इन प्यार भरे रिश्तों को हम क्यों नहीं स्वीकार सकते ?

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भारत में जब से समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर किया गया है तब से LGBTQ समुदाय के लोग अपनी फीलिंग्स, प्यार और यौन रुचि को खुल कर सामने रख पा रहे हैं। अब ये अवैध या अपराध नहीं है लेकिन समाज में अब भी ये स्वीकार्य नहीं है। समलैंगिक लोगो को अपने घर, सोशल प्लेस और काम करने वाली जगहों पर आज भी ऐसी मानसिकता का सामना करना पड़ता है जो उन्हें हीन भावना से देखती है।

लेकिन कुछ सोशल साइट्स, BBC और The lallantop की same sex marrige की खबरे सुनकर दिल बाग बाग हो जाता है। लेकिन इस बात को लेकर गहरी सोच में भी डूब जाते हैं कि same sex marrige को कानूनी मान्यता नहीं मिलेगी। और फ़िर याद आता है 2018 में सुप्रीम कोर्ट का वो फैसला जिसमें समलैंगिकता को IPC की 377 से अलग कर दिया गया था।

भारत में समलैंगिकता को 377 से अलग करने की लड़ाई तब शुरू हुई थी जब कुछ विकसित देशों में समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता मिल गयी थी। साल 2009 में कुछ समलैंगिक एक्टिविस्टो ने मिलकर दिल्ली हाइकोर्ट में समलैंगिकता को IPC की धारा 377 से बाहर करने के लिए याचिका दी थी। दिल्ली सरकार ने इस याचिका पर गहन अध्ययन कर समलैंगिकता को अपराध के दायरे से हटाया था। लेकिन 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे फ़िर अपराध के दायरे में घोषित कर दिया।

हाल ये हुआ कि LGBT समुदाय के लोगो को सड़कों पर उतरना पड़ा था। 2016 तक धारा 377 के ख़िलाफ़ 300 से ज़्यादा याचिका दर्ज की जा चुकी थी। इसके बाद 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने सेक्शुएलिटी को निजता का अधिकार माना और फिर IPC की धारा 377 को संविधान के अनुछेद 14, 15 और 21 के आधार पर देखा और 2018 में समलैंगिकता को IPC की धारा 377 से अलग कर दिया।

 

Image : india today


इस पर लंबी सुनवाई चली, लंबी बहस हुई। भारत सरकार और RSS जैसे कुछ संगठन ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को माना लेकिन कभी इस पर सहमति नहीं जाती। RSS का मानना है कि समलैंगिक यौन सम्बंध अप्राकृतिक हैं और इन्हें भारतीय समाज मान्यता नहीं देता है। वहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी पहले इस पर आपत्ति जताई लेकिन बाद में फैसला सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ दिया था।

LGBTQ समुदाय के लोगो के लिए ये हमेशा से कलंक रहा है। यौन सम्बंध बनाना तो दूर वो अपने रिश्ते को सार्वजनिक करने भर से कतराते थे। IPC की धारा 377 ब्रिटिश क्राउन की देन हैं। 1861 में इस धारा को IPC (indian pinal code) में शामिल किया गया था। इसके तहत यानी IPC की धारा 377 के तहत समलैंगिकों (महिला और महिला के बीच, पुरूष और पुरूष के बीच) के बीच बना यौन सम्बंध, पुरुष और महिला के बीच अप्राकृतिक यौन सम्बंध और महिला या पुरुष द्वारा किसी जानवर के साथ प्रकृति के विरुद्ध बनाया गया यौन सम्बंध अपराध है। इसके लिए उम्रकैद या दस साल की सज़ा के साथ जुर्माने का प्रावधान है। अब इसमें से समलैंगिक समुदाय को अलग कर लिया गया है।

अब कानून LGBTQ यानी लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर को यौन सम्बन्धो की इजाज़त देता है। क्योंकि ये उनकी स्वतंत्रता और निजता का विषय है। बहरहाल, भारत में अगर कोई समलैंगिक जोड़ा शादी करता है तो वो कानूनी नहीं है उसे सिर्फ civil union (नागरिक संघ) माना जाएगा। इसके तहत वो साथ रह सकते है, यौन सम्बंध बना सकते है लेकिन कानूनी तौर पर एक जोड़ा नहीं कहला सकते।

आज भी दुनिया के 26 देश समलैंगिकता को नहीं मानते। वहीं 76 देशों में इसे अपराध माना जाता है। इंडोनेशिया, सूडान, सऊदी, ईरान और यमन जैसे देशों में गे-सेक्स के लिए मौत की सज़ा दी जाती है। वहीं दूसरी तरफ 2017 तक 25 देशों में समलैंगिको के बीच यौन संबंधों को मान्यता दे दी गयी थी। इनमें कनाडा, बेल्जियम, अर्जेन्टीना, पुर्तगाल, इंग्लैंड जैसे अन्य विकसित देश शामिल हैं। नीदरलैंड दुनिया का पहला वो देश है जिसने साल 2000 में सबसे पहले same sex marrige को कानूनी मान्यता दी।

Civil union मतलब नागरिक संघ की बात करें तो डेनमार्क वो पहला देश है जिसने 1989 में same sex कपल के लिए civil unoin या डोमेस्टिक पार्टनरशिप को कानूनी जामा पहनाया। ब्राजील ने 2002 में सबसे पहले opposit sex के लिए civil unoin बनाया था। इसके बाद 2011 में विस्तार कर same sex के लिए भी civil unoin लागू किया गया। civil unoin को LGBT के अधिकारों के लिए पहला कदम माना जाता है। 2019 में india today के सर्वे mood of the nation के मुताबिक भारत में सबसे ज़्यादा 62 % प्रतिशत लोग same sex marrige को नहीं मानते।


कोई इंसान किसको प्यार करेगा, उसे किसके प्रति यौन रुचि होगी ये उसके बस में नहीं। भारतीय समाज में हमेशा से एक स्त्री और पुरुष के रिश्ते को तव्वजो दी गयी है शायद इसलिए क्योंकि ये दोनों मिलकर एक नई पीढ़ी का निर्माण करते हैं। लेकिन अब सरोगेसी और आईवीएफ जैसी तकनीक बहुत आगे बढ़ चुकी है, संतान की प्राप्ति के लिए या पीढ़ी आगे बढ़ाने के लिए यौन सम्बंध के अलावा तकनीक का सहारा लिया जा सकता है। समलैंगिक शादियों को कब कानूनी मान्यता मिलेगी ये कहना मुश्किल है लेकिन समाज से ये एक सवाल पूछा जा सकता है कि इन प्यार भरे रिश्तों को हम क्यों नहीं स्वीकार सकते ?