दो ख़बरें हमारे सामने हैं पहली खबर जी. डी अग्रवाल उर्फ प्रोफेसर सानंद की है, प्रोफेसर अग्रवाल आई.आई.टी कानपुर में सिविल इंजीनियरिंग और पर्यावरण विभाग में प्राध्यापक थे। उन्होंने बीड़ा उठाया था कि वे बद से बदतर होती जा रही गंगा की सफाई कराने के लिये सरकार को मजबूर कर देंगे। प्रोफेसर सानंद ने गंगा सफाई के लिये कानून बनाने की मांग को लेकर अनशन करना शुरू कर दिया, जिससे उनकी सेहत लगातार गिरती गई लेकिन उनका अनशन लगातार जारी रहा।
बीते रोज़ पुलिस ने जबरदस्ती उन्हें उठाकर ऋषिकेष स्थित एम्स में भर्ती कराया जहां उन्होंने आज दम तोड़ दिया। आप याद कीजिये मोदी सरकार में गंगा सफाई मंत्रालय संभाल रहीं मंत्री उमा भारती ने वादा किया था कि अगर गंगा की सफाई नहीं कर पाईं तो वे जल समाधी ले लेंगी, गंगा तो ज्यों की त्यों हैं, उमा भारती सत्ता की मलाई खा रही हैं, और गंगा सफाई के लिये संघर्ष करने वाले प्रोफेसर सानंद ज़ाया हो गए।
दूसरी ख़बर उत्तर प्रदेश और गुड़गांव से है, जहां हिन्दुवादियों ने उत्पात मचाया है कि मीट व्यापारी गोश्त की दुकान बंद कर दें क्योंकि नव रात्रे शुरू हो गए हैं, और गोश्त से उनकी धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं। न कानून, न पुलिस, गले में भगवा गमछा डालकर हिन्दुवादी संगठनों के लोग अदालत, कानून, जज, वकील, पुलिस बन बैठे हैं। क्या ये धार्मिक भावनाऐं इतनी कमज़ोर हैं कि गोश्त की दुकान खुलने से आहत हो जाती हैं ? दरअस्ल भगवाधारी लंपट साबित करना चाह रहे हैं कि वे संविधान को जूते की नोक पर रखते हैं।
इन भगवाधारियों में इतनी हिम्मत नही है कि ये उमा भारती से सवाल कर सकें कि जल समाधी लेने का वादा तो आपने किया था फिर प्रोफेसर सांसद क्यों चल बसे? इन भगवाधारियों का एक अलग धर्म है और वह है ‘उत्पात’ जो मुसलमानों को गालियां देने से शुरू होता है और मुसलमानों को मारने पीटने पर आकर खत्म हो जाता है। गंगा की सफाई के के लिये प्रोफेसर सानंद के मर जाने से हिन्दु खतरे में नहीं आया, हां गोश्त की दुकान खुलने से हिन्दू खतरे में आ गया जिसे भगवाधारियों ने बड़ी मशक्कत करके, दो चार पुलिसकर्मियों और दो चार दुकानदारों को थप्पड़ लगाकर खतरे से निकाल लिया। नया भारत यही है…