9 जनवरी 2022 को जिसने भी अपने फ़ोन में गूगल खोला होगा उसे गूगल के सर्च ऑप्शन के उपर एक डूडल दिखा होगा. अब आप कहेंगे की इसमें खास क्या है ? क्योंकि गूगल (google) पर डूडल (Doodle) दिखना तो नॅर्मल है. लेकिन बता दूं कि ये डूडल काफ़ी चर्चा में रहा है. क्योंकि ये डूडल भारत की पहली मुस्लिम माहिला शिक्षिका माता फ़ातिमा शेख़ (fatima shaikh) का है. इस डूडल से पूरी दुनिया में फ़ातिमा शेख़ के नाम का डंका बज रहा है. इसे गूगल कि तरफ़ से माता फ़ातिमा शेख़ को उनके 191वी बर्थ एनिवर्सरी पर एक ट्रिब्यूट कहा जा सकता है.
कौन थी फ़ातिमा शेख़
फातिमा शेख को भारत कि पहली मुस्लिम माहिला शिक्षिका के तौर पर जाना जाता है. उनका ज्नम 9 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था. फ़ातिमा, सावित्रिबाई फुले की परम सहयोगी के तौर पर भी जानी जाती है. वो, माहिला शिक्षा के लिए 1848 में खोले गए पहले स्कूल की को-फाउंडर भी थी. फ़ातिमा उन स्कूलों में पढ़ाया करती थी. उन्होंने विशेष रूप से समाज की दकियानूसी सोच से इतर मुस्लिम माहिलाओ को शिक्षित करने का काम ब-खूबी किया. सावित्रिबाई की गैर हाज़री में वो स्कूल भी संभाला करती थी.
फ़ातिमा शेख़, ज्योतिबा फुले के दोस्त उस्मान शेख़ की बहन थी. जिन्होंने आगे चलकर ज्योतिबा फुले और सावित्रि फुले को अपने घर में आश्रय भी दिया था. दरअसल, हुआ ये था कि ब्राहाणवादी सोच और ब्राह्णवादियों के बहकावे में आकर ज्योतिबा फुले के पिता गोविंदराव ने बेटे और बहु को घर से निकाल दिया था. ऐसे समय पर फ़ातिमा ने उन्हें आश्रय दिया.
इतिहास में दर्ज नहीं है- फ़ातिमा शेख़ः
हमें फ़ातिमा शेख़ के बारे में जो थोड़ी बहुत जानकारी है उसके अनुसार सावित्रिबाई फुले ने 1848 में जो स्कूल खोला था उसमें फ़ातिमा ने भरपूर सहयोग दिया था. इसके अलावा मुस्लिम माहिलाओ की शिक्षा पर बल देने वाली वो पहली मुस्लिम माहिला थी. इससे ज़्यादा इतिहास में उनके बारे में कोई अधिक जानकारी नहीं मिलती.
इसका पहला कारण हैः उनके द्वारा लिखे गए पत्र, किताबें और रचनाओं का ना होना. जैसे ज्योतिबा फुले और सावित्रिबाई फुले के पत्र, काविताएं, रचनाएं मौजूद है और जिनके माध्यम से हमे उनके बारे में पता चलता है.

दूसरा कारण ये है कि, कलमकासाइयों द्वारा उन्हें इतिहास में दर्ज नहीं किया. अधुनिक समाज में कलम कासाई उन लोगों को कहा गया, जिन्होनें इतिहास कि रचना करते वक्त फ़ातिमा शेख़ जैसे समाज सुधारकों और सत्य शोधक समाज की स्थापना करने वालों को हाशिए पर रख़ दिया.
हालाँकि साल 2014 में ऊर्दू की पुस्तकों में पहली बार फ़ातिमा शेख़ की उपलब्धियों को सरकार नें शामिल किया.
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