कर रहे थे कि गीता अपनी मर्ज़ी से शाहबाज़ के साथ गई. सीसीटीवी के आधार पर तुम ये बात लिख रहे हो, तुम ये भी कह रहे हो की उसकी उम्र 11 नहीं बल्कि ज़्यादा है. दरअसल तुम जैसे लोग ही हैं, जो संघ के लिए खाद और उर्वरा का कम करते हैं.
तुम्हे तारिक़ बिन ज़ियाद याद तो होगा, एक ऐसा नौजवान जिसने एक इसाई बादशाह की बच्ची की इज्ज़त की हिफ़ाज़त के लिए समुंदर पार करके अफ्रीका से स्पेन की और कूच जिया था. मूसा बिन नसीर का ये शागिर्द एक गैरमुस्लिम बच्ची की आबरू को बचाने के लिए स्पेन पहुँच जाता है.
तुम्हे मुहम्मद बिन क़ासिम भी याद होना चाहिए कि किस तरह से राजा दाहिर के चंगुल से एक लड़की को बचाने के लिए मुहम्मद बिन कासिम सिंध पर हमला बोल देते हैं, तुम्हे औरंगज़ेब को भी याद करना चाहिए जिसने अपने एक मुस्लिम मनसबदार को सरेआम सज़ा दी, सिर्फ़ इसलिए कि बनारस में एक पंडित की लड़की पर उसकी गंदी नज़रें गड़ी हुई थीं. जिसके बाद उस ब्राम्हण ने औरंगज़ेब को इस बात से आगाह करवाया था.
तुम खुद को मुसलमान बोलते हो, हाँ तुम्हारी प्रोफ़ाइल पिक से तो यही नज़र आता है. तुम्हारे नाम मुसलमानों जैसे हैं, क्यों तुम एक मुसलमान होकर इस्लामी लिहाज़ से जो काम गलत है. उसे सही ठहरा रहे हो. सुनो जब तुम बात करो तो इंसाफ की बात किया करो. इंसाफ की बात करने के लिए अल्लाह तुमसे क़ुरान में भी तो कहता है, कि जब बात करो तो सच्ची बात करो (इंसाफ की बात करो). पर तुमने कभी उस कुरान को पढ़ा ही नहीं, इसलिए तुम्हारी इस अक्ल में ताले पड़ गए हैं. दिमाग़ तुम्हारा कुंद हो गया है.
ये बेतुकी बातें करके तुम उस कृत्य को सही ठहराने की कोशिश कर रहे हो, जिस कृत्य को तुम अपनी बेटियों के साथ होने पर बर्दाश्त नहीं कर सकते. दरअसल तुम्हारे दिमाग में गंदगी भर गई है. या फिर तुम खुद को बहुत बड़ा तीरंदाज़ समझते हो. सुनों अगर वो बच्ची बड़ी भी होती और मर्ज़ी से उस लड़के के साथ मदरसा या कहीं और जाकर संबंध बनाती, तब भी एक मुस्लिम होने के नाते तुम्हे हक़ नहीं है, कि तुम उसे सही बोलो. क्या तुम्हारा ज़मीर मर गया है.
अरे इंसाफ की बात सीखना चाहते हो तो उस नबी से सीखो, जिसके उम्मती होने का तुम्हारा दावा है. एक चोरी का केस आता है, चोरी करने वाली लड़की का नाम फ़ातिमा होता है. पैगंबर मुहम्मद स.अ.व. कहते हैं, की अगर इस लड़की की जगह मेरी अपनी बेटी फातिमा बिन्ते मुहम्मद स.अ.व. भी होती तो मैं उसे हाथ काटने की सज़ा सुनाता.
क्या तुमने नहीं पढ़ा – पैगंबर हज़रत मुहम्मद स.अ.व. ने फ़रमाया मोअमिन होते हुए तो कोई ज़िना कर ही नही सकता (बुख़ारी शरीफ़, हदीस नंबर – 1714)
फिर तुम कौन होते हो जो खुद को मुसलमान कहते हो और ज़िना को जायज़ ठहराते हो. तुम हाँ तुम जो उस बच्ची को भाभी कहकर सोशलमीडिया में इस्लाम और मुसलमानों की इज्ज़त का जनाज़ा निकलवा रहे हो.
सुनो तुम सुनो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान में क्या फ़रमाता है –
और ज़िना के पास भी ना जाना, बेशक वो बेहयाई है और बुरी राह है” (क़ुरान:अलइसरा:-32)
वहीं उसके रसूल जिसके उम्मती होने का तुम्हारा दावा है, वो ज़िना की सज़ा और अज़ाब के बारे में बता रहे हैं. जो इस्लाम के शरिया कानून में है.
“अगर ज़िना करने वाले शादी शुदा हो तो खुले मैदान में पत्थर मारमार कर मार डाला जाये और अगर कुंवारे हो तो 100 कोड़े मारे जाये. (बुख़ारी शरीफ़, हदीस नंबर :1715)
अब तुम खुद के गिरेंबान में झाँककर देखो, हो सकता है तुम ये कहोगे कि गीता वाले केस की जांच चल रही है. इसलिए तुमने ऐसा कहा. अरे तुमको फ़ैसला करने का हक़ किसने दिया जो तुम उस बच्ची को भाभी और उस गुनाहगार शाहबाज़ को भाई बना रहे हो. ज़रा सोचना और ख़ूब सोचना कि मर्ज़ी से हो या ज़िना बिल जब्र हो. इस्लाम के नज़रिए से क्या ये सही है. बिलकुल नही.
तुम जैसे उचक्कों की वजह से ही इस मुल्क में संघ की सोच को बढ़ावा मिला है, तुम न दीन के हो न दुनिया के. तुम बस अपनी बेहूदा सोच के गुलाम हो.
सिर्फ़ तुम नहीं, बल्कि सोशल मीडिया में तुम्हारी करतूतों के लिए मुस्लिमों को अरबी भेड़िये जैसे शब्द का उपयोग करने संबोधित वाले लोग भी तुम्हारी ही कैटेगरी के हैं.
कहाँ बात इंसाफ की होनी चाहिए थी, बात पीड़ितों को न्याय दिलाने की होनी चाहिए थी. पुलिस की चार्जशीट का इंतजार करने की बात होनी चाहिये थी. पर चूंकि कुछ संघी मानसिकता के लोग आसिफ़ा केस में उलटी बात कर रहे थे. तुम भी गीता के मामले में उलटी बता करने लगे.
सुनों यही तो वो गिरोह चाहता था, कि जिस तरह आसिफ़ा केस को लेकर हिंदू मुसलमान किया जा रहा था. तुम गीता के केस में करो. और तुमने किया तुम गीता के गुनाहगार के साथ खड़े हो गए तुम उस बच्ची को भाभी कहकर संबोधित करने लगे. पुलिस छानबीन कर रही है, पर तुम उसके साथ खड़े हो गए. कठुआ में क्या हुआ था, यही तो हुआ था. पुलिस ने छानबीन शुरू की और कुछ लोग आसिफ़ा के बलात्कारी के साथ खड़े हो गए.