भारत की आज़ादी की लड़ाई में ज़मीन हमेशा एक बड़ा मुद्दा रहा। संथाल विद्रोह, बारडोली से लेकर चंपारण सत्याग्रह तक हर संघर्ष में ज़मीन एक केंद्रीय मुद्दा बना रहा। अंग्रेजों ने रजवाड़ों और ज़मींदारों को भारतीयों के शोषण का माध्यम बना रखा था, क्योंकि भारतीय अधिकतर किसान थे इसीलिए भूमि पर उनके अधिकार छीनकर उन्हें आराम से शोषित किया जा सकता था। और इसीलिए देश के अलग अलग कोनों में जो आज़ादी का संघर्ष चला लगभग उन सब मे कहीं न कहीं भूमि अधिकार का मुद्दा केंद्र में रहा।
1947 में जब देश आजाद हुआ तब एक बड़ी उम्मीद जागी, ये वो दौर था जब दुनिया के अलग अलग कोनों में ताइवान , जापान, कोरिया जैसे देशों में विश्व युद्ध के बाद गरीबों को भूमि वितरण का काम चल रहा था। हालाकि देश के सभी बड़े नेता इस बात पर एक मत थे के गरीबी से आज़ादी के लिए भूमि वितरण सबसे महत्वपूर्ण ज़रिया है और इसीलिए आज़ाद भारत मे सीलिंग एक्ट और टेनेंसी एक्ट जैसे कुछ कानून भी आये । लेकिन ये भी सच है कि क्योंकि ज़्यादातर जनप्रतिनिधि भूमि मालिक थे और भूमिहीन नहीं, इसीलिए कहीं न कहीं धीरे धीरे भूमि का विषय दबता चला गया ।
और आज आज़ादी के सत्तर दशक बाद हम देश के गरीबों को ये समझाने में सफल हो गए हैं के वो गरीब इसीलिए हैं “क्योंकि वो पैदा ही गरीब हुए हैं” न कि इसीलिए कि जिन संसाधनों पर उनका भारतवासी होने के नाते अधिकार है वो उन्हें नही दिए गए। आज स्थिति ये हो गयी है कि देश मे 5 करोड़ से ज्यादा भारतीय किसान परिवारों के पास खेती करने के लिए जमीन नही है, और लगभग 10 करोड़ भारतीयों के पास घर बनाने के लायक भी ज़मीन नही है। अब जब मामला बहुत बढ़ गया है तो सरकारें आवास योजनाओं के माध्यम से आवास देने की बात तो कर रही हैं लेकिन भूमि अधिकारों को लेकर सरकारों का रवैया अभी भी देश के गरीबों से सौतेले व्यवहार वाला ही है, जबकि सच ये है कि आवास योजनाओं का फायदा भी उन्ही परिवारों को मिलना है जिनके पास जमीन है।
आज आवश्यकता है कि देश मे एक “राष्ट्रीय आवासीय भूमि अधिकार कानून” लागू किया जाए जिससे हर भूमिहीन नागरिक को कम के कम आवास के लिए भूमि की व्यवस्था हो सके। साथ ही राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति लागू की जाए जिससे भूमि के वितरण के मुद्दे पर कुछ ठोस और सकरतात्मक बदलाव किया जा सके ।
इस 2 अक्टूबर गांधी जयंती पर देश भर के सत्रह राज्यों से आये पच्चीस हजार भूमिहीन देश की राजधानी दिल्ली की तरफ मार्च करेंगे। इन भूमिहीन भारतवासियों की छहसूत्रीय मांगें हैं
जनांदोलन एकता परिषद और साथी संगठनों द्वारा भूमि के मुद्दे पर आयोजित एक अहिंसात्मक आंदोलन है। इसमे भारत के 17 प्रदेशों से 25,000 भूमिहीन लोग भाग लेंगे। जनांदोलन में भाग ले रहे 25000 लोगों की मांगें कुछ इस प्रकार है।
- राष्ट्रीय आवासीय भूमि अधिकार कानून की घोषणा एवम क्रियान्वयन, इसके लागू होने से भूमिहीन परिवारों को रहने, बाड़ी और पशुओं की देखरेख के लिए 10 दशमलव यानी 500 वर्ग गज की ज़मीन की गारंटी प्राप्त होगी।
- राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति की घोषणा एवं क्रियान्वयन, इससे भूमि वितरण मुद्दे को संबोधित करने के लिये ठोस सुझाव लाया जायेगा।
- “महिला किसान हकदारी अधिनियम की घोषणा और क्रियान्वयन” , इससे महिला किसानों को किसानों के रूप में मान्यता सुनिश्चित होगी।
- त्वरित न्यायालय का संचालन, भूमि के विवादों के शीघ्र समाधान हेतु त्वरित न्यायालय बनाई जाए।
- वन अधिकार कानून के प्राभावि क्रियान्वयन पर निगरानी तंत्र की स्थापना, पंचायत अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार कानून 96 और वन अधिकार कानून 2006 के क्रियान्वयन और निगरानी के ढांचो को स्थापित किया जाए।
- भूमि सुधार परिषद और भूमि सुधार कार्य बल को सक्रीय करना
समय है कि जनांदोलन 2018 के माध्यम से ज़मीन के मुद्दों पर उठती इन भूमिहीनों की आवाज़ के साथ देश ये युवाओं की आवाज़ें जोड़ी जाएं। और भविष्य के भारत की नींव रखी जाए जहां कोई भूमिहीन नही होगा, आवासहीन नही होगा ।