क्या “गुलनाज़” को इंसाफ़ दिलाने आप आवाज नहीं उठायेंगे ?

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तय करो किस ओर हो तुम ? आरोप है कि बिहार के वैशाली ज़िले की लड़की गुलनाज़ ख़ातून को सतीश कुमार और चंदन कुंमार नामक युवक ने शादी से इंकार करने पर पेट्रोल छिड़क कर आग लगा दी। ज़िन्दगी से जूझते हुए इस लड़की ने आख़िरकार दुनिया को अलविदा कह दिया, आरोपियों पर कोई कारवाई नहीं हुई है। इसलिये मां और परिवार पटना की सड़कों पर बेटी का शव रख कर इंसाफ़ की गुहार लगा रहे हैं, विरोध दर्ज कर रहे हैं। पर सुनने वाला कौन है? फ़िलहाल ये खबर है कि हत्या के तीनों आरोपियों पर FIR दर्ज कर ली गई है।

कल्पना कीजिये कि अगर आरोपियों के नाम और पीड़िता के नाम उल्टे होते, तो अब तक तमाम गोदी मीडिया, सोशल मीडिया भेड़िया बनकर सक्रिय हो चुका होता।  लव जिहाद, कट्टरता , एक समुदाय से नफ़रत भरे पोस्ट, गालियों की बौछार से भरे पोस्ट सबके मोबाइल में पहुंच चुके होते, एक पूरे समुदाय को आतंकवादी बता दिया जाता। मीडिया आपको बता रहा होता कि धर्म विशेष के लोग समाज के लिए कितना बड़ा ख़तरा हैं और सत्ताधारी पार्टी के नुमाइंदे जगह जगह ज़हर उगल रहे होते पर अब ऐसा कुछ नहीं होगा, फिर आप कहते हैं कि सब चंगा सी।

बलात्कार और महिला हिंसा की तमाम घटनाओं पर एक नज़र दौड़ाइये, फिर देखिए कि किन केस को हाइलाइट किया गया और उनके पीछे के कारण क्या थे आप पाएंगे कि एक तरफ़ सिर्फ़ वही मुद्दे मीडिया की टैगलाइन बने जिन में राजनीतिक फ़ायदा था, चाहें वो धर्म के आधार पर हो या जाति के आधार पर बाक़ी जिसमें राजनीतिक फ़ायदा नहीं था वो मुद्दे फाइलों के नीचे दब कर मर चुके हैं या इज़्ज़त की आड़ में अनकहे रह गए हैं।

अब इन मुद्दों पर जागने वाली संवेदनाओं पर भी एक नज़र दौड़ा लीजिये, जनता की संवेदनाएं भी जाति- धर्म देख कर कम ज़्यादा का उछाल मारती रहीं हैं, अपनी अपनी धर्म जाति, अपनी राजनीतिक रुचि के हिसाब से लोग महिला मुद्दों पर मुखर होते रहे हैं और बाक़ी सब पर एक गहरी चुप्पी।

महिला अपराध भी अब राजनीति की प्लेट में रखा खाना है, जिससे राजनीतिक भूखे लोग अपना अपना पेट भर रहे हैं। ऐसे में महिला मुद्दों और अधिकारों की निष्पक्ष लड़ाई कब लड़ी जाएगी? महिलाओं की सुरक्षा पर निष्पक्ष रूप से बात कब होगी? क्या इन पर फेमिनिस्ट बात करेंगी? लेकिन फेमिनिज़्म में आये भयंकर बिखराव और भटकाव से अब यह उम्मीद रखना बेकार सा लगता है, ऐसे में सवाल अब भी ज्यों का त्यों बना है कि महिलाओं का क्या कोई अपना देश होगा या देह ही उनका देश बन कर रह जायेगा।

मैं हमेशा से यह मानती रही हूँ कि लड़कियों का न कोई देश है ,न धर्म न जात,देह ही उनका देश है और जब तक इस देह के नाम पर होने वाले अपराधों पर समान रूप से , तमाम दिमागीं ज़हर से ऊपर उठकर इंसानियत की आवाज़ें नहीं उठेंगी तब तक लड़कियों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आएगा। बाक़ी बिहार में सरकार बन गयी है, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे भी कुछ दिन बाद उछलने ही लगेंगे और इन मुद्दों पर मीडिया के जागने का इंतज़ार तब तक कीजिये, जब तक अपराधी किसी खास समुदाय से न हो बाक़ी सब चंगा सी।

दीबा नियाज़ी