फरवरी की पहली तारीख को वित्तमंत्री ने देश का बजट प्रस्तुत किया। बजट में क्या मिला, क्या नहीं मिला इस पर अर्थशास्त्री मंथन कर रहे हैं। पर अब तक जितनी भी समीक्षाएं आयी हैं उनमें बजट को लेकर उत्साह का अभाव है। बजट किसी भी देश के आगामी वित्तीय वर्ष का लेखा जोखा ही नहीं होता है बल्कि वह देश की आर्थिक गति और भावी स्वरूप का संकेत भी देता है। बजट का उद्देश्य केवल राजस्व एकत्र करके उसे विभिन्न मदों में बांटना ही नहीं होता है बल्कि उसका एक उद्देश्य यह भी होता है कि जनता के हित मे राज्य क्या कर रहा है और एक लोककल्याणकारी राज्य के उद्देश्य की पूर्ति में वह बजट कितना कारगर है, इसे जनता को बताया जाय। सरकार हो या कानून, बजट हो या राजस्व, हर चीज का एक उद्देश्य होता है। कोई भी बजट, कानून, राज्य निरुद्देश्य नहीं हो सकता है। पहले हम लक्ष्य तय करते हैं तब उसकी पूर्ति के लिये आगे बढ़ते हैं। बिना किसी सार्थक उद्देश्य के बजट भाषण कितना भी लंबा, सुंदर कविताओं के उद्धरणों और मोहक आशावाद से भरा हो, पर अगर वह जनहित के उद्देश्यों को पूरा नहीं करता है तो, वह अनावश्यक रूप भरे हुए पन्ने का ही बजट कहा जायेगा।
अब तक का यह सबसे लंबा बजट भाषण रहा। ढाई घण्टे तक वित्तमंत्री बजट पढ़ती रहीं। अंत मे वे पढ़ते पढ़ते कुछ अस्वस्थ हो गयीं तो उन्होंने आखिरी दो पन्नों को नहीं पढ़ा। एक बार मैंने केंद्रीय वित्त मंत्रालय में नियुक्त एक संयुक्त सचिव मित्र से बातचीत के दौरान पूछा था कि बजट भाषण के दौरान अक्सर शायरी और कविताएं क्यों मंत्री पढ़ते हैं ? उन्होंने मुझसे कहा कि यह शुष्क बजट भाषण में थोड़ी रोचकता का समावेश हो जाय इसलिए वित्तमंत्री अपनी रूचि से कुछ प्रेरणाप्रद कविताएं और शेर ओ शायरी जोड़ देते हैं। यह परंपरा इस बार भी रही। हर बजट के पहले आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत किया जाता है। उस आर्थिक सर्वेक्षण में देश की आर्थिक स्थिति का विवरण रहता है और वही बजट का आधार बनता है। इस बार भी यह परंपरा बरकरार रखी गयी।
संसद में शु्क्रवार को पेश की गई वित्त वर्ष 2019-20 की आर्थिक समीक्षा में कहा गया कि देश की आर्थिक वृद्धि दर ( जीडीपी ) में जितनी गिरावट आनी थी, वह अब तक आ चुकी है और अगले वित्त वर्ष में यह बढ़कर 6 से 6.5% के बीच रहेगी। यानी हम तनज्जुल की हद में आ गए हैं, और अब तरक़्क़ी के एक ज़ीने की उम्मीद कर सकते हैं ! इस बार के आर्थिक सर्वे के चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर ( जीडीपी ) 5 फीसदी रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है। समीक्षा में कहा गया कि वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर कमजोर होने और देश के वित्तीय क्षेत्र की समस्याओं के चलते निवेश धीमा होने से भारत पर असर पड़ रहा है। इसके चलते चालू वित्त वर्ष में घरेलू आर्थिक वृद्धि दर एक दशक के निचले स्तर पर आ गई है। सर्वे में कहा गया कि 2019-20 में वृद्धि कम से कम 5% रहने का अनुमान है। समीक्षा में कहा गया है कि संपत्ति का वितरण करने के लिए पहले उसका सृजन करने की आवश्यकता होती है। इसी संदर्भ में इसमें संपत्ति का सृजन करने वालों को सम्मान दिए जाने की जरूत पर बल दिया गया है।
सर्वे के अनुसार,’ सरकार का दखल प्याज जैसी वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित करने में अप्रभावी साबित हुआ लगता है।’ आर्थिक वृद्धि को गति प्रदान करने के लिए समीक्षा में विनिर्माण के नए विचारों की वकालत की गई है। इन विचारों में ‘विश्व के लिए भारत में असेंबल’ ( मेक इन इंडिया ) करने का विचार भी शामिल है, जिससे रोजगार सृजन होगा। समीक्षा में कारोबार सुगमता ( ईज ऑफ डूइंग बिजनेस ) को आगे बढ़ाने के लिए निर्यात संवर्द्धन के लिए बंदरगाहों से लालफीताशाही दूर करने तथा कारोबार शुरू करने, संपत्ति का रजिस्ट्रेशन कराने, टैक्स पेमेंट करने और करार करने को आसान बनाने जैसे उपाय करने की जरूरत है।
सर्वे में सरकारी बैंकों में कंपनी संचालन बेहतर बनाने तथा निवेशकों का भरोसा बढ़ाने के लिये और आधिक जानकारी के प्रकाशन की आवश्यकता जरूरत पर बल दिया गया है। समीक्षा में बैंकिंग क्षेत्र में बौनेपन की प्रवृत्ति का भी जिक्र है। आर्थिक सर्वे में अर्थव्यवस्था तथा बाजार को मजबूत बनाने के लिए नये उपायों की ज़रूरत बतायी गई है।
आर्थिक सर्वे में यह स्वीकार किया गया है कि देश की जीडीपी दर गिरी है । लेकिन जो सर्वे में नहीं कहा गया है, वह यह है कि न केवल जीडीपी की ही दर गिरी है बल्कि उन सभी आर्थिक सूचकांक की दर गिरी है जिनसे अर्थव्यवस्था की सेहत का पता चलता है। राजस्व संग्रह, में कमी आयी है, रुपये की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कीमत गिरी है, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कमी आयी है, जनता की मांग कम हुयी है, बेरोजगारी बढ़ी है और बैंकिंग सेक्टर तो बढ़ते एनपीए से लगभग तबाह होने की कगार पर है। ज़ाहिर है ऐसी चुनौतियों के बीच एक आशापूर्ण बजट प्रस्तुत करना कठिन होता है। संभवतः तथ्यों के अभाव को बजट भाषण को ही लंबा रख कर ऐतिहासिक कहने की कोशिश की गयी है।
अब बजट 2020 के कुछ विशेष प्रस्तावों पर नज़र डालते हैं।
- आयकर में राहत दी गयी। आयकर की दो श्रेणी रखी गयी है। एक तो पुरानी जो अभी प्रचलित है। दूसरी में 5 लाख की आय पर कोई कर नहीं, और उसके ऊपर लेकिन 5 लाख तक की आय पर 10%, 7.5 लाख से 10 लाख की आय पर 15 %, 10 लाख से 12.5 लाख तक पर 20 %, 12.50 लाख से 15 लाख तक पर 25 % और 15 लाख के ऊपर 30 % की दर रखी गयी। करदाता को नए और पुराने, जो भी चाहे, उसे विकल्प चुनने की आज़ादी है।
- कॉरपोरेट टैक्स जो कंपनियों के लिये होता है उसे 22 % पर कर दिया गया है।
- सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े प्रोजेक्ट्स के लिये शत प्रतिशत कर राहत देने का निर्णय किया है।
- बिजली कंपनियों के लिए 15 % कर राहत का प्रस्ताव है।
- बैंकों में जमाराशि का बीमा ₹ 5 लाख तक कर दिया गया है। पहले यह ₹ 1 लाख तक का था।
- कम्पनी एक्ट में सिविल मामलो को फौजदारी मामलो में बदलने के लिये कानूनी बदलाव किया जाएगा, जिससे त्वरित दंडात्मक कार्यवाही हो।
- सरकार जीवन बीमा निगम में अपनी हिस्सेदारी एक आईपीओ यानी शेयर मार्केट में बेचेगी और इसी प्रकार से आईडीबीआई में भी अपनी हिस्सेदारी बेचेगी।
- कृषि तथा सहायक क्षेत्रों के लिए ₹ 2.83 लाख करोड़ की राशि का आवंटन किया गया है।
- वर्ष 2022 तक किसानों की आय दुगुनी करने का वादा है।
- वित्तीय वर्ष 2020 – 21 में ₹ 15 लाख करोड़ कर्ज़ या अग्रिम के लिये रखा गया है।
- सूखे से100 अति प्रभावित क्षेत्रो के लिये सिंचाई की सुविधा बढाई जाएगी।
- सोलर पम्प आदि के लिये 20 लाख किसानों को सुविधा दी जाएगी।
- रेलवे शीघ्र नष्ट होने वाली सामग्रियों की ढुलाई के लिये फ्रिज कंटेनर की सुविधा देगी।
- स्वास्थ्य के क्षेत्र में ₹ 69,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है।
- स्वच्छ भारत के लिये ₹ 12,300 करोड़ रुपये का आवंटन है।
- द्वितीय और तृतीय श्रेणी के शहरों के लिये पीपीपी मॉडल ( पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप ) के अंतर्गत अस्पताल खोले जाएंगे।
- वर्ष 2025 तक आयुष्मान योजना के अंतर्गत सभी को जन औषधि ययोजना से जोड़ा जाएगा।
- ₹ 3.6 करोड़ रुपए का आवंटन सभी घरों में पाइप से पानी की सुविधा का प्रस्ताव है।
- ₹ 35,600 करोड़ रुपये, पोषण संबंधी योजनाओं पर व्यय किये जायेंगे।
- शिक्षा के क्षेत्र में ₹ 99300 करोड़ और कौशल विकास के लिये ₹ 3,000 करोड़ का आवंटन किया गया है।
- नगर स्थानीय निकाय, एक साल के लिये युवा इंजीनियरों को इंटर्नशिप की सुविधा देंगे।
- एआईआरएफ रैंकिंग वाले 100 शीर्ष शिक्षा संस्थान, स्नातक स्तर तक की शिक्षा सुविधा छात्रों को ऑनलाइन देंगे जो वंचित वर्ग के लिये विशेष रूप में होगी।
- राष्ट्रीय पुलिस विश्वविद्यालय और फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय की स्थापना का प्रस्ताव है।
- क्वांटम टेक्नोलॉजी और कम्प्यूटिंग के लिये ₹ 8,000 करोड़ का आवंटन किया गया है।
- आधारभूत ढांचे के लिये बजट में ₹ 1,7 लाख करोड़ का प्राविधान किया गया है।
- एक राष्ट्रीय लॉजिस्टिक नीति बनाने का प्रस्ताव है।
- वर्ष 2024 तक 100 नए हवाई अड्डे बनाये जाएंगे।
- 5 नए स्मार्ट सिटी बनाये जाएंगे। 100 का वादा पिछले पांच साल से है। वे कहां है यह आप स्वयं ढूंढे।
- 20 राष्ट्रीय राजमार्गों पर टोल सिस्टम लगाया जाएगा।
- 27,000 किमी रेलवे लाइनें विद्युतीकृत की जाएंगी।
- 1150 ट्रेनें पीपीपी मॉडल के अंतर्गत चलायी जाएंगी।
- चार रेलवे स्टेशन पीपीपी मॉडल से विकसित किये जायेंगे।
- रेलवे के लिये सोलर पैनल, बिजली बनाने के लिये, लगाए जाएंगे।
- ₹ 18,600 करोड़, चेन्नई बेंगलुरु एक्सप्रेस वे और बेंगलुरू की उपनगरीय रेल सेवा के लिये आवंटित किये गए हैं।
- 9000 किमी का इकोनॉमिक कॉरिडोर बनाया जाएगा।
- वर्ष 2024 तक दिल्ली मुंबई एक्सप्रेस वे तैयार हो जाएगा।
- 550 रेलवे स्टेशन पर वाई फाई की सुविधा दी जाएगी।
- एक लाख गावों के लिये ₹ 6000 करोड़ की व्यवस्था भारत नेंट योजना के विस्तार के लिये की गयी है।
- उद्योग और व्यापार के लिये ₹ 27,300 करोड़ का आवंटन किया गया है।
- ₹ 20,000 करोड़ की व्यवस्था रिन्युवेबल ऊर्जा के लिये रखा गया है।
- ₹ 1480 करोड़ रुपये नेशनल टेक्सटाइल मिशन के लिये तय किये गए हैं।
- ₹ 28,600 करोड़ का आवंटन महिलाओं से जुडी योजनाओं के लिये रखा गया है।
- ₹ 9,500 करोड़ वरिष्ठ नागरिक और दिव्यांगों के कल्याण बनायी गयी योजनाओं के लिये रखे गए हैं।
- ₹ 85,000 करोड़ अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के कल्याण से जुड़ी योजनाओं के लिये आवंटित है।
- ₹ 4400 करोड़ दिल्ली की प्रदूषण समस्या के समाधान के लिये रखा गया है।
बजट पूर्व आर्थिक सर्वे और बजट प्रस्तावों की पृष्ठभूमि में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका आंकड़ों की होती है। इस बजट और आर्थिक सर्वेक्षण की सबसे हास्यास्पद और हैरान करने वाली बात है कि यह सर्वे और प्रस्ताव जिन आंकड़ों पर आधारित है वे ही विश्वनीय नहीं है। यह आंकड़े विकिपीडिया द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों पर आधारित हैं। क्या यह बात आप को अचम्भित नहीं करती है कि सरकार के अपने आंकड़ो के एकत्रीकरण और अध्ययन करने वाले प्रतिभासंपन्न एनएसएसओ और अन्य राजकीय सांख्यिकी संस्थाओं के होते हुये उसे विकिपीडिया के अपुष्ट आंकड़ों पर निर्भर करना पड़ रहा है। जेएनयू के अर्थशास्त्र की प्रोफेसर जयति घोष ने अपने एक व्याख्यान, में बजट की समीक्षा करते हुए जो कहा है कि, ” बजट में दिया गया हर आंकड़ा एक झूठ है। ” जयति मुम्बई कलेक्टिव द्वारा आयोजित व्याख्यान श्रृंखला, ‘फ्लैट टायर या इंजन फेल्योर’ में बोल रही थीं।
उनके अनुसार, वर्तमान मंदी 1991 और 2008 की आर्थिक मंदी से भी अधिक गहरी है। लेकिन इसके बावजूद सरकार ने बजट में उन सभी योजनाओं में कटौती कर दी है जिनसे रोज़गार के अवसर बढ़ सकते हैं। उन्हीं के शब्दों में,” सभी प्रमुख रोजगारोन्मुखी योजनाओं, कृषि, रोजगार गारंटी, मनरेगा, खाद्य, स्वास्थ्य, शिक्षा के लिये आवंटित राशि मे कटौती कर दी गयी है। बजट मे दिया गया हर एक आंकड़ा झूठ है। प्राप्ति और व्यय का हर विवरण जो इन आंकड़ों से सम्पुटित है, मिथ्या है। यह बजट एक महीना पहले प्रस्तुत किया गया है। और जिन आंकड़ो पर यह बजट प्रस्तुत किया गया है, वे दिसंबर 2019 तक के हैं। अतः जनवरी से मार्च तक के आंकड़े अनुमान पर आधारित है अतः सन्देह उठना स्वाभाविक है। ”
हर बजट का उद्देश्य होता है कि देश की आर्थिक स्थिति सुधरे और देश के अंदर अमीरी गरीबी का जो अंतर है वह कम हो। पर पूंजीवादी आर्थिकी में यह विषमता तो रहेगी ही। यह विषमता आज से नहीं है। पर 2000 ई के बाद देश की जो भी आर्थिक नीति थी,उससे यह विषमता बढ़ती ही गयी। आज जब सरकार निजीकरण के संक्रामक रोग से बुरी तरह संक्रमित है तो यह विषमता और भी बढ़ेगी और इससे विपन्नता का जो सागर बनेगा उसमे समृद्धि के ये द्वीप भयावह दिखेंगे।
मुम्बई विश्विद्यालय की अर्थशास्त्र की प्रोफेसर ऋतु दीवान, बजट की समीक्षा के संबंध में होने वाली कठिनाइयों का उल्लेख करते हुए कहती हैं कि, आंकड़ो की अविश्वसनीयता के कारण बजट का क्या प्रभाव भविष्य की आर्थिकी पर पड़ेगा कहा नहीं जा सकता है। वे कहती है कि ” सरकार, सच और वास्तविक आंकड़ो को सामने नहीं आने देना चाहती है। डेटा भी अर्बन नक्सल जैसे हो गए हैं। अब इसी बजट को देखिए, यह बजट विकिपीडिया द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों पर आधारित है। ”
सब्सिडी के लिए ₹ 115569.68 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है. जबकि पिछले बजट में इसी योजना के लिए ₹ 184220 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था.इतना ही नहीं, सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष के बजट को भी कम करके ₹ 108688.35 करोड़ रुपये कर दिया गया है। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि गरीब वर्ग के लिए बेहद महत्वपूर्ण योजना को सही से लागू नहीं किया जा रहा है।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2019 (जीएचआई) में दुनिया के 117 देशों में भारत 102 वें स्थान पर रहा है। इस इंडेक्स में यह भी देखा जाता है कि देश की कितनी जनसंख्या को पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं मिल रहा है। साल 2013 मे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून लाया गया था। इस कानून के अंतर्गत खाद्य सब्सिडी राशि 2014-15 में 113171.2 करोड़ रुपये से बढ़ कर 2018-19 में 171127.5 करोड़ रुपये किया गया था।
सर्वे में विकिपीडिया का डेटा इस्तेमाल हुआ। वह भी दो बार। विकिपीडिया एक ओपन सोर्स इनफार्मेशन शेयरिंग प्लेटफार्म है। वहां से मिली सूचनाओं को आप प्राथमिक डेटा मान ही नहीं सकते। दो वॉल्यूम में इकनोमिक सर्वे को वित्त मंत्रालय के अर्थशास्त्रियों ने तैयार किया है। वॉल्यूम 1 के पेज 150 और 151 को पढ़िए। इसमें दिए गए आंकड़ों का सोर्स विकिपीडिया का दिया गया है। सरकार ने इससे पहले जमीनी आंकड़ों के सबसे विश्वसनीय सोर्स एनएसएसओ की रिपोर्ट को दबा दिया, क्योंकि उसने पहले पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली के दावों की पोल खोल दी थी। एनएसएसओ के एक अधिकारी ने अपने पद से त्यागपत्र भी विरोध में दे दिया था। सरकार अपने ही विभाग के सीएसओ को भी शक की नज़र से देखती है। अगर आप कंट्रोलर जनरल ऑफ एकाउंट्स की रिपोर्ट देखें तो समझेंगे कि यह बजट उद्देश्यहीन है, क्योंकि वित्तीय घाटे के बुनियादी आंकड़े ही ग़लत है। बीते 6 साल में अर्थव्यवस्था इस कदर सुस्त इसलिए भी हुई है, क्योंकि सरकार के पास जमीनी आंकड़े पहुंच ही नहीं रहे।
बजट में एलआईसी और आईडीबीआई में अपनी हिस्सेदारी बेचने के पहले, सरकार ने एयर इंडिया, भारत पेट्रोलियम, कंटेनर कारपोरेशन, टीएचडीसी आदि बेचने का फैसला सरकार ले ही चुकी है। रेलवे के निजीकरण की दिशा में भी सरकार तेजी से बढ़ रही है,1000 रेलवे ट्रैक के निजीकरण की सरकार की योजना है। कुल मिल कर देश की तमाम परिसंपत्तियों को बेचना ही इस सरकार का एजेंडा है। जिस पीपीपी मॉडल का बजट में बार-बार उल्लले किया गया है, वह दरअसल सार्वजनिक इंफ्रास्ट्रक्चर पर निजी पूंजी के मुनाफे का मॉडल है।
यह बजट देश की आम जनता, मजदूर-किसानों, छात्र-नौजवानों के लिए निराशाजनक है। आज देश भयानक आर्थिक मंदी से गुजर रहा है। यह मंदी नोटबन्दी के मूर्खतापूर्ण निर्णय के बाद और तेजी से गहरा गई है। फिर जीएसटी और उसकी जटिल प्रक्रिया ने बाजार की कमर तोड़ दी और अब आईएमएफ का कहना है कि भारत की इस मंदी का असर विश्व पर भी पड़ रहा है। लेकिन सरकार अभी भी इसे स्वीकार नहीं कर रही है और आंकड़ेबाजी के जरिए देश की जनता को भ्रम में डालने की कोशिश कर रही है। गंभीर मंदी की मार से देश तभी उभर सकता है जब आम लोगों की क्रय क्षमता को बढ़ाया जाए, लेकिन बजट में इसकी घोर उपेक्षा की गई है।
बजट में न तो किसानों की आय बढ़ाने की चिंता है न ही बेरोजगारों के लिए रोजगार के प्रावधान का। इसकी जगह सरकार ने बेरोजगारों के लिए नेशनल भर्ती एजेंसी का झुनझुना थमा दिया है। कृषि उपज से जुड़ी स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के संबंध में बजट एकदम से खामोश है। स्कीम वर्करों के प्रति भी बजट उदासीन है। आंगनबाड़ी सेविका-सहायिकाओं, आशा कार्यकर्ताओं, वि़द्यालय रसोइयों के लिए बजट में किसी भी प्रकार की घोषणा नहीं की गई है। शिक्षा के बजट में कटौती कर दी गई है। शिक्षण संस्थानों को नष्ट करने में तो इस सरकार का कोई जोर ही नहीं है। इस बजट से शिक्षा व्यवस्था और लचर होगी। बजट के कारण शेयर मार्केट में भी भारी गिरावट दर्ज हुई है।
भाजपा के ही सांसद औऱ अर्थशास्त्री सुब्रमण्यम स्वामी ने तो आज से चार महीने पहले ही जीडीपी के आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था। उन्होंने सरकार के अंतर्गत आर्थिक प्रतिभा की कमी का भी उल्लेख किया था। 2016 से आज तक हर तिमाही में क्रमश गहराती हुयी आर्थिक मंदी को देखते हुये यह बजट किसी सुखद भविष्य का संकेत नहीं है। इससे यह भी पता चलता है कि आर्थिक विकास सरकार की प्राथमिकता में उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना इस मंदी की स्थिति को देखते हुए होना चाहिए।
© विजय शंकर सिंह