“तैमूर लंग” भारत क्यों आया था ?

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चगताई मंगोलों के खान, ‘तैमूर लंगड़े’ उर्फ तैमूरलंग का एक ही सपना था,  चग़ेज़ खान की तरह पूरे यूरोप और एशिया पर हुकूमत करना।  लेकिन चंगेज और तैमूर में कुछ बड़े फर्क भी थे। पहला यह कि चंगेज खान दुनिया को एक साम्राज्य के नीचे लाना चाहता था। वहीं तैमूर पूरे विश्व में अपनी धौंस जमाना चाहता था।  तैमूरलंग के साम्राज्य में सिपाहियों को खुली लूट करने हत्याएं करने तक की छूट थी। इसके अलावा तैमूरलंग जब भारत आया, तो पूरा एक ब्यौरा छोड़ कर गया कि उन तीन महीनों में उसमें भारत के किन-किन हिस्सों को लूटा और क्या उत्पात मचाया।  

12 सितंबर 1398 को भारत में हुआ दाखिल

12 सितंबर 1398 का दिन ही भारत के इतिहास का वह बदकिस्मत दिन था, जब तैमूरलंग ने सिंधु नदी पार करके भारत में कदम रखा। जिस समय तैमूर सिंधु नदी के तट पर पहुंचा उसके साथ 92 घोड़ों की टुकड़ियां थीं।

यह बात पूरा विश्व जानता है कि उस समय भारत को सोने के चिड़िया कहा जाता था। यानी की भारत उस अमीर देशों में से एक माना जाता था। इसी समृद्धि को देखते हुए, तैमूर भारत आया था। उसका मकसद केवल भारत को लूटना था। इस बीच जो उसके रास्ते में आता, तैमूर उसे जगह को लूट कर वहां के लोगों को मार देता था।  

राजधानी दिल्ली पर करना चाहता था हमला 

तैमूर उज़्बेकिस्तान पर राज किया करता था। अफगानिस्तान से उज़्बेकिस्तान लौटते हुए, उसने अपने सिपाहसलारों के सामने हिंदुस्तान जाकर दिल्ली पर हमला करने की बात कही, उसने दिल्ली और उसकी समृद्ध सल्तनत के बारे में काफी सुना था। पर सल्तनत को डिगाना आसान काम नहीं था। पर फिर तैमूर ने सिपाहियों से कहा कि अगर दिल्ली पर एक सफल हमला हुआ तो लूट का काफी माल मिल सकता है। 

दिल्ली के शासक के पास थी हाथियों की फौज

उस समय दिल्ली के शासक नसीरूद्दीन महमूद हुआ करते थे। उनके पास हाथियों की एक ऐसी बड़ी फौज थी, जिसके सामने टिक पाना को कोई आसान बात नहीं थी। इसके साथ ही उनका  सैनिकबल भी कहीं ज्यादा था। इसीलिए तैमूर ने जब दिल्ली पर आक्रमण करने की इच्छा ज़ाहिर की तो, कई सैनिकों ने उसे ऐसा करने से मना किया पर तैमूर ने कहा, ‘बस थोड़े ही दिनों की बात है अगर ज़्यादा मुश्किल पड़ी तो वापस आ जाएंगे।’

जहाँ रूका वहां मचाया कत्लेआम

बीबीसी में पंजाब यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने एक आर्टिकल लिखा था, इस आर्टिकल के अनुसार,  नदी को पार करने के बाद तैमूर और उसकी फौज ने रास्ते में एक असपंदी नाम के गांव के पास पड़ाव डाला। यहां पर तैमूर ने अपने नाम की दहशत फैलाने के लिए सभी गाँव वालों का कत्ल करवा दिया। साथ ही इसके पास रहने वाले कुछ आग के उपासना करने वाले (जिन्हें आज हम पारसी कहते हैं) यज़दीयों पर भी खूब अत्याचार किए, तैमूर ने सभी यज़दियों के घर जलाने का आदेश दे दिया।

उज्बेकिस्तान में बनी तैमूरलंग की मूर्ति

इसके बाद तैमूर की फौज पानीपत की तरफ़ निकल गईं।  पंजाब के समाना कस्बे, असपंदी गांव में और हरियाणा के कैथल में हुए ख़ून ख़राबे की ख़बर सुनकर पानीपत के लोगों ने अपना शहर छोड़ दिया और दिल्ली भाग गए। पानीपत पहुंच कर तैमूर ने फिर से वही किया, जिसके इरादे से उसने सिंधु नदी पार की थी। उसने पानीपत शहर को तहस-नहस कर दिया।  हालांकि दिल्ली को भी लूटने से नासिरूद्दीन महमूद ज्यादा दिनों तक बचा नहीं पाएं।  

बेकूसरों को न मारने वाले सैनिकों की हत्या का दिया आदेश 

बीबीसी की मानें, तो दिल्ली के रास्ते में आने वाले लोनी के किले से राजपूतों ने तैमूर को रोकने की कोशिश तो की थी, पर अफसोस यह कोशिश असफल रही। इस समय तक तैमूर की कैद में करीबन एक लाख भारतीय बंदी थे। जिसे उसने दिल्ली पहुंचने से पहले ही मारने का आदेश दे दिया, साथ में यह भी कहा कि अगर कोई सैनिक ईंन कैदियों को मारने से गुरेज़ करे या उन पर दरियादिली दिखाए, तो उसे भी मार दिया जाए। 

तैमूर के डर से जंगलों में जा छिपा महमूद 

तैमूर ने दिल्ली पर हमला किया और उसने नसीरूद्दीन महमूद को आसानी से हरा दिया। तैमूर के डर से दिल्ली का शासक महमूद दिल्ली छोड़ जंगलों में जाकर छिप गया था। अपनी जीत का जश्न नशे में चूर तैमूर के सैनिकों ने कुछ औरतों को भी छेड़ा। लोगों ने जब इस  बात का विरोध किया तो  इस बात पर तैमूर ने दिल्ली के सभी हिंदुओं को ढूंढ कर कत्ल करने का आदेश दे दिया। ज्ञात होकि तैमूर शिया मत का फ़ॉलोवर था, इसलिए उसने सुन्नी मत के मुस्लिमों की हत्या करने से भी गुरेज़ नही किया।

खून से रंग गया शहर 

अब तैमूर दिल्ली छोड़कर उज़्बेकिस्तान लौट रहा था, रास्ते में मेरठ भी पड़ा, यहां भी तैमूर के लूट का लालच और खून की प्यास रूकी बुझी नहीं, उसने मेरठ के किलेदार इलियास को हराकर  मेरठ में भी तकरीबन 30 हज़ार लोगों को मार दिया, जिसमें हिंदुओं की एक बड़ी तादाद शामिल थी। इतना कत्लेआम उसने केवल तीन महीनों में किया। यह बात भी गौर करने वाली की अपने लक्ष्य यानी दिल्ली में वह केवल 15 दिन ही रहा।