कुछ एक सेक्युलर लोगों को छोड़कर, देश के लिबरल-लेफ़्ट, प्रोग्रेसिव (Islamophobic Muslims, Self-hating Muslims, और Majoritarian Muslim Apologists अलग से शामिल हैं..) का पूरा का पूरा जमावड़ा न तो JNU में नजीब अहमद पर संघी हमले और उसके गायब होने, और बाद में नजीब के लिए इंसाफ मांग रही उसकी माँ के संघर्ष में शरीक हुआ.
और अब AMU में संघियों का पुलिस के साथ मिलकर पूर्व उपराष्ट्रपति हमीद अंसारी पर जो हमला था, उसमें जिस तरह से स्टूडेंट्स पर हमला है, उस पर भी सब ने चुप्पी साधी है.
ये पहली बार नहीं हुआ है, 1937 से हर बार यही किया जाता रहा है, और 1947 के बाद तो ये फैशन हो गया है. कठुआ पर तब तक नहीं बोलेंगे, जब तक उन्नाव नहीं हो जाता. ऐसा लगता है कि बैलेंसिंग की कोई चैंपियनशिप चल रही है. बैलेंस के लिए कुछ नहीं मिले तो मुंह नहीं खोलते.
अरे भई, किस तरह देश को बचाओगे. आपमें और संघियों में क्या फर्क है. वो खुली मार देते हैं, और आप चुप मार. आप JNU, BHU, TISS के लिए बोलोगे, पर AMU के लिए नहीं. वाह, बहुत बढ़िया. आपके अन्दर छुपी हुई मुस्लिम विरोधी मानसिकता है, उसका आप कभी इलाज नहीं करते.
इसी के चलते चुनाव कोई भी जीते 2019 में, देश ज़्यादा दिन बच नहीं पायेगा आपकी इस बीमारी की वजह से. आप खुद ही देश को तबाह कर रहे हैं.
मुसलमान भी दलित, आदिवासी, पिछड़ों, और महिलाओं की तरह वंचित और शोषित हैं, अगर वो जनतांत्रिक संघर्ष के लिए सड़कों पर उतरा तो आपकी धूल उड़ा देगा. आपको पूछने वाला भी कोई नहीं होगा.
वक़्त रहते सोच लीजिये, और जैसे आप दलित, आदिवासी, पिछड़ों, और महिलाओं के मुद्दों पर बोलते हैं और इन समुदायों को प्रतिनिधित्व देते हैं, इस तरह मुसलमानों को भी प्रतिनिधित्व दीजिये. और जब तक आप मुसलमानों को भागीदार नहीं बनाते, आपके संविधान, लोकतंत्र और देश बचाने की कोशिशें मुसलमानों के साथ नहीं देश की आज़ादी और बराबरी के सपने के साथ विश्वासघात करती रहेंगी.
मोदी को 2019 का चुनाव हराईये ज़रूर, लेकिन सिर्फ 2019 का चुनाव जीत कर देश नहीं बचने वाला. क्योंकि आपकी सोच घटिया और संविधान विरोधी है. सेकुलरिज्म के क़ातिल गोडसे-सावरकर की संतानों के अलावा आप सब भी हैं. मुस्लिम विरोधी मानसिकता में आपका साझापन दुनिया के लिए तबाही लायेगा.
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