माईक में अज़ान देने से समस्या क्यों ? क्या ये गैरकानूनी है?

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आजकल देश में हर दिन एक नया राजनीतिक विवाद जन्म लेता है। और फिर शुरू होती है उस पर लंबी चर्चा। पिछले कुछ सालों से हिंदू मुस्लिम टॉपिक किसी भी विवाद का केंद्र होते हैं। आजकल जो ताज़ा मामला है, वो अज़ान से सम्बंधित है।

यह विवाद महाराष्ट्र से शुरू हुआ, जब राज ठाकरे ने अज़ान पर उद्धव ठाकरे सरकार को चेतावनी दी। राज ठाकरे, किसी समय महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों के विरुद्ध मोर्चा खोलकर चर्चा में आये थे। अब अज़ान पर विवाद के अगुआ हैं।

क्या है अज़ान पर विवाद ?

गुड़ी पड़वा के दिन राज ठाकरे ने ऐलान किया कि यदि उद्धव ठाकरे सरकार 2 मई के पहले मस्जिदों से माईक नही हटवाती है, तो उनकी पार्टी के कार्यकर्ता मस्जिदों के सामने हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे।

राज ठाकरे के इस बयान के बाद यह विवाद यूपी भी पहुंच गया। वाराणसी में कुछ लोगों ने पांचों वक़्त की अज़ान के समय हनुमान चालीसा का पाठ करने का ऐलान किया। वहीं अलीगढ़ से भी अज़ान के विरुद्ध भगवा संगठन हनुमान चालीसा को माईक में पढ़ने की अनुमति मांग रहे हैं।

क्या माईक में अज़ान कानून के विरुद्ध है ?

अक्सर यह देखा गया है कि माईक पर अज़ान का विरोध करने वाले यह कहते हैं कि माईक पर अज़ान देना कानूनन सही नही है। पर क्या वाक़ई ऐसा है, कि भारत में माईक पर अज़ान देना कानूनन अपराध है ?

हमने यह सवाल पूछा एडवोकेट दीपक बुंदेले से – उन्होंने इसका जवाब देते हुए कहा – “न सिर्फ़ अज़ान देना बल्कि कोई भी व्यक्ति अपने धर्म का शांति पूर्वक पालन कर सकता है। उसका प्रचार कर सकता है और धर्मान्तरित भी हो सकता है। माईक में आज़ान देना बिल्कुल भी ग़ैरकानूनी नही है। भारतीय संविधान के आर्टिकल 25 के अंतर्गत आपको धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार प्राप्त हैं। माईक पे अज़ान देना कोई ग़लत कार्य नही है।”

अज़ान के विरुद्ध हो रहे प्रोटेस्ट पर दीपक बुंदेले कहते हैं- यह सिर्फ देश में अल्पसंख्यकों को धर्मनिरपेक्षता को धूमिल करने की कोशिश है, अगर माईक में अज़ान देना गलत है तो किसी समुदाय को टारगेट करके भड़काउ गाने बजाना कहां तक सही है? जबकि अज़ान किसी वर्ग को टारगेट नही करती, व्व उग तो कहते हैं आओ अल्लाह की इबादत के लिये। अल्लाह अकबर जिसका अर्थ है अल्लाह महान है, वो किसी वर्ग को टारगेट नही कर रहे बल्कि दावत दे रहे हैं आओ नमाज़ पढ़ो।”

क्या अज़ान सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करती है ?

सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि रात को 10 बजे से सुबह 5 बजे तक किसी भी तरह से लाऊडस्पीकर का उपयोग न किया जाए। तो क्या इस बीच मस्जिदों में लाऊडस्पीकर में अज़ान दी जाती है? जब आप इस सवाल का जवाब तलाशेंगे तो पाएंगे, कि रात को सोने से पहले अंतिम नमाज़ इशा की नमाज़ होती है। जिसकी अज़ान अधिकतम 8:30 तक होती है। अर्थात सुप्रीम कोर्ट के द्वारा निर्धारित समय 10 बजे के बहुत पहले अज़ान होती है।

उसके बाद सुबह अर्थात फ़ज्र की नमाज़ का समय भी अधिकतर 5 बजे के आसपास ही होता है। साल के कुछ दिन ये समय 5 बजे के पहले अर्थात 4:30 से 5 बजे के बीच होता है। ऐसे में सुबह के समय अक्सर जगह अज़ान 5 बजे के आसपास ही होती है। ऐसे में यहां भी सुप्रीम कोर्ट का उल्लंघन होता नजर नही आता।

एक वक्त की अज़ान में कम से कम 2 मिनट और अधिकतम 3 मिनट लगते हैं। ऐसे में दिन भर में माईक में अज़ान का कुल समय 15 से 20 मिनट होता है।

अज़ान क्यों दी जाती है और इसमें बोले जाने वाले शब्दों का अर्थ क्या है ?

अज़ान एक तरह का कॉल है, बुलावा है। या यूं कहें कि ये एक अलार्म है, जो नमाज़ के समय लोगों को मस्जिद में  बुलाने के लिए दी जाती है। अज़ान में किसी भी समुदाय को टारगेट नही किया जाता, बल्कि परमेश्वर की उपासना के लिए बुलाया जाता है। अज़ान के लिए अंग्रेज़ी में Call to Prayer शब्द का उपयोग होता है।

पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. के समय उनके साथी बिलाल हब्शी रज़ि. अज़ान देने का कार्य करते थे। इस्लामी इतिहास पढ़ने पर पता चलता है कि पहली अज़ान भी बिलाल रज़ि. द्वारा ही दी गई थी।

अज़ान का पहला शब्द है अल्लाहुअकबर अल्लाहु अकबर, जिसका अर्थ है अल्लाह महान है। यह शब्द दो बार दोहराया जाता है। इसके बाद का शब्द है “अशहदुल्लाह इलाहा इल्लल्लाह” इस शब्द में गवाही दी जाती है कि अल्लाह ( परमेश्वर) ही इबादत के लायक़ है। उसके पश्चात पैगंबर मुहम्मद के अंतिम रसूल होने की गवाही दी जाती है।

इसके पश्चात नमाज़ के लिए बुलाया जाता है, “हय्या अलस्सलाह”- जिसका अर्थ है, आओ नमाज़ की तरफ़। इसके बाद कहा जाता है – “हय्या अलल फलाह, आओ क़ामयाबी की तरफ़। फिर वही शब्द अल्ल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर और अंत में ला इलाहा इल्लल्लाह कहकर, अज़ान खत्म हो जाती है। और इस तरह नमाज़ पढ़ने वाले मस्जिद की तरफ चल पड़ते है।

तो आख़िर यह विवाद क्यों हो रहा है?

अब सवाल यह उठता है, कि जब माईक में अज़ान का समय सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना नही करता तो क्यों महाराष्ट्र में राज ठाकरे और यूपी में संघ की छात्र ईकाई ABVP के लोग माईक में अज़ान के विरुद्ध मोर्चा खोले हुए हैं?

इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए हमें बस पिछली कुछ घटनाओं का अध्यन करना होगा कि कैसे मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध होने वाली बयानबाजी राजनीतिक सफलता की कुंजी बन गई है। साथ ही विभिन्न समुदायों के बीच फैलाई जा रही नफ़रत भी इसके लिए बखूबी ज़िम्मेदार है।

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