इमरान प्रतापगढ़ी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में मॉस्टर्स किया है,और उन्होंने उसी दौर से शायरी लिखना और पढ़ना शुरू कर दिया, और आज वो देश की सबसे पुरानी और सबसे बड़े राजनीतिक विपक्ष कांग्रेस के माइनॉरिटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिए गए हैं,एक शायर ,एक मामूली परिवार से ताल्लुक रखने वाले एक मुस्लिम नौजवान शख्स का यूँ राष्ट्रीय “चेहरा” बन जाना मामूली तो नही है।
इमरान सिर्फ 33 साल के हैं और उनके आने से भीड़ खींची चली आती है,युवा उन्हें सुनते हैं और उनके जोश और जज़्बे से कंधा से कंधा मिला कर चलते हैं,ये उनका जादू है,लेकिन देश में मुसलमानों के लगभग हर मुद्दे पर “मैंने किया” “मैं करूंगा” जैसी ज़ुबान उनकी अतिउत्साही शैली उनकी आलोचना करने वालों को मौका देती है ।
मुरादाबाद लोकसभा से 2019 में प्रत्याशी रहे और वहाँ से ज़बरदस्त तरह से चुनाव हार जाने वाले इमरान प्रतापगढ़ी ने राजनीतिक मंचों से शायरी काफी पहले से शुरू की थी,लेकिन उनका नाम चर्चा में तब आया जब 2016 में उन्हें अखिलेश यादव ने यश भारती अवार्ड से सम्मानित किया था,तभी से उनके बारे में ये चर्चाएं शुरू हो गयी थी की वो राजनीति में आ सकते हैं,लेकिन उन्होंने कोई भी कदम उठाने से पहले वक़्त लिया।
“लिंचिंग के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया”
आज के इमरान प्रतापगढ़ी और 2015 के इमरान में फ़र्क़ नज़र आता है,उन्होनें दादरी के इख़लाक़,राजस्थान के पहलू खान, रकबर खान के लिए भरपूर आवाज़ उठाई और उनके परिवार के लिए भी चंदा करते हुए भी मदद पहुंचाने का काम किया,जिसने उन्हें मुस्लिम युवाओं में खासकर एक “नेता” की तरह पेश किया, क्यूंकि मुसलमान समाज फिलहाल अपने नेताओं की तलाश को लेकर चिंतित है इसलिए इमरान दिन ब दिन युवाओं के बीच प्रसिद्ध होने लगें।
ये वो दौर था,जब आम आदमी पार्टी के दिग्गज नेता और मुस्लिम चेहरा अमानतुल्लाह खान और इमरान प्रतापगढ़ी साथ साथ लिंचिंग के ख़िलाफ़ खड़े रहा करते थे और इसी दौर में इमरान के “आप” से राज्यसभा जाने के चर्चे भी शुरू होने लगे थे,ये वो दौर था जब उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव अपनी सत्ता गंवा बैठे थे और आज़म खान जैसे नेता हाशिये पर आना शुरू हो गए थे।
इमरान ने इस मौके पर स्टैंड लिया,और “लहू बोल रहा है” जैसे बहुत बड़े कार्यक्रम को लॉन्च करते हुए दिल्ली के जंतर मंतर पर उसका आयोजन किया और ये आयोजन शानदार तरह से आगे भी बढ़ा,और युवाओं ने उन्हें खूब सराहा भी,लेकिन अब उन्हें लगने लगा था कि राजनीतिक कदम उठाना ज़रूरी है,इसलिए 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया।
“राजनीतिक शुरुआत हार के साथ”
इमरान प्रतापगढ़ी को पार्टी जॉइन करने के कुछ ही दिनों बाद मुरादाबाद लोकसभा से प्रत्याशी घोषित कर दिया गया,और उन्होंने भी भारी गाजे बाजे के साथ अपने अभियान की शानदार शुरुआत की,लेकिन सचिन पायलट, नवजोत सिद्धू जैसे दिग्गज नेताओं के भरे पूरे प्रचार के बावजूद भी इमरान भारी मतों से चुनाव हार गए,और उनकी जमानत तक जब्त हो गयी।
सीएए और बिहार चुनाव
इमरान चुनाव हार गए लेकिन मैदान में डटे रहें उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा लाये गए सीएए कानून कबविरोध करते हुए विरोध की आवाज़ बनें “शाहीन बाग़” जैसे चल रहे लगभग हर बड़े प्रोटेस्ट की जगह पर जाकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई जिसमें उन्होंने सीएए कानून के खिलाफ कांग्रेस और राहुल गांधी के समर्थन की गवाही दी,यहाँ इन्होंने असदुद्दीन ओवैसी को टारगेट किया जो उन्हें और मज़बूत मुस्लिम नेता की तरह पेश करने के लिए था।
उनका ये कहना था कि “हैदराबाद में क्यों शाहीन बाग़ जैसा बड़ा प्रोटेस्ट अभी तक नहीं किया गया है” उनके इस बयान ने तूल पकड़ लिया और ओवैसी और इमरान समर्थकों ने जोर शोर से बहस की और मुस्लिम रहनुमाई के बयान को कब्जे में ले लेने की ये लड़ाई चलती रही ।
इसी बीच बिहार चुनाव शुरू हुए और इमरान प्रतापगढ़ी को पार्टी ने “स्टार प्रचारक” बना दिया, बस फिर क्या था उन्होंने ख़ासकर मुस्लिम सीटों पर चुनाव लड़ रही “एमआइएम” को टारगेट करना शुरु किया और उन्हें “वोट कटवा” कहना शुरू कर दिया,इमरान ने भारी भीड़ खींचने के बाद दिये गए इन बयानों से उन्हें “हीरो” और “विलेन” दोनों बना दिया।
हांलाकि परिणामों में ओवैसी की पार्टी 5 सीट जीतकर जादूगर बनी और कांग्रेस की हालत पतली हो गई, सोशल मीडिया में इमरान को टारगेट कर विरोध किया गया,क्यूंकि ओवैसी के खिलाफ डायरेक्ट बोलने से कांग्रेस को नुक़सान उठाना पड़ा, ऐसे आरोप लगाए गए।
“बड़ी ज़िम्मेदारी के साथ नया राजनीतिक सफर”
कांग्रेस ने कल उन्हें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया है,जिस दौर में ग़ुलाम नबी और सलमान खुर्शीद जैसे दिग्गज कांग्रेसी अब रिटायरमेंट की तरफ हैं और कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की आवाज़ उठाई जा रही है,इमरान को इसका फायदा होना तय है,लेकिन ये सब इतना आसान नही होने वाला है।
कांग्रेस का ये कदम 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों को लेकर भी अहम है,क्योंकि वहां करीबन 18 फीसदी मुस्लिम वोट हैं,लेकिन कांग्रेस यूपी में ज़ीरो है,विधायको से लेकर संग़ठन तक कांग्रेस के लिए सब कुछ न के बराबर है और इस तरह के माहौल में इमरान प्रतापगढ़ी को कांग्रेस में मेहनत करने के लिए लोहे के चने चबाने होंगे।
फिलहाल के लिए एक युवा,शायर और तेज़ तर्रार नेता के लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक कांग्रेस का पद बहुत बड़ा तोहफा और बहुत बड़ी चुनौती दोनों ही है,अब देखते हैं कि आगे क्या होगा।