मानवता एक तानाबाना है। कहीं भी उधड़े, फर्क सब पर पड़ेगा। किसी पर जल्दी, किसी पर देर सवेर। धागों के उलझे लोथड़े नहीं बनकर रह जाना है तो चेत जाओ…
सब पर बात करो, रोहिंग्याओं पर नहीं क्योंकि उनके आगे मुसलमान जुड़ा है, जैसे ही आपने उनके बारे में कुछ कहा, वे बॉर्डर फांदते हुए चढ़ दौड़ेंगे और आपके घरों पर कब्ज़ा कर लेंगे।
पोस्ट तो पोस्ट, कमेंट भी आईटी सेल वालों के ही चेपोगे क्या भैया, वही बलात्कार, आतंकवाद, क्रिया की प्रतिक्रिया का घिसा पिटा कंटेंट। विदेशी सहायता हथियार पहुंचा सकती है तो खाना क्यों नहीं? और है कहाँ हथियार? आज निशाने पर हैं, मारे जा रहे हैं तो ये हाल है नफ़रत का। और जो आपके कहे अनुसार सच में क्रिया करते तो आतंकी आतंकी चिल्लाते सब।
क्यों सहें तुम्हारे ट्रॉल हम। मुस्लिम होना अपने आप में एक जुर्म है जिसके तहत ये अघोषित नियम बन गया है कि किसी मुस्लिम के पक्ष में और किसी गैर मुस्लिम के विपक्ष में कुछ मत बोलो क्योंकि लोग मैटर नहीं नाम देखकर जज करेंगे। तो कर लो। अच्छा है, जितने कूढ़मगज कम हों उतना अच्छा। ये दुनिया नहीं तो कम से कम ये फेसबुक ही रहने लायक बन जाये।
भारतीय मुस्लिमों को दुनिया भर के मुस्लिमों का दुखड़ा रोना है, अपना घर नहीं दिखता। किसने कहा नहीं दिखता अपना घर? अपना घर देखते हुए किसी और की बात इसलिये नहीं कर सकते कि वे मुस्लिम हैं और आपकी देशभक्ति पर आँच आ सकती है? हाँ एंटी मुस्लिम होने से ज़रूर बूस्ट अप होती है। नमन रहेगा ऐसी देशभक्ति को।
जितना इस कीचड़ से खुद को बाहर रखने का सोचो, दलदल खुद को फैलाकर वहाँ तक ले आता है। ऐसे शुम्भ निशुम्भ आसपास ही मिलेंगे, पार्वती वन में नहीं आना चाह रही तो पूरे दारूका वन को कैलाश ले चलो।
शरणार्थी यहाँ नहीं होना चाहिये। यहाँ क्या, पूरी दुनिया में ही कहीं नहीं होना चाहिये। किसी से उसकी जन्मभूमि क्यों छीनकर कहीं और विस्थापित करना? जब आँखों देखी बर्बरता नहीं रोक सकते तो काहे के विश्वशक्ति महाशक्ति राष्ट्र। हथियार बेचने तक ही रखना है खुद को उन्हें। उनके जो 10% लोग दुनिया के 90% संसाधन भोग रहे हैं, हमारे आपके जैसे जाहिलों के दम पर ही ऐश कर रहे हैं। हमारा डरा होना और उनमें डराने की क्षमता होना, इसी पर उनका वजूद है।
नहीं देखे जाते मरते कटते बच्चे बूढ़े और औरतें ही नहीं, जवान आदमी भी। तो कोई संवेदना प्रकट कर दे, तो क्यों चढ़ दौड़ना उस पर? बंग्लादेश जो करे, अरब जो करे उसमें हम आप क्या कर लेंगे? म्यांमार जो कर रहा है, उसमें कुछ कर लोगे क्या? तो कोई दो शब्द सहानुभूति के बोल ले तो क्यों गला दबा देना है आपको? जब कद्दू फर्क नहीं पड़ता बोलने से तो बोलने दो न। तब कहाँ थे, अब कहाँ हो, अरे आपकी भसड़ सुन रहे थे तब। अब भी वही कर रहे हैं। थोड़ा तो अपने दोनों कानों के बीच जो है उसे भी इस्तेमाल करो, कब तक उधारी के मुँह में डाल दिये गये शब्दों की जुगाली करते रहोगे? ब्रांड न्यू चमचमाती अक्ल पर लम्बे वक्त तक कवर चढ़ाए रखोगे तो सड़ान्ध मारने लगेगी। बू नहीं आती इतनी गन्दगी दिमाग में भरकर जीते हुए? ये निगेटिविटी बाहर के साथ साथ घर का और घरवालों का भी उतना ही नुक़सान करेगी। ये वो पेरासाइट्स हैं जो फैलकर दूसरों में इंफेक्शन ज़रूर फैलायेंगे पर पहले होस्ट की बॉडी फाड़कर…..
बस करो अब। अत्याचार अत्याचार है, कोई भी करे। हत्या हत्या है कहीं भी हो। किसी भी अत्याचार को डिफेंड करने वाले यहाँ बचे हों तो बराय करम फौरन दफ़ा हो जाएं…….
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