नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव एवं विधानसभा चुनाव साथ साथ कराने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विचार दिए जाने के बाद विधि मंत्रालय ने इस मुद्दे पर कानूनी और अन्य कोणों से अलग अलग विचार किए जाने का सुझाव दिया है.
लोकसभा चुनाव एवं विधानसभा चुनाव साथ साथ कराए जाने के विचार को अमली जामा पहनाए जाने से पहले जब हम कानूनी पहलू पर विचार करेंगे तो उसमें संविधान संशोधन भी शामिल होगा और इस संशोधन को संसद में पारित कराना अनिवार्य होगा. मंत्रालय ने सरकार के उच्चतम स्तर पर भेजे गए एक नोट में इस मुद्दे को विचार के लिए दो हिस्सों में बांट दिया है.
कानून मंत्रालय की स्थायी संसदीय समिति ने पिछले साल दिसंबर में अपनी रिपोर्ट में लोकसभा और राज्यसभा चुनाव साथ साथ कराए जाने की सिफारिश की थी. इसके बाद कानून मंत्रालय ने चुनाव आयोग से उसके विचार मांगे थे. आयोग ने इस विचार का समर्थन करते हुए स्पष्ट किया कि इस पर खर्च अधिक आयेगा और कुछ राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाने या घटाने के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा.
बहरहाल, स्थायी समिति की रिपोर्ट और चुनाव आयोग के पक्ष का विश्लेषण करने के बाद कानून मंत्रालय ने इस मुद्दे को दो हिस्सों में बांट दिया है. एक के तहत कानूनी पहलू को रखा गया है और दूसरे में अवसंरचना, वित्तीय और अन्य पक्ष शामिल हैं. चुनाव आयोग ने मई में कानून मंत्रालय को दिए अपने जवाब में कहा कि वह इस प्रस्ताव का समर्थन करता है लेकिन इस पर 9,000 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आएगा.