राजनीति एक ऐसी सच्चाई जिसे जहां तक जाना जाए वो कभी भी काफी नहीं होता है। पंजाब राज्य की राजनीति में बिल्कुल ऐसा ही कुछ हुआ है। कैप्टन अमरिंदर सिंह जो पंजाब के मुख्यमंत्री पद पर काबिज थे उनके बारे में अचानक ये खबरें उड़ने लगी कि उनसे इस्तीफा देने को कहा गया है। अब “आलाकमान” के ज़रिए इस्तीफे के आदेश का क्या मतलब होता है राजनीति करने और उसकी समझ रखने वाले इसे समझते ही हैं।
दरअसल ये सब कुछ पिछ्ले 3 साल से चली आ रही राजनीति का बस आखिरी पड़ाव हैं जिसमें बहुत हद तक अमरिंदर सिंह को शह और मात हुई है। 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले अमरिंदर सिंह नाराज़ चल रहे थे क्योंकि पार्टी में उनका “अपमान” हो रहा था। लेकिन कांग्रेस इस बात को भी समझ रही थी अमरिंदर सिंह पार्टी में बहुत बड़ा नाम है और पंजाब में उनकी मक़बूलियत काफी है।
इसलिए पार्टी ने पंजाब के प्रदेश कांग्रेस चीफ प्रताप सिंह से “कुर्बानी” देने को कहा,उन्होंने पार्टी आलाकमान की मान ली और अमरिंदर सिंह के अनुसार उन्होंने इस्तीफा दे दिया लेकिन इसमें भी एक खास बात है और वो ये है कि हाल ही में पंजाब के इस्तीफा दे चुके मुख्यमंत्री ने ये कहा था कि “ये मेरा आखिरी चुनाव है” लेकिन 5 साल बीतते हुए ऐसा बिल्कुल भी नहीं लग रहा था।
राहुल गांधी का फैसला बताया जा रहा है।
विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक ये फैसला राहुल गांधी का बताया जा रहा है और ऐसा उन्हें “सलाह” देते हुए प्रशांत किशोर ने कराया है। क्योंकि बीते 2 महीनों से लगातार कांग्रेस में हो रही हलचल ये बताने के लिये काफी है कि राहुल गांधी “पीके” को पार्टी में लेने के लिए कितने उत्साहित थे। लेकिन किन्हीं कारणों से ऐसा हो नहीं पाया था मगर अब लगातार बदले हुए हालात देख कर लग रहा है कि “सलाह” पीके ही दे रहे हैं।
राहुल गांधी को अगर मीडिया की बनाई छवि से हटाकर देखें तो वो एक परिपक्व नेता की तरह पार्टी में फैसले लेते हुए हर बार नज़र आते हैं। राहुल अध्यक्ष नही है लेकिन हर समस्या के लिए हाज़िरी उन्ही के यहां पर होती है। क्योंकि इसमें कोई ढकी छुपी बात नही है कि राहुल गांधी ही कांग्रेस का भविष्य हैं और अघोषित तौर पर 2024 का प्रधानमंत्री चेहरा भी हैं।
राहुल गांधी के बारे मे वरिष्ठ पत्रकार रशीद क़िदवई कहते हैं कि “राहुल के नाम के आगे गांधी लगा है. कांग्रेस में अध्यक्ष कोई भी हो, राजनीतिक नेतृत्व हमेशा गांधी परिवार के पास रहा है. यह परंपरा केवल कांग्रेस की ही परंपरा नहीं है. बहुत से राजनीतिक दलों में ऐसा होता है कि कोई नेता किसी पद पर न हो, लेकिन पार्टी का सर्वेसर्वा वही हो. जेपी का कोई पद नहीं था, विश्वनाथ प्रताप सिंह का बाद में कोई पद नहीं था, संघ की राजनीति में उनके शीर्ष नेतृत्व का कोई बड़ा पद नहीं होता, लेकिन संघ के नेता का क़द कितना ऊँचा होता है, ये भारत की राजनीति में किसी से छिपा नहीं है.”
इसी सबसे बड़ी वजह को समझते हुए ये देखा जा रहा है कि राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनना तो चाहते हैं लेकिन ये भी सच है कि उसके लिए वो “अनुभवी” नेताओं के बोझ तले दबना नहीं चाहते हैं। इसी वजह से उन्होंने पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की तमाम आशंकाओं को पूरी तरह से समाप्त कर दिया है।
क्या कर सकतें हैं कैप्टन?
चारों तरफ ये खबरें उड़ रही हैं कि पंजाब की राजनीति का सितारा रहे अमरिंदर सिंह बहुत जल्द भाजपा जॉइन कर सकते हैं। लेकिन वे बात फिलहाल कोरी गप नज़र आ रही है। क्योंकि 80 की उम्र को छू चुके अमरिंदर सिंह की भाजपा में क्या जगह होगी और क्यों होगी? इस बारे में वो सोच भी रहें होंगे ही।
हालांकि ये भी सच है कि वो नाराज़ हैं लेकिन 1992 और 2015 में भी कैप्टन नाराज़ हुए हैं और अलग मोर्चा तक बनाने की भी वो सोच चुके हैं। ये बात साल 1992 की है जब चर्चा थी कि कैप्टन अपनी पार्टी बनाएंगे. उसके बाद 2015 में भी ऐसी ही चर्ची तब उठी थी, जब कांग्रेस में वो अपमानित महसूस कर रहे थे।
कैप्टन की बायोग्राफी ‘द पीपुल्स महाराजा’ में वरिष्ठ पत्रकार खुशवंत सिंह ने उस घटना का जिक्र किया है, जब वो कांग्रेस में अपमानित महसूस कर रहे थे। इसी किताब मे वो वाकया भी दर्ज है जब कांग्रेस की अभी की प्रभारी प्रियंका गांधी ने 2014 के चुनावों के वक़्त मुश्किल सीट से लड़ने के लिए रिक्वेस्ट की थी।
प्रियंका गांधी ने अमरिंदर सिंह को फोन करते हुए कहा था कि “अंकल मैं चाहती हूं कि आप अमृतसर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ें” गौर करने वाली बात ये है कि अमरिंदर सिंह राहुल और प्रियंका के पिता राजीव के दोस्त और कॉलेज मेट रहे हैं।
बताया ये जाता है कि इस फोन कॉल ही के बाद अमरिंदर सिंह ने अमृतसर लोकसभा से चुनाव लड़ने का फैसला किया था। इसके बाद उस सीट से अरुण जेटली को 1 लाख वोटों से हराया भी था।