क्या इन चुनौतियों से निपट पाएंगे गुजरात के नए मुख्यमंत्री

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Nidhi Arya

तीन राज्यों में भाजपा ने मुख्यमंत्री बदल दिए गए हैं। इसके पीछे आगामी विधानसभा चुनाव और  2024 लोकसभा चुनाव की तैयारी है। गुजरात में अभी भी डेढ़ साल बाकी है। विधानसभा चुनाव में फिर भी रुपाणी द्वारा इस्तीफा दे दिया गया है। रुपाणी के इस्तीफे के पीछे कोरोना के समय से ही लोगों में राज्य सरकार के प्रति नाराजगी का आभास हो गया था।

बीजेपी के लिए गुजरात  इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हमारे गृहमंत्री और प्रधानमंत्री दोनों गुजरात से ही आते हैं। प्रधानमंत्री गुजरात में तीन बार सीएम पद पर रहकर कार्य कर चुके हैं। आगामी चुनाव में लोगों की नाराजगी का गहरा असर दिखाई पड़ रहा था। बेहतर यही था कि नए चेहरे को लाकर लोगों की नाराजगी को दूर किया जाए।

कर्नाटक में भी मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दिया था। लेकिन उनके इस्तीफे का  संबंध चुनावी से नहीं था। इनके बदलाव का मुख्य कारण उनकी उम्र 75 वर्ष से ज्यादा के व्यक्ति को कोई पद न देने की भाजपा की नीति से है और वाय .एस. येदुरप्पा इस सीमा को पार कर गए थे। इनकी जगह बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया गया है।

उत्तराखंड में भी पहले त्रिवेंद्र सिंह को हटाकर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया था। उसके बाद पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री हैं। कहीं ना कहीं बीजेपी प्रदेश में अपनी छवि को बनाए रखना चाहती है।

पुराना सब भूलो अब नई सरकार-

गुजरात में भी कुछ ऐसा ही हुआ है पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी की 22 मंत्रियों वाली पूरी टीम बाहर हो गई है। इनमें पूर्व  उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल भी शामिल है। गुजरात के 17वें मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और पूर्व सीएम विजय रुपाणी की मौजूदगी में राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने 16 सितंबर यानी बीते वीरवार को नए मंत्रिमंडल के कुल 24 मंत्रियों ने शपथ दिलाई थी।

पहली बार विधायक  और मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल  के 25 सदस्य मंत्रिमंडल में पूर्व मंत्री अनुभव के साथ केवल 3 सदस्य हैं। रघुवजी पटेल। जो 1996 – 98 में शंकर सिंह वाघेला सरकार में मंत्री थे। कीरितसिंह राणा, जिन्होंने केशुभाई में मंत्री के रूप में कार्य किया था। साथ ही पटेल यह नरेंद्र मोदी सरकार और राजेंद्र त्रिवेदी जो आनंदीबेन सरकार में कनिष्ठ मंत्री थे।

24 मंत्रियों में से नौ पहली बार विधायक बने हैं। जिनका राज्य सरकार के स्तर पर अनुभव भी सीमित है। सीमित अनुभव के साथ भूपेंद्र पटेल अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों के साथ किस तरह से चुनौतियों का सामना करेंगे? यह देखना वाकई दिलचस्प होगा। क्योंकि आगामी चुनाव भी अब ज्यादा दूर नहीं है। 

केंद्र सरकार का उद्देश्य विभिन्न राज्यों में नेतृत्व में बदलाव लाने के लिए पार्टी की चुनावी मजबूती निश्चित रूप से बड़ा कारक है। नए चेहरे को कमान देना दर्शाता है कि केंद्रीय नेतृत्व का राज्य नेतृत्व पर नियंत्रण है। चुनाव से पहले पार्टी राज्यों में सकारात्मक संकेत देना चाहती है।

जातीय समीकरण

जातीय समीकरण साधा गया है। इसमें 7-7 मंत्री पटेल (सीएम सहित) व ओबीसी (3 कोली जाति) समुदाय से है। एससी, क्षत्रिय और ब्राह्मण समाज से 2-2 मंत्री हैं। आदिवासी समुदाय से भी चार मंत्रियों को जगह दी गई है। एक मंत्री जैन समुदाय से भी बनाया गया है।

क्षेत्रीय संतुलन

कैबिनेट में क्षेत्रवाद संतुलन साधने की भी कोशिश की गई है।  इसमें मध्य गुजरात, दक्षिण गुजरात और उत्तर गुजरात से 7-7 मंत्री है। सौराष्ट्र से छः मंत्री आते हैं। 2 महिलाओं को भी शामिल मंत्रीमंडल में शामिल किया गया है। जबकि रूपाणी की कैबिनेट में केवल एक महिला थी।

कांग्रेस से आए विधायकों में से भी 3 को मंत्री पद दिया गया है । जीतू चौधरी राघव पटेल और बृजेश मेर्जा को भी नई सरकार में मंत्री पद से नवाजा गया है।

नई सरकार के सामने चुनौतियां-

सबसे बड़ी चुनौती आने वाले विधानसभा चुनाव है। 2017 में  बीजेपी ने गुजरात में सरकार जरूर बनाई थी लेकिन कांग्रेस ने भी अपना अच्छा प्रदर्शन दिखाया था। इस बार गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी से भी कड़ी टक्कर मिलने वाली है। जिसके लिए भूपेंद्र पटेल को सुदृढ़ रणनीति के साथ मैदान में उतरना होगा।

मजबूत नेतृत्व के साथ कार्य-

राज्य ऐसा नेतृत्व चाहता है। जिसमें जनता से संवाद करने के गुण विद्यमान हो और जनता के बीच जाकर उनकी समस्याओं को देखना और उन्हें सुलझाना भी महत्वपूर्ण है। खुद को इतना लोकप्रिय करना होगा कि आने वाले चुनाव में उनके चेहरे पर भी पार्टी को वोट पड़ सकें। पूर्व मुख्यमंत्री ने भी काम किया है लेकिन उनके नेतृत्व से लोग खुश नहीं थे।

कोरोनावायरस मिस मैनेजमेंट-

इसे सरकार की लापरवाही भी कह सकते हैं। जिसके कारण विजय रुपाणी को इस्तीफा देना पड़ा है। कोरोना काल में हुई इस अव्यवस्था को लेकर हाई कोर्ट ने गुजरात सरकार को काफी फटकार लगाई थी। क्योंकि गुजरात सरकार ने कोरोनावायरस से हुई मौतों को लेकर सही आंकड़े नहीं पेश किए थे। नए  मुख्यमंत्री के लिए स्वास्थ्य विभाग की व्यवस्थाओं को भी सुधारना और उन्हें पटरी पर लाना भी एक बड़ी चुनौती है।

पाटीदार जाति को प्रभावित करना-

इन सब मुद्दों के बावजूद एक ऐसा मुद्दा है जो चुनावी जंग को पलट सकता है। पाटीदार आंदोलन ने 2017 के चुनाव में बीजेपी की जीत को काफी संघर्षपूर्ण बना दिया था। पाटीदार संख्या बल और आर्थिक रूप से राज्य में सबसे प्रभावी समुदाय है। नए बदलावों के साथ भाजपा ने एक पाटीदार को मुख्यमंत्री बनाया है जिससे इस समुदाय को स्पष्ट संकेत जाता है कि पार्टी पाटीदार समुदाय के वोट जुटाने का प्रयास कर रही है।

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता  और राज्य के चार बार सांसद रहे ने कहा “सतह पर यह सत्ता विरोधी लहर को कम करने के उद्देश्य से एक साहसिक प्रयोग के रूप में प्रतीत होता है, यह जोखिम और चुनौतियों से भी भरा रहेगा।

उनके मुताबिक फिलहाल शासन व्यवस्था पर बहुत ज्यादा असर पड़ सकता है क्योंकि मुख्यमंत्री समेत ज्यादातर मंत्री बहुत ही अनुभवहीन है कुछ तो ऐसे हैं जिन्हें अपने विशेष क्षेत्राधिकार के दायरे में ही जाना जाता है। नौकरशाह और प्रशासन व्यवस्था पर अपनी मजबूत पकड़ बनाने में भी उन्हें काफी समय लगेगा। जिससे पार्टी को आगामी चुनाव के लिए जल्द से जल्द प्रशासन व्यवस्था को समझना बेहद आवश्यक है।