दिल्ली दंगों में पुलिस द्वारा निर्दोष लोगों को किस तरह फंसाया गया, इसकी बानगी के तौर पर कई मुकदमों में महज जमानत के लिए सुनवाई पर ही खुलासे हो चुके हैं। ताजा मसला खालिद सैफ़ी की केस 101/20 में जमानत का है।
यूनाइटेड अगेंस्ट हेट के सदस्य ख़ालिद सैफी को दिल्ली की एक अदालत कोर्ट ने ज़मानत देते हुए कहा है की सिर्फ एक गवाह के बयान की बिनाह पर ख़ालिद को जेल में नहीं रखा जा सकता है। एडिशनल सेशंस जज विनोद यादव ने गवाह राहुल कसाना की गवाही पर सवाल उठाया है। कसाना ने गवाही दी थी की उसने उमर ख़ालिद और ख़ालिद सैफी को एक ही बिल्डिंग में जाते हुए देखा था। पुलिस का दावा है कि कसाना उस वक्त बिल्डिंग के बाहर ही खड़ा था, कसाना ने यह भी बयान दिया था — “सैफी को वहां ताहिर हुसैन ने छोड़ा था”।
ताहिर हुसैन दिल्ली दंगों का मुख्य आरोपी हैं। जज श्री यादव ने कहा की यह उनकी समझ से बाहर है कि महज राहुल कसाना के इस बयान पर ही ,कैसे ख़ालिद सैफी का नाम चार्ज शीट में आ सकता है। श्री यादव ने जमानत जे आदेश में यह भी लिखा कि सिर्फ एक गवाह के बयान पर ही चार्जशीट में सैफी का नाम शामिल करना जायज़ नहीं है।
जज श्री विनोद यादव ने भी कहा कि उन्हें लगता है पुलिस ने चार्जशीट फाइल करने में अपनी समझ का सही इस्तेमाल नहीं किया और इससे बदला लेने की भावना झलकती है।
स्पेशल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर के उस तर्क को भी जस्टिस यादव ने ख़ारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था की सीडीआर लोकेशन के अनुसार 8 जनवरी को ताहिर हुसैन, ख़ालिद सैफी और उमर ख़ालिद ने शाहीन बाग़ में मीटिंग की थी। जज यादव ने कहा की सिर्फ मीटिंग कर लेने भर से, या सीडीआर लोकेशन एक ही होने से मात्र से कैसे कोई आपराधिक षड्यंत्र किया जाना साबित हो सकता है?
कोर्ट ने यह भी कहा की 8 जनवरी को ख़ालिद सैफी न तो किसी सीसीटीवी में और नहीं किसी वीडियो में नज़र आ रहे हैं जिससे यह साबित हो सके की उस दिन वे घटना स्थल पर थे। यह उजागर हो चुका है कि दिल्ली पुलिस की चार्जशीट झूठ का पुलिंदा है जो ट्रायल में धराशाही हो जाएगा। तभी लोगों को प्रताड़ित करने व जेल में निरुद्ध की बदनीयती के चलते यू ए पी ए लगाया गया है।
समर शेष है, यह प्रकाश बंदीगृह से छूटेगा
और नहीं तो तुझ पर पापिनी! महावज्र टूटेगा
– दिनकर