तुम मेरी पीठ खुजाओ, मैं तुम्हारी खुजाता हूं। सुनने में यह सामान्य लग सकता है कि डीजीपी साब ने इस्तीफा दे दिया है या वीआरएस ले लिया है। पर दो कौड़ी की नौकरी में भी नोटिस पीरियड होता है। लाला कहता है पहले बताना था। विकल्प ढूंढ़ना होगा आदि। और जब लाला निकाल दे तो कर्मचारी मांग करते हैं कि पहले नहीं बताया जब तक नौकरी नहीं मिलेगी तब तक मैं क्या खाऊंगा, आदि आदि। लेकिन एक दूसरे की खुजा रहे हों तो इसकी जरूरत नहीं होती है। मामला आपसी होता है।
पार्टी वही जिसने अंतरात्मा की आवाज पर इस्तीफा दे दिया और अगले ही दिन दूसरी पार्टी के समर्थन से सरकार बना लिया और जनादेश की ऐसी तैसी कर दी। दल बदल कानून तो ढेंगे पर। 1,25,000 करोड़ के पैकेज की घोषणा के बाद अब फिर नई योजनाओं और घोषणा की बाढ़ में बिहार को डुबो रही है। हालांकि डूब तो राजधानी पटना भी गई थी …. लेकिन छोड़िए। आप तो सुशांत की मौत से बनाए गए अफीम के नशे में हैं।
कहने की जरूरत नहीं है कि नोटिस पीरियड को नियोक्ता माफ कर सकता है। वैसे ही जैसे खुद हटाए तो उसके पैसे दे सकता है। पांडे जी फरवरी में रिटायर होने वाले थे इसलिए अभी नौकरी छोड़ना आप समझ सकते हैं क्या और किसलिए है। बाकी सरकार सेवा करने वालों के नोटिस पीरियड माफ कर ही सकती है।
इस संबंध में द टेलीग्राफ की खबर का शीर्षक यही है। और कई तथ्य भी उसी के हैं। पूरी खबर पढ़ना चाहें तो लिंक यहाँ है । इस खबर के साथ द टेलीग्राफ ने सुब्रमण्यम स्वामी की भी खबर छापी है। देखिए स्वामी जी आजकल परेशान चल रहे हैं। एक तो मोदी जी उन्हें मंत्री नहीं बना रहे हैं और आईटी सेवा वालों ने उन्हें अलग परेशान कर रखा है।