येरुशलम में अमरीकी दूतावास खुल जाने के बाद से भड़के संघर्ष में अब तक 61 फिलीस्तीन नागरिकों की मौत हो चुकी है. बता दें कि इजरायल के तेल अवीव में स्थित अमरीकी दूतावास को हाल ही में येरुशलम में शिफ्ट किया गया था, जिसके बाद से वहां पर खूनी संघर्ष चल रहा है.
और हिंसा भड़कने की है आशंका
61 नागरिकों की मौत के बाद भी विरोध के सुर कम होते नहीं दिखाई दे रहे हैं. यहां एक तरफ फलस्तीनी लोग नकबा की 70वीं वर्षगांठ मना रहे हैं जिसके तहत 1948 में फ़लस्तीन की ज़मीन में इज़राईल के निर्माण के लिए लगभग सात लाख फलस्तीनी नागरिकों कोअपने घर बार से बलपूर्वक हटा दिया गया था. उनकी संपत्ति पर अवैध क़ब्ज़ा कर लिया गया था. दूसरी तरफ इस खूनी संघर्ष में मारे गए लोगों का अंतिम संस्कार भी यहां होना है.
गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक सभी लोगों की मौत इस्राइली बलों की गोलीबारी में हुई.इन संघर्षों में तकरीबन 2,400 लोग जख्मी हुए.हमास के वरिष्ठ अधिकारी खलील अल-हय्या ने कहा कि गाजा में संघर्ष जारी रहेगा. फलस्तीन क्षेत्र के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने इस्राइल पर नरसंहार का आरोप लगाते हुए पश्चिमी तट पर आम हड़ताल की घोषणा की.
वहीं दूसरी तरफ फलस्तीन के लोगों ने अमेरिकी कदम को एक आपदा के रूप में लिया है और अमेरिका द्वारा येरुशलम को इस्राइल की राजधानी के बतौर मान्यता देने की कोशिशों की व्यापक स्तर पर निंदा करते हुए मंगलवार को आम हड़ताल की घोषणा की गई है.यहां सोमवार को मारे गए लोगों के अंतिम संस्कार के वक्त भीड़ जुटना तय है.ऐसे में नकबा की वर्षगांठ आग में घी का काम कर सकती है. अमेरिका को भी आशंका है कि गाजा पट्टी में खूनी संघर्ष बढ़ सकता है.
वाशिंगटन के ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन थिंक टैंक में फलस्तीन नेतृत्व के पूर्व सलाहकार खालिद एल्गींडी ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस मामले को शांत करने के लिए कुछ भी नहीं किया, उन्हें कम से कम इस्राइली सेना को फलस्तीन प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी करने से रोकना चाहिए था.
अमेरिका ने क्यो खोला येरुशलम में दूतावास
बीते कई दशकों से अमेरिका इस्राएल का अपना दूतावास तेल अवीव से चला रहा था. लेकिन पिछले साल अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इसे येरुशलम ले जाने का फैसला किया. हालांकि अमेरिका के इस फैसले ने जहां इस्राएल को खुश कर दिया था तो वहीं फलस्तीन समेत पूरा अरब जगत, भारत, यूरोपीय देशों समेत पश्चिमी दुनिया के कई देश उससे नाराज हो गए. तथा इस मामले में ट्रंप सरकार के फैसले की आलोचना की है.
येरुशलम का यह विवाद सिर्फ राजनीतिक मामला नहीं, बल्कि धार्मिक मसला भी है. यहां विवाद मुख्य रूप से शहर के पूर्वी हिस्से को लेकर है जहां येरुशलम के सबसे महत्वपूर्ण यहूदी, ईसाई और मुस्लिम धार्मिक स्थल हैं. लेकिन इस्राएल सरकार पूरे येरुशलम पर पर हक जताती है. वहीं फलस्तीन के लोग चाहते हैं कि जब भी फलस्तीन एक अलग देश बने तो पूर्वी येरुशलम ही उनकी राजधानी बने. क्योंकि इज़राइल और फ़लस्तीन के बीच पूर्व में हुए समझौतों में यह द्विपक्षीय रूप से तय किया गया था.